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कलियुगालय
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कलीजीदूनियून - मर जाता है। अर्थात् इतने दस्त होते हैं कि कलि | जालकक १ मुकुल । कुडमल । अविकशित . मनुष्य को होश नहीं रहता, और अन्त में मर | पुष्प । कोरक । शारक । शिगूफ़ा । अन्य भाषा के
जाता है। श्राशु मृतक परीक्षा करने पर रगों से | पयो०-ज़हर,(बहु• अज़हार) वा ज़हरः (३०) रन तरावश पा जाने ( Extra vasation गुचः (बहु० गुचहा)-का० । कली (बहु. of blood.) के साथ मस्तिष्क और उसकी कलियाँ, क्रि. अ. कलियाना = कत्ली लेना) झिल्लियों में रक्त संचय के लक्षण पाए जाते हैं। -हिं० । कल्लो (बहु० कल्लियाँ )-६० । मोग्गु फुफ्फुस, यकृत, तथा वृक्कद्वय में गंभीर रक्त संचय (बहु. मोग्गुगलु)-ता० । मोग (बहु० मोपाया जाता है । आमाशयस्थित श्लैष्मिक कलाओं ग्गलु)-ते। मोह (बहु० मोटु कल)-मल० । में प्रदाह के लक्षण दीख पड़ते हैं।
मोग्गू (बहु० मोग्गुग लु), मग्गे (बहु. मग्गे विष-शांति के उपाय
ग लु)-कना० । कलि-बं० । कलो (बहु० क ले) ____ यदि कलिहारी से दस्त श्रादि लगते हों, तो -मरा० । कलि ( बहु० कालियो)-गु० । मोट्ट बिना घी निकाले गाय के माठे में मिश्री मिलाकर सिंगा० । प्राङोन वा अंगोन (बहु० प्राङोन पिलायो।
मियाश्रा, अंगोन मियाा )-बर० । बड Bud ___ कपड़े में दही रखकर और निचोड़ कर, दही का अं०। पानी निकाल दो। फिर जो गाढ़ा-गाढ़ा दही रहे, (२) ऐसो कन्या जिसका पुरुष से समागम उसमें शहद और मिश्री मिलाकर खिलाओ। इन न हुआ हो। (कच्चो कलो-अप्राप्त यौवना)
दोनों में से किसी एक उपाय से कलिहारी के (३)चिड़ियों का नया निकला हुआ पर । : विकार नाश हो जायेंगे।
संज्ञा स्त्री० [अ०कलाई पत्थर वा सोंप आदि कलियुगालय--संज्ञा पु० [सं०पु' ] बहेड़े का पेड़ का फुका हुआ टुकड़ा जिससे चूना बनाया जाता .. भा० पू० भ० ।
है । जैसे-कली का चूना। कलियुगावास-संज्ञा पु० [सं०पु.] बहेड़े का पेड़ Urolaked lime, Quick lime . भा० पू० १ भ०।
(Calcium Oxide.) कलियुस् सबागीन- [अ० ] सज्जी । अशवार ।
संज्ञा स्त्री० [?] काँजी । लु. कः । कलियून-[ यू० ] इसबगोल ।
कली,किली-[अं०] सज्जी । अशवार । कलियूम-[ ] मजरो ।
क़लोई-[?] अर्तनोसा । चोबक उश्तान । आज़रबू । कलियूस-[यू.] सजो । अशख़ार। | कलीक-[ तिनकाबिन ] जंगलो' गुलाब का फूल । कलियोनेरिया-[ ले० ] एक प्रोषधि,
दलीक। कलिय्यः-[अ०] दे० "कलिया"।
कलीकटी-[ ? ] माडल । कलिवृक्ष-संज्ञा पु[सं०पु.] बहेड़े का पेड़ । विभी
कलीकरुन-[?] (१) बुस्तानी राई । (२) जरतक वृक्ष । हे. च०।
____जीर । तरामिरा । कलिसोदरा-संज्ञा स्त्री० [सं०स्त्री.] हड़जोड़ । अस्थि
कली-का चूना-संज्ञा पुं० दे० "कली" । संहारी।
| कली कान कलोसर-[ ! ] त रब । कलिहारी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] कलियारी । करि- क़लो की-[?] अलकतरा । कोर । लु० क.।
यारी। करिहारी। लांगली। भा० पू०१ भ०। क़लोज़दान-[फा०] ततैयों का छत्ता | परे का वैःनिध वा. व्या० महाविषगर्भ तैल ।
छत्ता । कलींजुवा-[?] झाँपल नामक पक्षी।
कलीजर-संज्ञा पुं० [!] विष्णुकांता । कलींदा-संज्ञा पुं० [सं० कलिङ्ग] तरबूज । हिनवाना। | कलीजा-[फा०] ततैया । भौंरा । बरें । भिड़। कली-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] (१) बिना | कलोजीदूनियून-[.] (1) हल्दी । जर्दचोब । - खिला फूल । मुंहबंधा फूल । बोडी । कलिका । (२) छोटा मामोरान । ममीरी ।