________________
क (क) बीज
२४३८
कसहरीतकी कं () बोज-[१०] साँप ।
अम्लास्वाद युक्त होता है ।-(ता. श०) वि० दे० कंबीर-अ.] कमीला।
"संतरा"। कंबीरस-अ.] एक प्रकार का दही।
| कंशीरा-[?] Comru lino Bengalensis कबीरा-[सिरि० ] भाँग ।
कानूराना। कंवोल-[ मुथ ] कमीला।
[?] बर्वरी । बबुई। कंबीरः-[फा०] एक प्रकार का खीरा ।
कंशू-[फा०] कच्चा अंगूर । गोरः।
कंशूर:-अ॰] वह स्त्री जिसे हैज़ न आता हो । कंबीला-[फा• ] कमीला ।-(ख० अ०)
कंशे-[ मरा०, को० ] काँसा। कंबीस-[यू.] विजया बीज । शहदान न ।
कंस-संज्ञा पुं० [सं० ० क्री० ] (1) धातु द्रव्य । कबु-[ता०] बाजरा । धान ।
कंसमाक्षिक (महाद्रावक)। (२) काँसे का कंबूग-[ मग़०] घिबई (कुमा०)। जरीला
बना हुआ पानी पीने का वरतन । प्याला | छोटा (नेपा०)।
गिलास या कटोरा । अ० टी० । (३) मद्यादि कंबेला-[ ना. J कमीला।
पान करने का पात्र । शराबादि पीने का बरतन । कंबोई-संज्ञा स्त्री० [सं० काम्बोजी ] एक बड़ा पेड़ पान भाजहन | कंश। कांस्य ।।
जिसको पत्ती आँवले की पत्ती की तरह होती है। __ संज्ञा पुं॰ [सं० वी० पु.](१) काँसा । डालियाँ लंबी लंबी होती हैं । फल गोल और कांस्य धातु | प० मु.। (२) एक नाप . जिसे कच्चे पर हरा और पकने पर काला पड़ जाता है। श्रादक भी कहते थे। यह चार सेर की होती थी।
पर्या-काम्बोजी, काम्बोजिनी, बहुपुष्पा, भा०। (३) कांस्य धातु । कांसा। बहप्रजा-सं० । काम्बोजी-बं०। चिफली-मरा। पा-कांस्य, कंशास्थि और ताम्रार्ध । खेडा कम्बोई-गु. | Phylanthus Mult. दे० काँसा"। iflorrs or Phylantius Recticu.
| कंसक-संज्ञा पुं॰ [सं० वी० ] (1) पुष्प कसोस । talus-ले।
पुष्पकाशीश । नयनौषध । कसीस । यह लोहे का गुण-मलरोधक तथा वात, सूजन और
मल है । इसे आँख में लगाया करते हैं । हे. रुधिर के विकारों को दूर करती है।
च० । (२) कांस्य । झाँसा । (E) काँसे का (शा० नि० भू० परि०)
बना पात्र। कॅभारी-संज्ञा स्त्री० [सं० कंभार ] गमहार । कमहार ।
कंसपात्र-संज्ञा पु० [स.] (१) काँसे का वर्तन । गंभारी।
(२) श्रादक नाम की एक तौल । इसमें ४ सेर कँवल-संज्ञा पुं० दे० 'कमल' ।
द्रव्य आता है। कँवल कंद-संज्ञा पु० [हिं० कँवल+कंद ] कमल को |
का | कंसमाक्षिक-संज्ञा पुं० [सं० पुं] माक्षिक विशेष । जड़। कँवल-ककड़ी-संज्ञा स्त्री० [हिं० कँवल+ककड़ी]
कंसहरीतकी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] एक आयुर्वे.
दीय योग। कमल की जड़ । भसीड़ । मुरार ।
दशमूल के १ श्रादक क्वाथ में १०० पल गुड़ कॅवलगट्टा-संज्ञा पुं० [सं० कमल+हिं० गट्टा ]
और १०० नग हरड़ डालकर पकायें । जब लेह कमल का बीज।
तैयार हो जाय तब उसमें त्रिकुटा और त्रिसुगन्ध कँवल पत्र-संज्ञा पुं॰ [हिं० कँवल सं० पत्र ]
( दालचीनी, तेजपात और इलायची ) के चूर्ण कँवलबाव-संज्ञा पु० दे० "कमलवायु"।
का प्रक्षेप देकर रात भर रक्खा रहने दें। फिर कँवला-संज्ञा पुं॰ [सं० कमला ] संतरा का एक | सुबह को उसमें प्राधा प्रस्थ (८ पल) शहद भेद जो उसकी अपेक्षा हीन गुण और अधिक।
और १ कर्ष जवाखार मिलायें।