________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( १७ ) मन में आता, वह बकता रहता है। इस जीवन में तो एक-एक मिनट का वह विचार करता है, परन्तु एक मिनट के लिए भी यह नहीं विचारता कि इस जीवन के 'ॐ फुट् स्वाहा' होने के बाद क्या होगा ? शरीर में से आत्मा के निकल जाने के बाद क्या दशा होगी ? कहाँ जायेगा ? इसका लेशमात्र भी विचार उसके मन में नहीं उठता। राजमहल, ऐश्वर्य और हुकूमत ये सब केवल इस जीवन तक सीमित हैं। नहीं खाने योग्य अभक्ष्य पदार्थों-जैसे कि मद्य-माँस आदि वस्तुओं से उसने जिस शरीर को पालपोस कर हट्टा-कट्टा बनाया है, वह शरीर अन्त में एक दिन राख होनेवाली है, इस बात को वह भूल जाता है ! ____ अज्ञानी व्यक्ति भोग-विलास में मस्त होकर पशु की तरह जीवन व्यतीत करता है और न केवल इस अमूल्य मानव-देह को निकम्मा बना डालता है वरन् कोटि-कोटि वर्षों के लिए आत्मा को कष्टों में डालता है।
जिस स्थान से रस्न इकडे करने चाहिए, वहाँ से वह कंकड़ इकडे करता है। कितनी अधिक अज्ञानता ?
मनुष्य को अपने ही कपड़े थोड़े-से भी मैले या गन्दे हों तो अच्छे नहीं लगते, कूड़े-करकट से भरा हुआ घर भी उसे इष्ट नहीं लगता। तो फिर उसे आत्मा की मलिनता पसन्द पड़ना अज्ञानता नहीं तो और क्या है। ___ मनुष्य मकान को बार-बार झाडू से झाड़कर साफ रखता है। अपने शरीर पर रहे हुए मैल को दूर करने के लिए गरम पानी और साबुन के द्वारा खूब रगड़-रगड़कर स्नान करता है और शरीर को स्वच्छ रखता है। कपड़ों को प्रतिदिन धोता और बदलता है । पर, वह इस ओर किंचित् ध्यान नहीं देता कि उससे सबसे निकटतम आत्मा मलिन हो रही है, और उसे शुद्ध करने के लिए वह किंचित् प्रयास नहीं करता । यही सबसे बड़ी अज्ञानता है । शरीर, धन, माल, मिल्कत और स्वजन परिवार आदि सब क्षणिक और विनश्वर हैं। उनके मोह में मनुष्य जीवन बर्बाद करता है और अमर आत्मा को भूल जाता है ।
For Private And Personal Use Only