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________________ [४] मिलने का पता-श्री हरिहर औषधालय, बरालोकपुर-इटावा यू. पी० । १५-१६-औषधि गुणधर्म विवेचन २०-अंड तथा अन्त्रबृद्धि चिकित्सा' इस पुस्तक की उपादेयता के विषय में कहना प्रस्तुत पुस्तक का विषय नाम से ही प्रकट है ही वृथा है। इस पुस्तकमें समस्त धातुज औषधियों और सहज ही में अनुमान लगाया जा सकता है के विषय को लेखक ने भली भांति दर्शाया है, कि कि इस रोग के रोगियों को जीवन कितना नीरस आजकल प्रायः सभी वैद्यजन अंध परम्पराछन्न हो और फीका मालूम होता है। यही सोचकर यह चिकित्सा कर रहे हैं। रोगों के कारणों का पता पुस्तक प्रकाशित की गई है । पुस्तक में सविस्तार तथा उनकी उत्पत्ति कहां २ और कौन २ से बिगाड़ | रोगों का पूर्ण हाल तथा मय निदान के चिकित्सा होने से वह वेदना पैदा हुई तथा अमुक स्थान को लिखी गई है। मू.) मात्र । विकृति किस दवा से ठीक होगी, आदि २के सुन्दर सरल भाषामें वर्णन है। इसका प्रत्येक वैद्य के पास २१-२२-सिद्ध प्रयोग( दो भाग) रहना नितान्त आवश्यक है । मू० प्रथम भाग।) __ ग्राहकों एवं अनुग्राहकों की उत्कट अभिलाषा द्वितीय भाग का।) है। एवं पत्र पर पत्र आने के कारण इस पुस्तक में १७-चिकित्सक व्यवहार विज्ञान । वही शतशोऽनुभूत प्रयोग प्रकाशित किये गये हैं जो प्राय: ऐसा देखा गया है कि बड़े बड़े सुयोग्य | 'माला' में निकले थे जिनकी परीक्षा हो चुकी थी वैद्य भी चिकित्सा संबंधी व्यवहार नजाननेके कारण | | श्लोक वद्ध मणियों के रूप में भाषा टीका सहित रोगी को जीवनलीला से बिदा कर अनेकों कलंकों की गई है। बहुत थोड़ी प्रतियां शेष हैं मू० प्रथम के भागी होते हैं। इसी कारण हमने सर्व साधारण भाग का १) द्वितीय भाग का ॥) मात्र है। के लाभार्थ इसे प्रकाशित किया है। वैद्य वन्धुओं २३-विन्ध्यमहात्म्य को इससे लाभ उठाना चाहिये। मू० केवल ___ इसमें विध्यवासिनी देवी की उत्पत्ति, महिमा, 1) मात्र। । कार्य कुशलता, साक्षात्, दर्शन के उपाय विन्ध्य१८.१९-पेटेंटऔषधे और भारतवर्ष | क्षेत्र की. उत्कृष्ठता, महापापों के नाश के उपाय (प्रथम भाग व द्वितीय भाग) आदि २ सुन्दर भाषा टीका में वर्णित हैं। पुस्तक पुस्तक के नाम से ही स्पष्ट है कि पुस्तक कैसी देखते ही बनती है । मू० ३३६ पृष्ठ के पोथे का है प्रथम भाग तथा द्वितीय भाग में भारतवर्ष की का केवल १॥) मात्र । सभी पेटेन्ट औषधियों का भंडाफोड़ किया गया है, रोगन बिजली, अमृतांजन, नमक सुलेमानी, अपूर्व २४-कोकसार ताकत की दवा, बालामृत आदि २ सभी प्रसिद्ध २ | यह पुस्तक प्राचीन हस्तलिखित पुस्तक के पेटेन्ट औषधियों के बनाने की विधियां समझाई | आधार पर लिखी गई है। इसकी सानी का आज गई हैं। पेटेन्ट कर्ता एक आने की चीज़ के १) तक कोई भी कोकसार नहीं निकला इसमें ८४ लेते हैं और मनमाना दाम ऐंठकर लखपती हो आसन, स्रो वशीकरण, स्तम्भन, इंद्रीवर्धक, योनि गये। यदि आप भी लाभ उठाना चाहते हैं तो संकोचन एवं मंत्र तंत्र लिखे गये हैं प्रयोग अनुभूत आज ही एक कार्ड डालकर मंगा देखिये। मू० लिखे गये हैं। पुस्तक की लेखनशैली बड़ी ही प्रथम भाग का ॥) द्वितीय भाग का मू. १) है। रोचक पद्यमय है । मू० लागत मात्र ॥)
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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