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________________ करेला २२५६ (२) मसूरिका में कारवेल-करेले के पत्तों |, है तथा यह नाड़ियों को शक्ति प्रदान करता, शुरु का स्वरस, हलदी का चूर्ण मिलाकर पियें। यह उत्पन्न करता और संधि-शूल वातरक्क (निकरिस) रोमान्तिका, ज्वर, विस्फोट और मसूरिका प्रश- जलोदर एवं तापतिल्लो में उपकारी होता है। यह मक है । यथा उदरस्थ कृमियों को नष्ट करता है। इसके हरे "सुषवी पत्र निर्यासं हरिद्रा चूर्ण संयुतम्। पत्तों का रस ३ तोले, तोला डेढ़ तोला दही के साथ मिलाकर, ऊपर से ५-६ तोला छाछ पिला रोमान्तीज्वर विस्फोट मसूरी शान्तयेपिवेत्॥" देवें । तीन दिन तक ऐसा करें। इसके बाद तीन (मसूरिका -चि.) दिन बंद करके, पुनः चार दिन तक उसी भाँति (३) अन्तःप्रविष्ट योनि में कारवेल्ल–करेले पिलाएँ। फिर चार दिन बंद करके पांच दिन की जड़ पीसकर लेप करने से अन्तःप्रविष्ट योनि | पिलाएँ। इसी प्रकार एक-एक दिन बढ़ाकर उस वहिनिःसृत होती है। यथा समय तक करते रहें कि एक सप्ताह पर पहुँच "सुषवी मूल लेपेन प्रविष्टान्तर्वहिर्भवेत्।" जाय । सेवन काल में खिचड़ी और खसके का (योनिव्यापद् -चि०)। आहार करें। इस प्रयोग से वृक्त एवं वस्तिस्थ .भावप्रकाश-विसूचिका में कारवेल्ल-करेले : अश्मरी में बहुत उपकार होता है। की बेल का काढ़ा, तिल-तैल का प्रक्षेप देकर पीने . तरकारी के लिये करेले को इस प्रकार तैयार से विसूनिका रोग प्रशमित होता है यथा करते हैं । पकाने से पूर्व इसे नमक के पानी में "सतलं कारवेल्ल्यम्बु नाशयद्धि विसूचिकाम्" | दुबाते हैं अथवा पहले करेले को ऊपर से छील (म० खं० २य भा०) कर उसके बारीक वारोक कतरे काटकर बीज दूर यूनानी मतानुसार-प्रकृति-शीतल, मतांतर कर देते हैं। फिर उन कतरों में लवण मल कर सेसमशीतोष्ण, कोई-कोई तृतीय कक्षामें उष्ण और तीन-चार बार धोते हैं जिससे उसकी कबु वाहट रूत मानते हैं, नुसखा सईदी आदि का यही मत दूर हो जाती है । पुनः उतना ही प्याज काटकर, है। वैद्य शीतल मानते हैं। पर कोई-कोई बहुत तेल में भून लेते और मांस में अथवा विना मांस उष्ण लिखते हैं। के पकाकर खाते हैं। कोई कोई इसे बगल से हानिकर्ता-उष्ण प्रकृति को। चीर कर बीज निकालकर नमक मिला धोकर दपघ्न-धी, चावल, शीतल पदार्थ और गोश्त का क़ीमा भरकर डोरे से बाँध कर घो सिकंजबीन, वैद्यों के मत से हर प्रकार के मधुर में भूनकर पकाकर खाते हैं। इसके पकाने को द्रव्य सेवनोपरांत इसका खाना एतद्दोषनिवारक है। अनेक रीतियाँ हैं । किंतु प्याज़ के साथ पकाकर प्रतिनिधि-माहूदाना। खाया हुआ स्वाद और बाजीकरण गुण में गुण, कम, प्रयोग—यह वाजीकरण, नाड़ो- बलिष्टतर होता है और विना प्याज के पकाया बलप्रद (मुकब्बी अश्रूसाब), शुक्रमेहहर, वातानु हुअा जठराग्न्युद्दीपन एवं शीघ्रपाकी होता है , लोमक एवं कफछेदक है तथा संधि-शूल. शीत- तथा अपेक्षाकृत कम उष्णता उत्पन्न करता वातरक्त (निकरिस बारिद) जलोदर, प्लीहा, ख. श्र०। कामना और कृमि में उपकारी है । मुफ्त.. ना.। _ वैद्यों के कथनानुसार करेला वादोबवासीर __ मनजनुलू अदविया के रचयिता के अनुसार को लाभकारी है। यह रक्त एवं पित्त की उल्वणता करेला (फल) वल्य, जठराग्न्युद्दीपक (Stoma और कामला में हितकर है। यह कफ नाशक chic), आमवात और वातरक्त में उपकारी, है एवं वीर्यस्राव के दोष को मिटाता है। शुष्क यकृत एवं प्लीहा रोगनाशक और कृमिघ्न है। करेला मूत्रदोषघ्न है। यह भोजनोत्तर वमन म. अ। का निवारण करता है। वाड़ी का करेला (पारोपित करेला, बुस्तानी ताजा करेले को पानी में पीसकर पीने से दो करेला)-वातानुलोमक वाजीकरण और कफन्न । चारदस्त आकर कामला रोग श्राराम होजाता है।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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