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________________ कस्तूरी २३८७ कस्तूरी कस्तूरिका तु चक्षुष्या कवी तिक्ता सुगंधिका। करायें । इसके अतियोग से मुखमण्डल पीला पड़ उष्णा शुक्रपदा गुरू वृष्या क्षारा रसायनी ।। जाता है। इतने पर भी वैद्य लोग इसके निरंतर किलासकुष्ठ मुखरुक्का दौर्गन्ध्य नाशिनी। सेवन करने का उपदेश करते हैं, और कहते हैं कि यह पुरुषों को सात्म्य है। यह आश्चर्य की अलक्ष्मी मलवात तृट् छदि शोष विषापहा ॥ बात है। सदा भोजन में मिलाने से मुख में दुर्गन्ध शीतञ्च कासरोगश्च नाशयेदिति कीतिता। पैदा हो जाती है और बुद्धि मंद होजाती है। (नि. रत्ना.) इसके सूघने से उष्ण प्रकृति वालों के मस्तिष्क कस्तूरी-नेत्रों को हितकारी, चरपरी, कड़वी, को हानि पहुँचती है । यह दाँतों को भी हानिकर सुगधित गरम, शुक्रजनक, भारी, वृष्य, क्षार | है। इसकी गंध कासजनक होती है। दर्पघ्नऔर रसायन है तथा किलास, कोद, मुखरोग, कफ, कपूर और गुलाब । किसी-किसी के मत से एतदुगंध, अलक्ष्मी, मल, वात, तृषा; छर्दि, शोष, । जन्य उष्णता और रूतता का निवारण क्रमशः विष खाँसी और शीत का नाश करती है। कपूर और रोग़न बनफ्शा , गुलरोगन प्रभृति तर कस्तूरिका कटुस्तिक्ता क्षारोष्णा शुक्रला गुरुः ।। रोगनों से करें, मुखदौर्गन्ध्य निवारणार्थ इसके कफवात विषच्छदि शीतदौर्गन्ध्यशोषहृत् ।। सेवनोपरांत करफ्स व अजमोदा चाव लें। दाँत . (भा० पू० १ भ०) के लिए बंशलोचन और गुलाव दर्पघ्न हैं। प्रतिकस्तूरी-कड़ ई, चरपरी' कुछ खारी, उष्ण निधि-द्विगुण अंबर, डेवढ़ा साज़िश हिन्दी और वीर्य, शुक्रजनक और भारी है तथा यह कफ, वातव्याधियों में तिगुना जुन्दबेदस्तर । किसी-किसी वात, विष, वमन, शीत (सरदी), दुर्गन्ध और ने इसकी एकमात्र प्रतिनिधि मर्ज़ोश लिखी है। शोष रोग का नाश करती है। मात्रा-४ जौ भर से माशे तक । डाक्टर चक्षुष्या मुख दोषघ्नी किलास कुष्ठघ्नी च। २॥ रत्ती से ५ रत्ती तक देते हैं। (मद.) नोट-नानागत कस्तूरी की शक्ति तीन वर्ष कस्तूरी-नेत्रों को हितकारी, मुखरोग तथा तक स्थिर रहती है । परंतु नाने से बाहर निकाली दोषत्रय की नाशक ओर किलास एवं कोढ़ को दूर हुई कस्तूरी की शक्ति केवल एक वर्ष तक शेष करनेवाली है। रहती है। युनानी मतानुसार गुण, कर्म, प्रयोग–यह तिन, उष्ण, गुरु, प्रकृति-मासरजोया के मत से मुश्क द्वितीय वाजीकरण, बल्य, शीतनिवारक, कफनाशक, कक्षा में उष्ण और तृतीय कक्षा में रूक्ष है। कोई. वातनाशक, वमन रोधक, देह की सूजन उतारने कोई इसके विपरीत कथन करते हैं । शेन के मत वाला, मुखदुगंधिनाशक, और घ्राणदोषनाशक है। से यह द्वितीय कक्षा में उष्ण और रूक्ष है। किंतु (तालीफ़ शरीफ्री) उष्णता की अपेक्षा रूक्षता किंचित् अधिक होती मुश्क (मुस्क तिब्बती) वाजीकरण, शीघ्र है, सारांश यह कि रौक्ष्य द्वितीय कक्षांत तक होता पतन को दूर करनेवाला तथा (तवहुश) और है। गीलानी के अनुसार यह जितना पुराना खफकान, चिंता, मालीखोलिया, हृदय की निर्ब- . पड़ता जाता है इसमें उतनी ही उष्णता घटती लता लकवा, कंपवात, विस्मृति और पक्षाघात और रूक्षता बढ़ती है। (फ्रालिज) आदि रोगों को दूर करता तथा हानिकत्तो-युनानी चिकित्सा तस्वविदों के | प्रकृतोष्मा को उद्दीप्त करता है। (मुफ्र० ना०) कथनानुसार यह उष्ण प्रकृति को प्रसात्म्य है। मुश्क तारल्य (लतात) पैदा करता, अपने प्रायः यह शिरःशूल और नकसीर उत्पन्न करता प्रभाव से मन को उल्लसित करता तथा हृदय, है। विशेषतः उष्ण प्रदेश और उष्ण ऋतु में तो मस्तिष्क एवं समग्र उत्तमांगों को शक्ति प्रदान उष्ण प्रकृति वालों को कदापि इसका सेवन न | करता है । यह कामोद्दीपन करता, प्रकृतोमा की
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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