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करञ्ज
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देवें, तो गर्भपात न हो। यदि इसे बकरी वा भेड़ की खाल या वस्त्र में लपेट कर और इसे सुगंधि द्रव्यों की धूनी देकर, गर्भवती स्त्री की उलटी रान
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पिंडली या पेडू पर बाँध देवें, तो सुख पूर्वक प्रसव हो । प्रसव के समय इसे बाँधना चाहिये और प्रसव होते ही खोल डालना चाहिये । इसे फलवान वृक्ष पर बाँधने से फल नहीं गिरते । कंजा के तीन दाने लेकर भूभल में दबा देवें । ज़ब वे दाने पक जाँय, तब उन्हें निकाल लेवें श्रोर गिरी को पीसकर बारीक चूर्ण करें । इसे उस व्यक्ति को फँकावें जिसके अंडकोष में पानी उतर श्राया हो अर्थात् जिसे मूत्रज वृद्धि रोग हुआ हो | सप्ताह भर में इसका निःशेष लाभ प्रकाशित होगा । इस रोग में इसकी गिरीका चूर्ण एरण्ड-पत्र पर छिड़क कर बाँधने से भी उपकार होता है। इसकी गिरी का तेल शरीर पर मलने से कण्डू वा खाज का नाश होता है। नारी योनि रोगों में यह विशेष उपकारी है । ततवा व्रण के लिये इसका तेल यहाँ तक गुणकारी है कि यदि उसमें कीड़े भी पड़ गये हों, तब भी इसके लगाने से लाभ होता है । सुतरां केवल इसकी मींगी के चूर्ण को किसी तेल में मिलाकर मलने से सूजन श्रौर फोड़े-फुन्सी श्रादि चर्म रोग आराम होते हैं इसकी गिरी को गुलरोगन या तिल तैल में इतना पकायें कि जल वह जाय । फिर तेल को छानकर शीशी में रख लेवें। किसी प्रकार का दुष्ट एवं गम्भीर व्रण हो, इसके लगाने से श्रीराम होता है । एक करंजुये की मींगी पीस कर गुड़ में मिलाकर खिला देवें। इससे श्रागामी दिवस को उदरस्थ सभी केचुये थैली की थैली मृतप्राय होकर निकल जायँगे । कफ, वात और रक्त विकारों में इसकी पत्ती गुणकारी है । यदि शरोर फूटकर उसमें स्थान स्थान पर छिद्र हो जाँय तो करंजुये की पत्ती घोंट-पीसकर नित्यप्रति एक प्याला पिलायें। भोजन में चने या गेहूं की रोटी पर्याप्त घी के साथ देवें । चालीस दिन में लाभ प्रदर्शित होगा ।
"खुलासा" के रचयिता लिखते हैं कि मैंने एक युवा को देखा जो चिरकाल से चातुर्थिक ज्वर से पीड़ित रहता था । उसे किसी औषधि से लाभ नहीं होता था । अंततः वह करंजुना के पत्ते २१
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कालीमिर्ची के साथ घोंटकर पीने लगा। इससे अल्प काल में ही वह सम्यक् रोग मुक्त हो गया । पुनरपि किसी लब्धप्रतिष्ठ व्यक्ति के गृह में धोखे से इसके तेल में कढ़ी को बघार लगा दिया गया और उसमें फुलकियाँ पकाकर घर के लोगों ने खा लीं । इससे उनको अत्यंत कष्ट हुआ, श्रई, दिल घबड़ाया थोर चक्कर आने लगी । किसी के बतलाने से उन्होंने मूँग की खिचड़ी में बहुत सा घी मिलाकर खा लिया, इससे उन्हें तुरत लाभ हो मया । - ( ० ० )
मजन मुफरिदात में यह अधिक लिखा है— "यह मवाद को ear है श्रोर श्रानाह शूल (रियाही कुलंज ) का निवारण करता है । "
बुस्तान मुफ़रिदात में यह विशेष लिखा है" एक दाने की श्राधी गिरी और पाँच कालीमिर्च इनको एकत्र पीसकर खिलाने से वातज श्रानाह, शूल (रियाही दर्द कुलंज ) मिटता है । परीक्षित है । पीपल र शहद के साथ मिलाकर झड़बेरी के बराबर इसकी गोली बनाकर खिलाने से जीर्ण ज्वर का नाश होता है । इसे स्त्री के दूध में पीसकर योनि में इसकी वर्ति धारण करने से स्त्रियों का वंध्यत्व दोष मिटता है और वे गर्भधारण के योग्य हो जाती है । यह दृष्टि को शक्ति प्रदान करता और वायु का अनुलोमन करता है । यह सूखी खुजली गर्भाशय के रोग तथा कुष्ठादि में लाभकारी है" । इसकी गिरी को हुक्के में रखकर पीने से उदरशूल मिटता है ।
करंजी की गिरी, संचर नमक, सोंठ और भुनी हुई हींग - इनको समान भाग लेकर चूर्ण करके ६ माशे की मात्रा में गरम जल के साथ लेने से सब प्रकार के उदरशूल नष्ट होते हैं
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नव्य मत
आर० एन० खोरी-कंजे की गिरी तिक्क वल्य ज्वर निवारक और कृमिघ्न है । श्रर्द्धपत्र स्वरस ज्वरघ्न है तथा विषम ज्वर ( जीर्ण ज्वर ) में व्यवहृत होता है । अंतरा, तिजारी और चौथिया प्रभृति पारी के ज्वरों में इसके बीजों की गिरी का चूर्ण सम भाग पीपल के चूर्ण के साथ व्यवहार किया जाता है । किन्तु यह ज्वरघ्न, सागिक दौर्वल्य नाशक, रक्तपित्त (Haemorrhage )