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आराधनास्वरूप ।
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ये सम्यक्त्वके अष्ट गूण हैं ॥ धर्ममें अत्यंत अनुराग होना, सो संवेग है ॥ संसार देह भोगनित विरक्तता, सो निर्वेग है ॥ आपका दोष चितवन करि अंतःकरणमें आपकी निंदा करनी, अपना प्रमादीपणा विषयानुरागीपणा कषायनिके आधीनपणा संयमरहितपणा देखि आपाईं निंदना, सो निंदा है ॥ गुरुनिके निकट अपने दोष प्रगट करि आपकी निंदा करना, सो भक्ति है । बहुरि धर्मात्मा जीवनिमैं प्रीति करना, सो अनुकंपा है। जाकै सम्यग्दर्शन होइ ताकै ये अष्टगुण प्रकट होयही हैं। ऐसे सम्यक्त्वका संक्षेप वर्णन कीया। सम्यग्दर्शनसहित एक देशवतळू धारण करि मरण करे है सो बाल पंडित मरण है अब गृहस्थकै देशबा कैसे है, सो कहे हैं॥ गाथापंच य अगुव्बयाई । सत्त य सिख्खरखाउ देसजदिधम्मो ॥ सब्वेण य देसेण य । तेण जुदो होदि देसजदी ॥२०७५॥
अर्थ-पंच अणुव्रत अर सप्त शिक्षावत ये बारा व्रत देशयति जो एकदेशव्रती ताका धर्म है । जो श्रावक ये बारा व्रत समस्तपणाकरि वा इनिका एकदेशकरि जो युक्त होय, सो श्रावक एकदेश यति वा एकदेश संयमी वा व्रती होइ है ॥ अब पंच अणुव्रत तिनके नाम कहे हैं || गाथापाणिवधमुसावादा । दत्तादाणपरदारगमणेहिं ॥ अपरिसिदिच्छादो विय। अणुव्यायाइं विरमणाई ॥७६।।
अर्थ-हिंसा, असत्य, अदत्तादान, परदारागमन परिमाणरहित परिग्रह इनि पंच पापनिका एकदेशत्याग, सो पंच अणुव्रत है। अब तीन प्रकार गुणवतके नाम कहे हैं ॥ गाथा
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