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.केशू।
कर्कोटकाद्युद्वर्तन २२७५
क—रक कर्कोटकाद्वर्तन-संज्ञा पुं॰ [सं० की० ] उक्त नाम | कर्ख श-[रू०] हड़ताल ।
का एक योग-ककोड़े की जड़, कुलथी, | कर्ग, कर्गहन-फा०] गेंडा नामक एक पशु। जरीश पीपल, कायफल, काला जीरा, चिरायता, (१०)। चीता, बच, कड़बी तुम्बी ओर हड़ । इन्हें समान | कर्गनालिया-[?] Bridelia montanaa, भाग लेकर चूर्ण बनायें। इसे शरीर में मालिश करने से शरीर को व्यथा दूर होती है और सन्नि- | कर्ग नेलिया-[?] खाजा । पात का नाश होता है। इसे शीतांग में प्रयुक्त | कर्गस-[फा०] गिद्ध । करना विशेष लाभदायक होता है । वृ० नि० २० वर्गात-[ तु० ] कुलंजन । सन्निपा० चिः।
कर्गी-[ तु० ] नर बाज । वाशः । जुर्रह । कर्कोटज-संज्ञा पुं० [सं० पु.] एक प्रकार की बेल कर्चक-हिंदी-[फा०] जमालगोटा |
जिसका फल शाक के काम में आता। खेखसा । कर्चर-संज्ञा पुं० [सं० पु.] (१) कचूर (२) ककोड़ा । काँकरोल ।
____ हरताल । [40 ] फूट की ककड़ी। कर्कोटपत्र-संज्ञा पु० [सं० की. ] ककोड़े को पत्ती। कचेरिका, कर्चरी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] कचोड़ी।
कर्कोटदल । यह वमन में हितकारक है। वा० ज्व० | बेदई । बेढ़वी । पाकराज । चि०१०।
| कचिया-[१] जंगली कासनी । तरहश्क्रूक । कर्कोटमूल-संज्ञा पुं० [सं० क्रो०] ककोड़े की जड़ । कर्ची-संज्ञा स्त्री० [देश॰] (१) एक प्रकार की
खेखसे की जड़। कर्कोटकमूल । काँकरोलमूल चिडिया।(२)करैया। कुर्ची। (बं०) सि. यो. कास-चि० । 'नस्यं कर्कोटमूलं | कर्ची बल्लो-[ कना०] Momordica Dioica, स्यात् ।" च० द. पांडु-चि० ।
___Roxb. धारकरेला।। कर्कोटिका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] (1) कुष्मांडो केचुर, कचूर-संज्ञा पुं० [सं० की०] (१) सोना । लता । विलायती कोहड़ा । कोहड़ी।
सुवर्ण । मे० रत्रिक । (२) एक प्रकार का पर्या–कुष्मांडो । कर्कोटी । (२)खेखसा। हरताल । कर्कोटक | काँकरोल | रा.नि.व.७
कचुर,कचुरक-संज्ञा पुं० [सं० पु.] (१) कर्कोटिका कन्द रज-संज्ञा पु० [सं० पु.] खेखसे |
एकांगी । कपूर कचरी । कचूरा | श्रीकानोक चेट्टा की जड़ का चूर्ण । ककोड़े की जड़ की बुकनी ।
(ते.)। कचौरा (मरा०,क)। योग. रत्ना० "कर्कोटिका कन्द रजः कुलस्थः।"-भा० म०१
वाजीक० । भ. शीतलांग स० ज्व० चि० । कंडु रोग में इसे
पर्या-द्रावित, कार्य, दुर्लभ, गन्धमूलक, सूंघते हैं।
वेधमुख्य, गन्धसार, कार्य, जटाल । गुण-चरपरा कर्कोटी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] (१) खेखसी ।
कडुआ, गरम, खाँसी तथा कफनाशक, मुखविशककोड़ा । ककोटिका । (२) देवताड़ । देवदाली
दता कारक और गलगण्ड नाशक है । रा० नि. बंदाल । वै० निघः । (३) वनतोरई। कड़वी
व०६ । दीपन, रुचिकारक, सुगंधी, पाक में __ तरोई । कोशातको । कोशवती । नि०शि०।।
चरपरा तथा कोढ़, बवासीर, व्रण और खाँसी को कर्कोटी-कंद-संज्ञा पु० [सं० वी० ] ककोड़े का कंद
दूर करने वाला, हलका, एवं साँस गुल्म और चा मूल।
कृमिनाशक है। भा० पू० १० । (२) कोंरा-[ ? ] सकनू ।
क-रकंद। कर्कोल-संज्ञा पुं० [सं० क्क्री० ] कंकोल | रा०नि० | क— रक-संज्ञा पुं॰ [सं० स्त्री.] (१) प्रामहरिद्रा ___व०१२।
आमहलदी, काँचा हलुद (वं.)। अ० टी. कक्य मा-दे० "करक्युमा"।
स्वा० । (२) कचूर। शटी । मे० रत्रिक । कक्यु लिगो-दे० "करक्युलिगो'।
वैःनिघ०२ भ० ज्व. चि।