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________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वह हाली हलको धारण करता हुआ बलभद्र के समान पराक्रमी क्रोधसे अग्निवत् दैदीप्यमान खड़ा है और अकेला संग्राम में उनसे युद्धकर उसने जय लक्ष्मी को प्राप्त करली । इसने एक हलके तीखे अग्रभाग से शत्रुओं के शिर काट दिये, हाथियोंके कुम्भस्थल को भिन्नकरदिये, घोड़ों के समूहका चूर्ण किया, रथ समुदाय को तोड़ डाला, सुभटके छक्के छूटगये, सब सेना का अहंकार जाता रहा। किसी भी सुभटकी हिम्मत सामने खड़ा रहने की न रही, दूर से खड़े २ देख रहे थे, इतने में चंडसिंह प्रमुख सब राजा इकट्ठी होकर विचार करने लगे, क्या यह साक्षात् यमराज है ? जो सर्व प्रजाका क्षय करने को उद्यत हुआ है, या कोई देव है ? इस प्रकार जीवितव्य का विचार कर उस देव कोप को शान्ति करने को पास गये और हम शरण हैं ऐसे वचन बोले । हम निर्वल हैं, आप सबल हैं, हमारी रक्षा करो ! रक्षा करो ! यह कहते हुए हाली के पैरों में पड़गये, मन में बड़ा त्रास प्राप्त हुआ, और बोले हे वीर पुरुष ! तुम गुणवान, पुण्यवान् हमारे स्वामीहो, हम तुम्हारे सेवक हैं, हमें आज्ञा दो । इस प्रकार वार २ उस हाली को प्रणाम करते हैं और कहते हैं तुम धन्य हो, पराक्रमी हो । यह कह कर हाथ जोड़ कर खड़े रहे । इतने में उस कन्या के माता पिता, परिवार और बांधव प्रमुख उस हाली का For Private And Personal Use Only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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