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श्री अष्ट प्रकार अभुत पराकम देख कर प्रसाए और विवाह की सामग्री तैयार करने लगे। विधि पूर्वक बड़े उत्सव के साथ पूजा 1 उस राजकन्या का विवाह कर दिया, अर्थात् शूरसेन राजा ने अपनी पुत्री विष्णुश्री को सब राजाओं के समक्ष ॥ १२ ॥ उस इलपति को देदी।
वहां सब राजाओं ने मिलकर उस हाली का राज्य सम्बन्धी पाट महोत्सव किया और विनती की, हे महाराज ! अव से तुम राजा हो, हमारे स्वामी हो, हम तुम्हारे सेवक होकर आज्ञा में चलेगे। इस प्रकार सबने सिंहासन पर बैठा कर राजपद दिया। हालीराजा ने भी उन सबको सन्तोष दिया और कहा आज से तुम को मैंने अभय दान दिया है, ऐसा कहकर सबको सम्मान प्रदान किया। हाली-राजा के श्वसुर शूरसेन ने उन सबों का वस्त्र अलंकारादि से सत्कार कर अपने २ देशों को विदा किये। इस प्रकार हाली के मनोरथ सफल हुए।
एक दिन अधिष्ठाय देव ने आकर हाली से कहा हे भद्र ! अब तेरा दरिद्र गया, तू सन्तुष्ट हुआ । * यदि फिर जो तेरी कोई इच्छा हो सो मांग, मैं देनेको उद्यत हूँ। ऐसे वचन सुनकर हाली राजा बोला, हे स्वामिन् !
यदि आप मेरे पर प्रसन्न हैं तो जिस नगरी को आपने क्रोध कर उजाड़ दी थी और शून्य की थी, उसको बसाकर मुझे दो तो मैं वहां रहूँ और आपकी कृपा से वहां का राज्य करू, यहां सुसराल में मेरा रहना उचित नहीं।
पावरवाजविता
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