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________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री भए प्रकार पूजा 11 42 11 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पामर प्रतीत होते हो, तुम अपने मनमें ऐसा जानते होगे कि हम बहुत हैं यह अकेला हमारा क्या कर सकता है ? यदि तुम्हारे मनमें घमंड हो तो आओ, और मेरे साथ संग्राम करो। बनमें सिंह एकही होता है पर उसके सामने से हजारों सियाल मुँह छिपा कर भाग जाते हैं । ऐसे असंभव, और अनुचित बात सुनकर चंडसिंह राजा अत्यन्त कोपाग्नि से प्रज्वलित हुआ और कहने लगा अरे सुभटो ! इस दुष्टको पकड़ो और मारो, इसकी जीभ मूलसे उखाड़ डालो । स्वामी के वचन सुनते ही सुभटों ने ज्योंही हाली को पैरों से मारना चाहा त्योंही हाली उठकर अग्निवत् जाज्वल्यमान शरीर से हल उठाकर मारने को दौड़ा, उस अधिष्ठ । यकदेव के कारण उसके तेजको सहन नहीं करते हुए सुभट दौड़ कर अपने स्वामी की शरण गये । उस हालीका तेजस्वी रूप देखकर सब राजा लोग परस्पर विचार करने लगे, यह कोई देवता हाली का रूप धर कर आया है ? वीरों को कायर नहीं होना चाहिये, ऐसा साहस रखकर अपने २ सिंहासनों से उठ कर सब राजाओं ने चारों ओर से घेर लिया । तब हाली ने अपना पराक्रम दिखाया, ज्योंही इसने अपना हल चारों ओर घुमाया त्योंही सब राजा दिशाओं में इस प्रकार भागने लगे जैसे सिंह के सामने हाथियों का यूथ ( टोला ) नष्ट होजाता है । For Private And Personal Use Only ६ ।। ५१ ।।
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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