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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८ ) तथ्य तो यह है कि, आत्मा है तो सब है। जब तक आत्मा रहती है तब तक सब उसकी इजत करते हैं, सम्मान करते हैं और सत्कार करते है। मुरदे की क्या कीमत है ? जो आजीवन स्नेह-सत्कार करते हैं वे ही मृत्यु के बाद, हमारे शरीर को अपने ही हाथों से जलाकर भस्म कर डालते हैं। ___आत्मा की उपस्थिति में ही बाग-बगीचे, बंगले, धन-माल आदि सब वस्तुएँ काम आती हैं । पर, जब आत्मा शरीर से निकल जाती है, परलोक में जाती है, तब बड़े-बड़े राजमहल, ऐश्वर्य, धन की राशि, स्वजन-स्नेही और प्यारे-प्रियतम सब यहाँ पर ही रह जाते हैं और अकेली आत्मा सबसे मुँह मोड़कर निकलती है और अपने पूर्वसंचित कर्म भोगती हैं। उस समय कोई स्वजन उसका सहायक नहीं हो सकता। ___ आप पूछेगे कर्म जड़ है, फिर वह चेतन आत्मा को कैसे प्रभावित करता है। इसका उत्तर है कि, जैसे मद्य जड़ द्रव्य होने पर भी आत्मा को बेहोश बनाता है, उसी प्रकार कर्म जड़ होने पर भी आत्मा पर अपना प्रभाव डालकर फल देता है । किये हुए कर्मों से यदि छुटकारा प्राप्त करना हो, शाश्वत शांति प्राप्त करनी हो, पूर्ण सुखी बनना हो और सदैव के लिए अखंड आनन्द में मग्न होना हो, तो केवली-प्ररूपित मार्ग पर चलना चाहिए । सच्चा ज्ञान सीखना चाहिए सच्ची मान्यता पर अटल होना चाहिए और सच्ची क्रिया करनी चाहिए। सब जीवों के प्रति मैत्री भावना का विकास कर अहिंसक वृत्ति रख कर सदाचार, न्याय, नीति और सत्य का पालन करना चाहिए, तथा तपश्चर्याएँ करते रहना चाहिए। इन्द्रियों के गुलाम न बनकर उनका दमन करते रहना चाहिए । आत्मा को पहचानकर आत्म-विकास के लिए सतत प्रयत्नशील रहना चाहिए। इससे आत्मा क्रमशः कर्मों से छूटता जाता है और अंत में कर्म रहित होकर मुक्ति धाम (मोक्ष में ) पहुँच जाता है और वहां पर शाश्वत सुख का भोक्ता बनता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020070
Book TitleArhat Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtivijay Gani, Gyanchandra
PublisherAatmkamal Labdhisuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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