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________________ कसौंजा २३७१ कसांजा रस कान में टपकाने से बिच्छू के ज़हर में लाभ होता है। युनानी मतानुसार- सर्प-दष्ट व्यक्ति को काली कसौंदी की जड़ कालीमिर्च के साथ पीसकर पिलाने से बहुत उपकार होता है। (म० अ०) अतिसार युक्त जलोदर में काली कसौंदी की जड़ को कागजी नीबू के रस में पीसकर प्रलेप करने से बड़ा उपकार होता है। (ख.अ.) .१॥ तोला कसौंदी नीबू के रस में पीसकर पिलायें और भरहर (तूबर) को दाल और खशका बिना नमक खिलायें। इससे भी उक्त रोग में बहुत लाभ होता है । काली कसोंदी की जड़ नीबू के रस में पीसकर आँख में लगाने से आँख की ज़र्दी जाती रहती है। (ख० अ०) नव्यमत डीमक-व्यंग ( Pityriasis ) और विचर्चिका जनित चकत्तों पर काली कसौंदी और मूली के बीजों को गंधक और पानी के साथ पीस कर लगाते हैं। इसी हेतु पिष्ट कासमईमूल एवं चंदन भी काम में आता है। (फ्रा० इं० १ भ० पृ० ५२१) नांदकर्णी-त्वक् पत्र और बीज तीव्र रेचक | (Cathartic) है, जड़ कफनिःसारक ख्याल की जाती है। पत्तियाँ कृमिघ्न और शोधक (Antiseptic) हैं । चंदन को कसौंदी के पत्तों के रस में पीसकर बनाया हुश्रा वा कसौंदी पत्र-स्वरस में नीबू का रस मिलाकर बनाया प्रस्तर (Plaster') अथवा कसौंदी-मूल को कॉजी में पीसकर वा इसके बीजों के चूर्ण का बना प्रलेप दद् एवं रजक कण्डू (Dhobi itch) की अमोघ औषधि है। कास में कफनिःसारक रूप से इसका अंतः प्रयोग होता है। हिक्का और श्वास प्रभूति रोगों में इसकी पत्ती का काथ वा फाट ( Infusion) उपयोग में आता है। सर्पदंश में इसकी जड़ कालीमिर्च के साथ दी जाती है । बहुमूत्र ( Diabetes) में इसकी | छाल का फांट वा बीजों का चूर्ण मधु के योग से | देने से उपकार होता है (दूरी)। इसके बीज | एवं पत्र और गंधक को एकत्र पीसकर वा इसकी छाल पीसकर उसमें मधु मिलाकर दद् एवं विचर्चिका और व्यङ्ग ( Pityriasis) के चकत्तों पर अनुलेपन करते हैं। इससे श्राई कडू और दद् भी आराम होते हैं। इसमें उन गुण की विद्यमानता इसमें तथा (Cassia) के अन्य भेदों में पाये जाने वाले क्राइसोफेनिक एसिड के कारण होती है। सज़ाक को उग्रावस्था के उपरांत की दशा में इसकी ताजी पत्तियों द्वारा निर्मित फांट की उत्तरवस्ति उपकारी होती है और मुख द्वारा देने से इसका कृमिघ्न प्रभाव होता है। फिरंगीय क्षतों के प्रक्षालनार्थ इसका बहिर प्रयोग होता है। कान में कीड़े घुसने पर इसे कान में टपकाते हैं। ग्रामवातिक और प्रादाहिक ज्वरों में भी इसकी पत्तियों का फांट ( Infusion) व्यवहार में प्राताहै । कामला (Jaundice) रोग में यह शर्करा के साथ मिश्रित कर व्यवहार में लाते हैं। प्रस्राव (मूत्र) की अल्पता में समग्र चुप का काढ़ा उपकारी बतलाया जाता है । कफनि:सारक रूप से उम्र कासमें उपकार होते हुये पाया गयाहै। (इं० मे० मे० पृ. १८३) कर्नल चोपरा के अनुसार यह सर्पदंश में उपकारी मानी जाती है । परन्तु कायस और महस्कर के मतानुसार इसके पत्ते सर्प और विच्छ के विष के लिये निरुपयोगी है। __ जड़ी बूटी मै खवास-काली कसौंदीके बीज और पत्ते । और चीनी ॥ इनका यथाविधि शर्बत तैयार करके इसमें दो रत्तो प्रति मात्रा के हिसाबसे पोटासी आयोडाइड और - प्रेन सुरासार घटित रसकपूर विलीन करके रखें। मात्रा । तोला शर्बत सुबह शाम किंचित् जल के साथ । यह संधिवात ओर फिरंग के लिये लाभकारी है। ___एक तोला कसौंदी की पत्ती को साधारण जोश देकर वस्त्रपूत करलें। फिर उसमें २ तोला शहद और रत्ती रस कपूर मिलाकर उपयोगित करें, इससे भी उपयुक रोगों में बहुत उपकार होता है।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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