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कहम कईमक समुद्रफेन, कई समुद्री कीड़ों की हड्डियाँ कर्तित-वि० [सं० त्रि.] कटा-छुटा । कर्तन किया श्रादि हैं।
हुआ। कर्त-[मु.] कत ।
कर्द-संज्ञा प[ दे. "क"। कर्त:-[फा० } कसरानी बूटी । अस्ल । | कर्दमी-संज्ञा स्त्री॰ [सं० सी० ] मुग्दर; गन्धसार, कतन:, कर्तीन:- फा०] मकड़ी का जाला। . सप्त पत्र । वृत्तपुष्प, गन्धराज । विटप्रिय, रा० कतम-[?] एक प्रकार का विष जो कदाचित् मीटा | नि० व० १० । तेलिया का एक.भेद हो।
कदान-[!] एक प्रकार का पक्षी जो गौरैए से कर्तलाइन-[ यू० ] कनकराबी ।
___ बड़ा होता है। कतेहेदश्ती-[फा०] इज़ख़िर ।
कार-[ ! ] दरदार । कर्तर-[ ? ] अकरकरा ।
कई-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] कर्दम । कीचड़ । कर्द।
श०२० कतरी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] विभाण्डो । दन्तीभेद
कई र-संज्ञा पुं० [सं० पु.] (1) करहाट । श्रावतकी।
कँवल की जड़ । (२) कीचड़ । पंक । मे. कर्ता-संज्ञा पुं० [सं० स्त्री० ] वायु । वात | पवन |
उत्रिक । [३] कमल की डंडी । मृणाल । (४) रा०नि० व०६।
जल में होने वाले पौधे वा घास । (५) कमल कान-[ तु० ] सफेदा ।
की जड़। काली-संज्ञा स्त्री० [सं. स्त्री.] ताड़ की मादा
वि० [सं० वि० ] कीचड़ में चलने वाला किस्म का वृक्ष | ताली । ताड़ी।
कईन-संज्ञा पुं॰ [सं० की.] पेट का शब्द । पेट कत्तन-संज्ञा पु० [सं० वी० ] (1) काटना । कत
की गुड़गुड़ाहट । कुतिशब्द । हे० च० । रना, छेन । मे० नत्रिक । (२) सूत इत्यादि | कई म-संज्ञा पु० [सं० की.] (१) गंधराज कातना (३) काटने का एक अस्त्र ।
रा०नि० व० १२ । सु० चि० २५ अ०। (२) कर्तनक-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का दाँत । |
मांस । श. च. (३) आँख की पलक का ( Incisor teeth) प्र० शा० ।
एक रोग जिसमें आँख में कीचड़ भरा रहता है। कर्तनी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] कतरनी । कैंची।
इसे वर्मकई म कहते हैं। दे० "वर्त्मकद्दम" | कतरिका-संज्ञा स्त्री० दे० "कर्तरी" ।
कद्दम कद्द मक-संज्ञा पुं० [सं० पु.] (1) कर्तरी-संज्ञा स्त्री० [सं. स्त्री.] (१) छोटी तल.
कीचड़ । कीच । चहला । कादा। वार । छुरी । कटारी । कृपाणी । (२) कैंची।
संस्कृत -निषद्धर, जम्बाल, पङ्क । कतरनी । कर्ती । सु० चि० । यथा
साद (अ.), दम ( मे०)। "स्नायवस्थि गर्भशल्यानां केशादीनाञ्चकर्त्तने ।
गुण-कीचड़ दाह, पित्त रोग और शोफ विविधाकृतयोयोज्याः कर्तर्यः कत्तरीनिभाः॥" नाशक है तथा ठंढा और दस्तावर है। भा०।
अत्रिः ।
राज । (२) एक प्रकार का शलि धान । (३) क्षुद्र करबाल | कटारी।
भा० पू०१ भ. शाक व० दे० 'शालि'। (३) कर्तरीय-संज्ञा पु० [सं० क्को• ] सुश्रुत में स्थावर तेरह प्रकार के कंद विषों में से एक प्रकार का
विषों में से सात प्रकार के त्वक्सार और निर्गस कंद विष । प० मु० । सु० कल्प० २० ।
विष का एक भेद । सु० कल्प० २ अ०। दे० "कन्दविष" । (४) पद्मिनी कदम । कत्तरीयुग्म-संज्ञा पुं॰ [सं० की.] दोनों प्रकार यथा-'पुनर्नवा कई म.कण्टकायौं। सु० चि०.२५ का सिन्धुवार अर्थात् श्वेत और नील ।
अ०। (५) राजि मंत साँप का एक भेद । सु. कत्तिका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] (१) हाथ की। कल्प ० ४ अ० दे० "साँप"। (६) भनाज़
विचलो उगली । मध्यमांगुली । [२] हाथी | अन्न । वै० निघ० । (७) लाया । (८)पाप । के सू की नोक।
वि० [सं० वि० ] कई मयुक्त ।
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