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________________ कलियारी जिसमे की उसमें क्षमता हो, उतनी मात्रा में डक्क रोगी को देने से ज़हर उतर जाता है। विषैले साँप, कनखजूरे वा विच्छू के काटे हुये स्थान पर इसकी जड़ शीतल जल में पीस लगा कर सेंकने से उपकार होता है, ऐसा मदरासियों का विश्वास है । शरीर की स्वागत कीट-रोगों में इसके लेप से कल्याण होता है । कोंकण में उदरस्थ कृमियों के निकालने के लिये इसे पशुओं को खिलाया जाता है । इसकी जड़ को कूटकर पानी में भिगो दें। पुनः इसको मलकर छनने से जो श्वेतसार प्राप्त हो, उसे उचित मात्रा में यथा विधि सेवन करें । इससे सूजाक श्राराम होता है । फा० ई० ३५० पृ० ४८१ । टिप्पणी--नादकर्णी के अनुसार इसे ६ रत्ती की मात्रा में मधु के साथ देवें । कुछ और उदरशूक्ष में तथा अग्रस्थ कृमियों के निकालने के लिये इसकी जड़ और एतत्द्वारा प्राप्त श्वेतसार का ब्यवहार परमोपयोगी सिद्ध होता है । चित्रक-त्वक् के साथ इसे गोमूत्र में पीसकर वेदनायुक्त श्रशकुरों पर लेप करें । - ई० मे० मे० पृ० ३६५-६ इसको २ ॥ रत्ती से ६ रत्ती तक की मात्रा में दिन में तीन बार देने से शक्ति वृद्धि होती है । इसको सोंठ के साथ फाँकने से भूख बढ़ती है । इसे गुड़ के साथ खिलाने से श्रांत्र कृमि नष्ट होत हैं। इसको पीसकर बुरकने से क्षतजात कोट नष्ट होते हैं । इसके पत्तों को पीसकर छाछ के साथ देने से कामला- यर्कान नष्ट होता है । इसकी जड़ गर्भाशय में धारण करने से वेदना निवृत्त होती है। प्रसव काल में इसकी जड़ के रेशों को हस्तपाद में बाँधने से बहुत आराम से शिशु प्रसव हो है। इसकी जड़ पानी में पीसकर नास लेने से सर्प विष की शांति होती है। इसकी जड़ को काँजी में पीसकर गर्भवती स्त्री कलियारी के पैरों पर लेप करने से शीघ्र बच्चा निकल पड़ता है । ख ० ० ॥ 1 आर० एन० चोपरा - प्राचीन संस्कृत लेखकों ने गर्भपातक रूप से इसके उपयोग का उल्लेख किया है । जनसाधारण के विश्वास के विरुद्ध, साधारण मात्रा में इसकी जड़ विषैलो नहीं होती, प्रत्युत यह परिवर्तक एवं बल्य गुण विशिष्ट ही प्रतीत होतो है। विषक कोट एवं सरीसृप दंशों पर इसकी जड़ को जल में पीसकर लेप करने से वेदना शांत होती है और विष का निवारण होता है । - इं० डू० ई० पृ० ५८० | परन्तु कायस श्रोर महस्करके मतानुसार इसकी गाँठ र पत्ते साँप श्रर विच्छू के विष में बिलकुल निरुपयोगी हैं। करिहारी या कलिहारी को जड़ को पानी में पीसकर नारू या बाले पर लगाने से नारू या बाला श्राराम हो जाता है । कलिहारी की जड़ पानी में पीसकर बवासीर के मस्सों पर लेप करने से मस्से सूख जाते हैं । कलिहारी के जड़ के लेप से व्रण, घाव, कंठमाला, अदीठ-फोड़ा ओर बद या बाघी- ये रोग नाश हो जाते हैं । कलिहारो को जड़ पानी में पीसकर सूजन श्रोर गाँठ प्रभृति पर लगाने से फौरन श्राराम होता है । कलिहारी की जड़ को पानो में पीसकर अपने हाथ पर लेप करलो । जिस स्त्री को बच्चा होने में तकलीफ होती हो, उसके हाथ को अपने हाथ से छुला, फौरन बच्चा हो जायगा । अथवा कलिहारी को जड़ को डोरे में बाँधकर बच्चा जनने वालो के हाथ या पैर में बाँध दो, बच्चा होते ही फौरन खोल दो, इससे बच्चा जनने में बड़ो सानो होतो है। इसका नाम हो गर्भघातिनो है। गृहस्थों के घर में ऐसे मोके पर इसका होना दायक है। बड़ा लाभ कलिहारी के पत्तों को पीस-छान कर चूर्ण बना छाछ के साथ खिलाने से पोलिया वा कामता राम होजाता है । अगर मासिक-धर्म रुक रहा हो, तो कलिहारी की जड़ या ोंगे की जड़ अथवा कड़वे वृन्दावन की जड़ योनि में रखो ।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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