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________________ करील. २२४३ करील 4 (Capric acid) और एक ग्लुकोसाइड पाया जाता है, जिसे गंधकाम्ल (Sulphuric acid ) के साथ उबालने पर ( Isodulcite) और करसेटीन वत् (Quercetin) एक प्रकार का रंजक पदार्थ ये दो प्राप्त होते हैं। प्रभाव-मूलत्वक् संकोचक तथा परिवर्तक है। कविराजों के मत से इसका पौधा कटुक, उत्तेजक और मृदुरेचक इत्यादि है। औषध- निर्माण-मूल-त्वक् का चूर्ण तथा शीत कषाय ( Infusion) (१० में ) मात्रा-आधे से १ अाउन्स तक। सुप स्वरस। श्वासनाशकार्क-करीलकी ताजी जड़ें लाकर उनके टुकड़े कर, उन टुकड़ों को कूटकर एक मिट्टी के बरतन में भरकर पताल यंत्र से उसका चोप्रा निकाल लेना चाहिये । इस चोए को १ माशा की मात्रा में शक्कर के साथ खाकर ऊपर से गरम पानी पीने से श्वास का प्रवल वेग भी शांत होजाता है। कुछ दिन तक लगातार सेवन करने से दमे का रोग सदा के लिये जाता रहता है। उक्त अर्क को अङ्किरों पर प्रातः सायंकाल मलने से थोड़े दिनों में मस्से मुरझाकर झड़ जाते हैं। ____ गुणधर्म तथा प्रयोग आयुर्वेदीय मतानुसारवात श्लेष्महर रुच्यं कटूष्णं गुदकीलजित् । करीरमाध्मानकरं रुचिकृत्स्वादु तिक्तकम् ॥ अन्यच्चकरीराक्षक पीलूनि त्रीणि स्तन्यफलानि च । स्वादुतिक्त कटूष्णानि कफवातहराणि च ॥ (ध०नि०५०) करील वायुनाशक, कफनाशक, रुचिकारी, कडुआ, उष्णवीर्य, स्वाद में तिक एवं मधुरहै तथा यह आध्मान कारक और अर्शनाशक है। करील, बहेड़ा और पीलू ये तीनों मधुर, तिक, विपाक में कङ्, उष्ण वीर्य और कफ वातनाशक है। कृरीरमाध्मानकरं कषायं कटूष्णमेतत्कफकारि भूरि। श्वासानिलारोचक सर्वशूल विच्छदि खजू व्रणदोषहारि ॥ (रा० नि०८०) करील प्राध्मानकारक, कषैला, चरपरा, उष्ण वीर्य एवं अत्यन्त कफकारक (मतांतर से कफहारि) है और यह श्वास-दमा, वायु, अरुचि, सर्व प्रकार के शूल, वमन, खुजली तथा व्रण का नाश करता है। करीरः कटुकस्तिक्त: स्वेाष्णो भेदनः स्मृतः । दुर्नामकफवाताम गरशोथ व्रणप्रणत् ॥ (भा०पू०) करीर-कचड़ा गर्म तथा स्वाद में चरपरा; कड़ पा ओर पसीना लाने वाला कफ तथा वात, पाँव (श्राम ), अर्श, विष, सूजन और व्रण को दूर करने वाला और भेदन दस्तावर है। कारीरं कटुकं पाहि फलमुष्णं रुचि प्रदं । कफपित्तकर किश्चित्कषायं वातहृद्वरम् ।। कारीरं कुसुमं भेदि कटुकं कफनाशनं । पित्तकृद्र चिर' भब्यं कषायं पथ्यद भृशं ॥ - (वै० निध०) टेटी (करीर का फल)-चरपरी, ग्राही, उष्ण, रुचिकारी, किंचित् कषेली, करील का फूल-दस्ता वर, चरपरा, कफनाशक, पित्तकारक, कषेला पौर अत्यन्त पथ्य है। करीरमाध्मान कर कषायं स्वादु तितकम् । (वा० सू००६) करीर अफराजनक, कसेला, मधुर एवं विक है। गुरु भेदि श्लेष्मलश्च । मद० २०७ यह भारी, भेदी-दस्तावर और कफकारक है। राजवल्लभ के अनुसार कफनाशक, कषेला और दाहकारक है। द्रव्य निघण्ट में इसे कफनाशक लिखा है। करीरस्तुवरश्चोष्ण: कटुश्चाध्मानकारकः ॥ रुच्यो भेदकरःस्वादुः कफवातामशोथजित् ।। विषार्थीव्रणशोथघ्नः कृमिपामाहरोमतः । अरोचकं सर्वशूलं श्वासं चैव विनाशयेत् ॥ फलं चास्य कटुस्तिक्त मुष्णं च तुवर मतम् । विकासि मधुर ग्राहि मुखवैशधकारकम् ॥ हृद्यं रुक्षं कर्फ मेहं दुर्नामानं च नाशयेत् । पुष्पं वातकर' प्रोक्तं तुवर कफपित्तनुत । . (नि००)
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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