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कस्तूरी
२३बर
कस्तूरी जितनी भी नकली कस्तूरी है, वे सब बहुत* कम घुलती हैं।
दूसरे उड़नशील भी अधिक हैं । यदि कृत्रिम । कस्तूरी और प्रकृत्रिम कस्तूरी को खुला छोड़ दिया जाय, तो नकली कस्तूरो की गंध एक ही दिन में उड़ जाती है और वह काली काली वस्तु अव. शिष्ट रह जाती है। इसको खुलो रखी रहने से वजन भी नहीं घटता । पर असली कस्तूरी की गंध नहीं जाती । यद्यपि असली कस्तूरी की भी गंध उड़ती रहती है। इसी से असली कस्तूरी खुली पड़ी रहे तो वज़न (भार) में कम हो जाती है । परंतु जब तक सारे कस्तूरी-गध के परमाणु उसमें से न निकल जाय, गंध नहीं घटती। जुदबेदस्तर की बनी कस्तूरी गंधरहित या कुछ मंद गधयुक्त होती है। इसकी यह गंध भी कुछ देर में ही जाती रहती है। असली कस्तूरी को हाथ की अंगुली से मला जाय तो दो-चार घटे उसकी गंध दूर नहीं होती। कस्तूरी का एक विशेष स्वभाव यह भी है कि अपने संपर्क में श्राई हुई वस्तु को यह अपनो विशिष्टगंध तुरत प्रदान करती है, इसलिये गध द्वारा इसके मि..ण का ढंड निकालना कठिन होता है।
(३) कस्तूरी की तीसरी परीक्षा यह है कि यदि असली कस्तूरी को जल में डाल दिया जाय तो जल का रंग कुछ पीला सा हो जाता है,नकली का रंग जल में नहीं उतरता। एक प्रकार की जुदबे दस्तर को बनो हुई कस्सूरी पाती है । यदि यह जल में डालो जाय, तो जल गहरा पीत और भूरा होता है। परंतु यह रंग अधिक देर में अथवा हाथ लगाने या हलाने से उतरता है और असली फौरन ही रंग छोड़ देती है।
(४) चोथे यदि इसे रेक्टिफाइड स्पिरिट (हली ) में डाल दें तो यह घुल जाती है और कुछ थोड़ा सा भाग गाद का पेंदे में बैठ जाता है। उस गाद में मिली (कला), बाल और कुछ रेत के कण पाये जाते हैं। इनके सिवा और कोई वस्तु नीचे नहीं बैठती। यह गाद एक तोला कस्तूरी में अधिक से अधिक १॥ माशे निकलती है अर्थात् बाकी भाग सब कस्तूरी का होता है। पर जु'दबेदस्तर से बनाई हुई नकली कस्तूरी का | कुछ अधिक हिस्सा स्पिरिट में घुलता है। वाकी
(१) पाँचवी परीक्षा लहसुन में भी करते हैं जिसकी विधि यह है। कस्तूरी को एक डोरे पर खूब मल देते हैं और उस डोरे को सुई से पिरोकर लहसुन की पोथी के बीच से उस डोरे को दूसरी ओर निकाल देते हैं । थोड़ी देर के पश्चात् जब धागा सूख जाता है. जो लहसुन के स्पर्श से गीला हो जाता है। उसकी गंध लेने पर यदि कस्तूरी की गंध अावे, तो समझो कस्तूरी असली । गंध न श्रावे, तो नकली समझना चाहिये । पर इस परीक्षा में सावधानी की आवश्यकता है अर्थात् धागे पर कस्तूरी को अच्छी तरह मलना चाहिये जिससे लहसुन में से धागे निकालने पर कस्तूरी विल्कुल घुल न जाय । यदि सारी कस्तूरी घुल जायगी, तो कभी भी गंध नहीं पा सकती। इसलिये अच्छी तरह कस्तूरी मलकर लगानी चाहिये अथवा कस्तूरी मर्दित डोरे को लहसुन के रस के हलके घोल में एक बार डुबोकर निकाल लेते हैं और जब डोरा सूख जावे तो उसको सूधने पर कस्तूरी की खुशबू श्रावे तो समझना चाहिये कि असली कस्तूरी है अन्यथा बनावटी है । अथवा डोरे में प्रथम लहसुन का रस वा हींग लगाकर पुनः उसे नाफे के आर-पार करके सूंघने पर यदि उसमें से लहसुन वा हींग को गंध आवे तो समझना चाहिये कि कस्तूरी नकली है, अन्यथा असली है।
इनके अतिरिक्त चीन औरतिब्बत के व्यापारियों में भी कस्तूरी परीक्षा की अनेक विधियाँ प्रचलित हैं जो यद्यपि बहुत विज्ञानसम्मत तो नहीं, पर इसकी असलियत जानने में बहुत हद तक साहाय्यभूत होती हैं। प्रस्तु, जब कभी उनकी वास्तविकता में संदेह उपस्थित होता है तो
(६) मृगनाभि वा नाफे से कुछ दाने निकालकर पानी में छोड़ देते हैं। यदि ये दाने बने रहते हैं, तो यह जाना जाता है कि कस्तूरी असली है। यदि वे घुल जाते हैं, तो वह नकली है।