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________________ कलौंजी २३७३ जाय, करते रहें । जब सम्पूर्ण शीरा अभिशोषित हो तब उसकी टिकिया बनाकर, वड़े प्यालों में रखकर पाँच सेर उपलों की अग्नि देवें, अत्यंत श्वेतवर्ण की भस्म प्रस्तुत होगी । इसे महीन पीसकर सुरक्षित रखें। | | मात्रा - एक रत्ती । गुणधर्म तथा प्रयोग - प्रारंभिक कृच्छ श्वास में उपयुक्त अनुपान के साथ इसका उपयोग करने से चमत्कारिक गुण प्रदर्शित होगा । कैसा ही कष्टप्रद कास हो, इससे तुरंत शांत होजाता है । बँधा हुआ कफ सरलतापूर्वक निःसरित होकर कृच्छ्रश्वास जन्य कष्ट का निवारण होता है। अस्सी वर्षीय जरा जरठ व्यक्ति को रात-रात भर नींद नहीं आती और खाँसते-खाँसते बेदम हो जाते हैं इसके उपयोग से वे रात्रि भर सोते रहे हैं। यह विलक्षण वस्तु है और श्रवश्य आदरणीय है । ( जड़ीबूटी मै खवास ) 1 कसौंजी - संज्ञा स्त्री० दे० "कसोंजा" कसौंदा -संज्ञा पु ं० दे० "कसोंजा" । कसौंदी-संज्ञा स्त्री० दे० “कसौंजा" । क़ह पुः - [ अ० ] ( १ ) कासा । प्याला । (२ क्षत रक्त परिपूर्ण होना । कस्तोका अग़ला -[ सिरिं० ] बख़ुर मरियम | कस्ऊ. म - [ हमीरी भाषा ] गदहा । गर्दभ | कस्करीला, क़स्करीला - [ स्पेन ] छोटा छिलका | दे० “कैस्करीला” । करकरेली कॉर्टेक्स - [ ले० Cascarillae Cortex ] क्रोटन ईल्मुटेरिया नामक अमेरिकन वृक्ष की छाल | बर । दे० "कैस्करीला " | कस्करैला - दे० "कस्करीला " । क़स्क्लस - [ श्रु० ] शेर । कस्कस - [ ? ] इंद्रायन का फल | मूर - [ यू०] पुदीना । कस्कारा, क़स्कार:- [ स्पेन ] छाल | क़त्र । नरकास - [ अ ] ( १ ) अजमोदे की तरह का एक प्रकार का उद्भिज्ज | पौधा । ( २ ) शेर । ( भूख । क्षुधा । भूख की अधिकता । कास्कय: - [ ? ] पीलू | झाल | ३ ) क़स्क्रियून -[ यू०] सौसन बर्री । (ख० श्र० ) चमेली । लु० क० । - [ पं० ] खेटी । शगली । कस्की कस्कु कस्ता सीस कुट्ट - [ ता० ] कत्था । खदिर । कस्कूबा - [ ? ] कड़ | कुमुम । बरें । जंगली कस्कून:- [फ़ा॰ ] ( १ ) कुसुम्भ | कड़ | बरें । (२) सुभ बीज । बर्रे | कस्क्युटा रिल्फेक्सा - [ ले० Cuscuta reflexa, Rort. ] श्रमरवेल । अकाशवेल | बँवर | एप्ल - [ ० Custard apple ] कस्टर्ड शरीफ़ा । सीताफल । श्रात | क़स्तरोन -[ यू० ] विजौरा नीबू | तुरंज । कस्तज - [?] चौलाई का साग । बक़लहे यमानी । कुरु तुबीर - [ श्र० ] लिंग । शिश्न । कस्तल - [ फ्रा० ] एक प्रकार का ख़नाफुस । कस्तन - [ का० ] लाल साग | पत्र प्रांत क़स्तन - [ यू० ] दीसक्क्रूरीदूस के अनुसार एक उद्भिज्ज जो प्रति वर्ष नया उगता है। इसका तना पतला चोपहल लगभग गज भर वा उससे भी अधिक लंबा होता है । पत्र लंबे वृत्त के समीप चौड़े और नोक की श्रोर क्रमशः पतले होते जाते हैं । देखने में ये बलूत पत्रवत् होते हैं। कटावदार होते हैं । यह सुगंधयुक्त होता है । इसकी जड़ पतली और कुटकी की तरह की होती है । इसकी जड़ एवं पत्ती अधिकतर उपयोग में श्राती है । अंताकी के अनुसार इसका फूल पीच वर्ण का होता है और इसमें से सातर की सी सुगंध श्राती है। रोम देशवासी इसे बर्तानीक़ी कहते हैं जो सरवाली का ही अन्यतम पर्याय है । किसी किसी के मत से यह एक अपरिचित श्रौषधि है । प्रकृति — द्वितीय कक्षा में उष्ण एवं रूक्ष | कस्ता - [फा०] चौलाई का साग | लाल साग । कस्तानिया - [ यू० रू० ] शाह बलूत । बलूतुल् मलिक | 1 क़स्तानी की - [ सुदान ] चौलाई का साग । बक़ल हे । यमानी । क़स्तारूस - [ कस्ता सीस - [ यू०] एक पत्ते चौड़े होते हैं । ] उसारहे लहूयतुत्तीस । प्रकार का लबलाब जिसके
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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