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________________ वनवास, कनवी कवानस, क़वानस - [ ० ] संगदान | क़ौनस् । कवानिया - [ यू०] ख ब । शज्रतुल् मरात | क्लवानिया, क़वानियून, क़नियून - [ ? ] ( १ ) मस्हू. क्रूनिया । (२) कफ्रेदरिया । समुद्रफेन । क़वानूस - [ श्र० ] एक तौल जो डेढ़ या तीन श्रौक्रिया और तेल (जैस) से चार तोले छः माशे और शराब से तीन तोले एक माशा होती है । क़धाम - संज्ञा पु ं० [अ० ] ( १ ) पकाकर शहद की तरह गाढ़ा किया हुआा रस । क्रिवाम । जैसे— सुरती का क़वाम । ( २ ) चाशनी । शीरा । ( ३ ) डील डोल । कद व कामत । क़वामीस - [ यू०] फिरोजे की तरह का एक पत्थर जो काशमीर और तिब्बत में होता है । क़वामुस - [ यू० ] क्रन्ती बाकुला । - क़वामूस - [ यू०] लाजवर्द । राजावर्त्त । क़वायादस - [ यू०] बाकला । कवार-संज्ञा पु ं० [सं० नी० ] ( १ ) कमल । पद्म (२) एक प्रकार का ढेंक वा जलपक्षी जिसकी चोंच बहुत लम्बी होती है । Tentalus falcinellus वै० निघ । [फा० ] गन्दना । लु० क० । कवार का पाठा - [ राजपु० ] घी क्वार । घृतकुमारी । कवाल - [ ? ] सूअर । कवालफ़ - [ ? ] बादावर्द । कवाली -संज्ञा स्त्री० दे० "कवली" । खुश्की की घातक हवा को श्रवासिनकहते हैं । कवि (वी) - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] खलीन 1 लगाम । २३४३ संज्ञा पुं० [सं० पु० ] उल्लू । कवि रु-संज्ञा पु ं० [सं० क्वी० ] लगाम । खलीन । 'संज्ञा पु ं० [देश० ] एक वृक्ष का नाम जो मलाया प्रायद्वीप में होता है । इसके फल गुलाब जामुन की तरह और रसीले होते हैं । बंगाल, दक्षिण भारत तथा बर्मा में भी अब इसके पेड़ लगाए जाते हैं । इसे मजाका जामरूल भी कहते हैं । कविका - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] ( १ ) केवड़ा | केविका पुष्प वृक्ष | रा० नि० व० १० । ( २ ) कवया लगाम | खलीन । ( ३ ) कवई मछली । कवयी । त्रिका० । कविञ्जक - संज्ञा पु ं० [सं० पु ं० ] एक पक्षी | कवि संज्ञा पु ं० [ ५० ] कैथ | कठबेल । कविट की गोंद - संज्ञा स्त्री० [ ५० ] कैथ की गोंद । कविट पान - [ मरा० ] कैथ । कवित्थ, कत्थि-संज्ञा पुं० [सं० पु० ] कैथ का पेड़ । कपित्थ वृक्ष । श्र० टी० । कविय - संज्ञा पुं० [सं० क्ली० ] लगाम । खलीन । कविराज - संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] (१) बंगाली वैद्यों की उपाधि । (२) वैद्य । (३) श्रेष्ठ कवि | संज्ञा पुं० [फा०] जल धनिया । कबीकज । कविराय - संज्ञा पुं० दे० कविराज । कविरि संद्र - [ते . ] कत्था | खैर । खदिर । कविला - [ ता० ] गुलदारा । कविले - [ ते ० ] तपीस । कविस्क - ( फ्रा० ] ( १ ) जरजीर । ( २ ) बाकला । कवी - [ मरा०, गु० ] कैथ | कवी गोंद - [ गु०, मरा० ] कवीट गौन -[ गु० ] } कैथ की गोंद | क्नवासिफ़ - [अ० ] समुद्र और दरिया की घातक क़वीशदीद -[ ० ] ( १ ) बलवान | ताक़तवाला । हवायें | जलीय ज़हरीली हवायें । मज़बूत ज़ोरदार | ( २ ) रोगविज्ञान में यह शब्द रोग के विशेषण की तरह प्रयोग श्राता है । श्रर्थात् शदीद और क़वीमर्ज़= बलवान रोग । स्थेनिक | Sthenic ( श्रं० ) । कवीस्ते तल्ख - [फा० ] इन्द्रायन | कवेज, केह - [ फ्रा०] सुर्ख़ बुस्तानी जुरूर | कवेज़ - [ फ्रा० ] जुरूर | कवेल-संज्ञा पुं० [सं० क्री० ] उत्पल । कुवलय । श० च० । नीला कँवल । कवेला - [ फ्रा० ) कमीला । संज्ञा पु ं० [हिं० कौवा + एला (प्रत्य० >] कौए का बच्चा । कवैया -संज्ञा [१] मकोय | कवीठ - संज्ञा पु ं० [सं० कपीष्ट, प्रा० कविट्ठ ] कैथा । कपित्थ | [ राजपु० ] कैथ ।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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