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कंदर
कंदूरी - जंगल के कोल-भील इसे खाते हैं और कंदमूल कंदर्प-संज्ञा पु० दे० "कंदर्प"।
नाम से पुकारते हैं। चुनार और मिर्जापुर के | कंदल-संज्ञा पुं॰ [सं० की.] नया अखुश्रा । जंगलों में यह बहुत होता है। कंद ऊपर से दे० "कन्दल"। स्याहीमायल औरभूरा होता है। इसे प्रथम उबालते [बुख़ारा, ता० ] उश्शन । समग़ हमाम । हैं । पुनः छिलका उतारकर आलू की भाँति संज्ञा पुं० [ ] एक प्रकार की गोंद । इसको तरकारी बनाकर खाते हैं। वर्षात अर्थात सकबीनज | कुदोल । कुदिल । मु. ना० । कार के महीने में इसके पत्र-मूल में गोल-गोल [मल.] कलिहारी । करियारी । कलिकारी । छोटे-छोटे बालू-तुल्य फल लगते हैं। यह भी | कंदल सफरी-संज्ञा पुं॰ [हिं० कंदल+का सफरी] उबालकर खाया जाता है।।
अनन्नास । (२) एक पौधा जो बागों में लगाया जाता कंदला-संज्ञा पुं० [सं० कन्दल ] एक प्रकार का है । देखने में यह सेमल के नूतन वृक्ष की तरह कचनार । कुराल । (Bauhinia retusa, जान पड़ता है। इसको डालियों के टुकड़े टुकड़े Hom.) दे. "कचनार"।
करके माली लोग पृथ्वी में गाड़ देते हैं जिनसे | कंदली-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक पौधा जो नदियों के . नये वृक्ष तैयार हो जाते हैं । लगाने से दो-तीन | किनारे पर होता है । यह बरसात में पुष्पित होता
वर्ष के उपरांत खोदने से इनकी जड़ में से बड़े है । उस समय इसमें बहुत से सफ़ेद-सफेद फूल - लंबे कंद निकलते हैं । इसे भून या उबालकर - लगते हैं। - शकरकंद की भाँति खाते हैं। यह स्वाद में मीठा | कंदलीदारु-संज्ञा पुं॰ [सं०] कचनात। : होता है । इसके प्रत्येक दंड में प्रायः सात पत्तियाँ | कंदवाकली-[?] बस्तियाज | लगती हैं। .
| कंदसार-संज्ञा पुं॰ [सं०] हिरन की एक जाति । गुण, प्रयोगादि-यह पुष्टि जनक शुक्र- कंदा-संज्ञा पुं॰ [ ](१) दे. "कंद" । (२) जनक, और वृहण एवं शरीर-पोषणकर्ता | शकरकंद । गंजी। (३) घुइयाँ । अरुई। है। उपयुक कंदमूल से यह गुण में न्यून होता संज्ञा पुं॰ [विहारी ] पिंडालू । कचालू । है। वन्यवासी साधु एवं अन्य जंगली लोग इन्हें, बंडा । खाकर जीवन-यापन कर सकते हैं, क्योंकि इनमें | कंदान:-[ ] तीतान । करात । पाहारांश पर्याप्त मात्रा में होता है।
कंदामणी चेड्डी-[ ता. ] सर्वजया । सब्बजया । (३) हिंदी में कंद और मूल दोनों को कंद- अकलबेर । कामाक्षी। देवकेलि । (Canna मूल कहते हैं।
Indica, Linn.) कंदर-संज्ञा पु० दे० "कन्दर"।
कंदामणु-[ ता० ] दे. "कंदामणी चेड्डी' । [पं०] कचूर।
कंदार:-[१०] एक प्रकार की मछली जिसे 'सनाम'। कंदर-[१] बादाम ।
भी कहते हैं। कंदरक-संज्ञा पु. दे. “कन्दरक"।
कदावल-[सिरि० ] कायफल । मु० अ० । म० अ०। कंदरक-[ ](Salix Viminalis) कँदु-संज्ञा पुं० दे० "कंदुक"। कंदररी-[ यू. जुन्दबेदस्तर ।
कंदु-पं०] शकाकुल मिली। कंदरस- यू.] चिलगोज़ा।
कँदुआ-संज्ञा पुं० [हिं० काँदो ] कंडोर | कंडो। कंदरस, कंदरूस-[१] (१) मकाई । ललमकरी । | कंदुक-संज्ञा पुं० [सं० की.] सुपारी । पुगीफल । खंदरूस । (२)चिलगोज़ा।
कँदूरी-हिं० संज्ञा स्त्री० [सं० कंदूरी] कुंदरू । बिंबा । कंदरान, कंदरून-[ तु०, अशन• ] बतम की गोंद ।। कुनरू । दे० "कंदूरी"। . [१०] सातर ।
कदूरी-संज्ञा स्त्री० [सं० कंदूरी] (1) कोल राई । कंदरूस-[ तु० अस्क० ] मकाई । खंदरूस ।
(२) एक बहुवर्षीय वृक्षारोहीलता जिसकी कंदरोलमर-[ कना०] पारस पीपला पारिष अश्वस्थ।। पत्तियाँ गहरे हरे रंग की चार पाँच अंगुल लंबी