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कसौंजा
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कसौंजा
___ कसौंदी के अन्य भेद आयुर्वेदीय ग्रंथों के अनुशीलन से यह ज्ञातहोता है कि यथासंभव उन्होंने कसोंदी के किसी अन्य भेद का उल्लेख नहीं किया है। किंतु भारतीय श्रोषधि विषयक पाश्चात्य लेखकों एवं हकीमों के लिखे हुये ग्रंथों में इसका विरादोल्लेख मिलता है। अस्तु, डीमक महोदय फार्माकोग्राफिया इंडिका प्रथम भाग के पृष्ठ ५२०-१ पर लिखते हैं कि कप्तौंदी दो प्रकार की होती है-(१) कसोंदी और (२) काली कसोंदी। उनके मत | से काली कसोंदी ही श्रायुर्वेदोक कासमर्द है और इसका आदि उत्पत्ति स्थान भारतवर्ष ही है। परन्तु कसोंदी बाहर से आकर यहाँ लगी है और अब हिमालय से लेकर लंका पर्यंत सर्वत्र पाई जाती है। इसके बाद के लिखे हुये अन्य सभी अँगरेजी भाषाके अन्थों में उपयुक्र वर्णन का अनुसरण किया गया है । मुसलमान ग्रंथकार दोनों प्रकार की कसोंदी को एक ही जातिका भेद मानते हैं। तालीफ शरीको के अनुसार कसोंदी के बड़े भेद को कसोंदा कहते हैं । इन दोनों की पत्ती में | यह भेद होता है कि पत्ती लाल मिर्च की पत्ती की तरह और टहनियाँ काले रंग की होती हैं और यह कसौदा की अपेक्षा सुलभ नहीं होती है ।
वाचास' नामक ग्रंथ में उल्लेख है कि कालो कसौंदी के फूल श्यामता लिये पीतवर्ण के और पत्तियाँ श्यामता लिये गंभीर हरित वर्ण की होती हैं । यह प्रायः पर्वतों पर होती है । ब्रह्मदेश में यह बहुतायत से मिलती है । हिंदुस्तान के ऊपरी भागों में कम मिलती है। खाजाइनुल अद्विया के मत से कसोंदा और कसौंदी भेद से यह दो प्रकार की होती है । इनमें कसोंदा का पेड़ अपेक्षाकृत बड़ा होता है और पत्तियाँ लंबी बादामी शकल की होती हैं । कसौंदी का पेड़ उससे छोटा और पत्ते चौड़े होते हैं । प्राकृति में दोनों समान होती हैं । किंचित् भेद के साथ दोनों के फूल पीले फली लंबी हलाली शकल की लोबिये की फली को तरह, पर उससे चौड़ी होती है जिसके भीतर मेथी के दानों की तरह बीज होते हैं। किसी किसी ग्रंथ में इसकी मादा किस्म के भी दो भेद उल्लिखित हैं। इनमें से एक का फूल धो के फूज ।
की तरह, पीला और दूसरीका फूल और डालियाँ काली होती हैं । इसको काली कसोंदी कहते हैं। पत्तियाँ किसी भाँति तिक एवं तीचण होती हैं। अन्य ग्रंथों में कसौंदी की अन्यतम संज्ञा कसौंजी भी लिखी है । किसी किसो ने कसौंदी को कसोंजी से भिन्न माना है । तिब्बुरशोआ में उल्लेख है कि इसकी वह पत्ती प्रयोग की जाती है जो मिठास लिये किंचित् तिक होती है। हिंदी-शब्द सागर के रचयिता गण इसके एक लाल भेद का भी उल्लेख करते हैं। उनके मत से लाल कसौंजा सदाबहार होता है और इसकी पत्तियाँ गहरे हरे रंग की कुछ ललाई लिये होती हैं तथा फूल का रंग भी कुछ ललाई लिये होता है। इसकी पत्ती और बीज बवासीर की दवा के काम आते हैं।
पा-कासमदः, अरिमर्दः, कासारिः, कर्कशः, कालः (कालकण्टक), कनकः, कासमर्दकः (ध. नि.); राजनिघंटु में 'कर्कश' न लिखकर उसकी जगह 'जारणः ओर दीपक:' ये दो नाम अधिक दिये हैं; कालंकतः, विमहः, कासमदिकः, जरण: (रा.), काशमईः (१० टी०) कासुन्दः, कास्कन्दः, कसनमई नः, कसका (वै० निघ०) (भैष०) दीपन, तुषा (चरक), कासमई:, कासकः, कर्तकासन, मर्दकः, कंटकंटः, (दव्य २०) अंजनः, नातरः (मद० नि०) कोलं (गण. नि०) कासमर्दिः (के.)-सं० । कसौंजी, कसोंजा, कसौंदी, कसौंदा, कासिंदा, गजरसाग, बड़ी कसौंदी, अगौथ-हिं० । बड़ी कसौंदी, जंगली तकला-द. | काल कासुदा, कालकशुदा, चाकुंदा-बं०कैशिया श्राक्सिडेण्टेfete Cassia Occidentalis, Linn. कै० सेना Cassia Senna,Roxb.ले०। निग्रोकाफी Negro-Coffee-अं०। वेरा विरे, पोनविरे, नात्तम्-तकरै-ता० । कसिंध, नुति कसिंदा, पैडी तंगेडु, तगर चेडु, कसिविंद चेहते । नाट्डम्-तकर, पोझ विरम्, पोन विरे, पेरविरै-मल० । डोडु-तगसे, कासविंदा, कासवदीकना० । काल्ल कासुदा,होडुतैकिलो-कोकसंदी कासोदरी, जंगली-गु० । रान कासविंदा, किसुवै, रान ताकल-मरा० । हिकल-मरा०, गु० । पेनितोर, रटतोर-सिंह० । मेज़लि, मैज़लि-बर० ।