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________________ कैरीद करोद-[ फ़्रा० ] दे० 'करूद” । करोदा -संज्ञा पु ं० दे० " करौंदा " । करोद्वेजन - संज्ञा पुं० [सं० पुं०] काला सरसों । कृष्ण सपंप | वै० निघ० । करोनी - संज्ञा स्त्री० [हिं० करोना ] पके हुए दूध वा दही का वह श्रंश जो बरतन में चिपका रह जाता है और खुरचने से निकलता है। खुरचन नाम की मिठाई | १२६२ करोनी - संज्ञा स्त्री० [देश० चुनार ] एक क्षुप जो प्राय: २-४ फुट ऊँचा होता है और गंगा आदि नदियों के कूलों पर एवं आर्द्र भूमि में बहुतायत से पाया जाता है। करोनी गरमी में सुख मानती है । अतएव ज्येष्ठ वैसाख में यह प्रचुर मात्रा में एवं खूब हरी भरी देखने में आती है और यही इसके फूलने फलने का भी समय है । इसका कांड सीधा, कर्कश ( Scabnous ) और गहरे रंग के धब्बों से व्याप्त होता है । शाखायें प्रायः टेढ़ी चलती हैं। और उन पर भी बैगनी रंग के धब्बे हग्गोचर होते हैं । पत्ते एकांतर, सवृन्त, हृदयाकार वा वृक्काकार, कटावयुक्त, त्रिशिरायुक्त, तरंगायित, कर्कश, लगभग ४ इंच व्यास के और देखने में ककड़ी के पत्ते की तरह मालूम पड़ते हैं । वृन्त गोल, कर्कश और पत्रवत् दीर्घ होता है, पत्तियों के ऊपर हलके बैगनी रंग की रेखायें होती हैं और उन पर बैगनी धब्वे भी होते हैं | फूल शाखांत पर वा ऊपर के कक्षों में श्राते हैं। इनमें नर पुष्प गुच्छ क्षुद्र वृंतयुक्त और नारी पुष्प प्रायः वृंतशून्य एवं एकांतिक होते हैं । फल ऊर्ध्व अंडाकार 1⁄2 इंच लंबा और तीक्ष्ण एवं दढ़ कंटकावृत तथा द्विकोषयुक्त होता है । प्रत्येक कोष में कड़े अन्तः त्वक् के भीतर एक बीज होता है। इसके फलको तोता इसकी छाँह में बैठ कर कुतरा करता है । फलं गुच्छों में लगते हैं। सूखने पर फल श्रोर काँटा बहुत चिमटा हो जाते हैं । इसकी जड़ पृथ्वी में टेढ़ी घुसी हुई होती है । पर्या० -अरिष्ट ! ( इं० मे० प्रा० ), शंख पुथ्वी ! शांखिनी ! ( डीमक ) - सं० । 0 अन्वर्थ देशी गुणप्रकाशिका संज्ञाएँ कुथिया, रुहेला, ( इटावा ), करोनी, aa ( चुनार, काशी ) किरकिचिया, करोनी (इटावा); शंखाली ? (डी०), छोटा गोखरू ! ( इं० मे० लां०, इं० डू० ई० - हिं० । शङ्केश्वर-बम्ब०, मरा० । बोन श्रोकरा बं० । गोखरू कलाँ १ –पं०, सिंध | मरलु भट्ट, ता० । वे रितेल नेप-ते०। कंडवलमर-कना ० । हसक, हमज़लू अमीर श्रु० । खारे हसक - फ्रा० । ख़ारे सूहूक- ( शीराज़ ) । हरद - ( इसफहान ) । Xanthium Stru marium, Linn; X. Indicum, Roxb. -ले० । ब्राड लीह बर-वीड Broad leaved Bur weed -श्रं० । लैम्पार्डी Lampourde-io | Spitzklette - जर० । वक्तव्य उपर्युक्र कुथिया और रुहेला संज्ञाएँ इसके Singer वा रोहुआ आदि नेत्ररोगों में व्यवहृत एवं उपकारी होने की श्रोर संकेत करती है । 'हरद' संज्ञा से यह ज्ञात होता है, कि 'इससे हरिद्रावत् रंग प्राप्त होता है, जिसका उल्लेख दीसकूरीदूस यूनानी ने भी किया है। इसके लेटिन नाम से भी यही निष्कर्ष निकलता है। लेटिन 'ष्ट्र मेरियम' संज्ञा से इसका कंठमाला में उपकारी होना सिद्ध होता है। यह ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता कि श्रायुर्वेद में उक्त वनस्पति का उल्लेख श्राया है वा नहीं और यदि उल्लेख श्राया है तो किंस नाम से आया है । इसकी डीमक द्वारा दी हुई " शांखिनी" एवं "शंखपुष्पी" प्रभृति संस्कृत संज्ञाएँ अभी निर्विवाद नहीं कही जा सकतीं । हकीमों के चिकित्सा ग्रंथों में उल्लिखित 'खारेसुहूक' वा 'हसक' प्रभृति संज्ञाएँ इसी वनस्पति की हैं, ऐसा निश्चित होता है । यूनानी हकीम दीसकूरीदूसने उक्त वनस्पति का विशदवर्णने अपने ग्रंथ में किया है। भारतीय श्रोषधियों के सम्बन्ध में लिखे हुये श्रांग्ल भाषा के ग्रंथों में से फार्माकोग्राफिया इंडिका, इंडियन मेडिसिनल प्लांट्स, इंडियन मेटीरिया मेडिका और इंडिजिनस ड्रग्स आफ इंडिया प्रभृति ग्रंथों इसका सविस्तरोल्लेख मिलता है। में
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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