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________________ कमल २१६१ कमल श्वेत पद्म के दलों का वर्ग कुन्द फूल की तरह शुभ होता है । श्वेत पन सर्वाश में रक पद्म के के तुल्य होता है। अंतर केवल यह है कि सफेद कमल में लाल कमल की अपेक्षा बीज कम होते हैं ।लाल कमल में 10-३० और सफेद में ८-२० बीज देखे जाते हैं। श्वेत कमल को संस्कृत में शतपत्र, महापद्म, नल, सितांबुज इत्यादि कहते हैं। नीलकमल विशेषकर काश्मीर के उत्तर तिब्बत और कहीं कहीं चीन में होता है। पीत कमल अमेरिका, साइबेरिया, उत्तर जर्मनी इत्यादि देशों में मिलता है। पद्मचारटी वा पद्मचारिणी नाम का एक और पौधा होता है जिसे कोई कोई 'स्थलकमल' और कोई गेंदा लिखते हैं। किसो किसी ने इसे जंगली कमल भी लिखा है । तालीफ़ शरीफ्री में इसे गुलनीलोफर का एक भेद लिखा है और लिखा है कि उसमें पत्ते कम होते हैं। विशेष देखो "स्थल कमल"। धन्वन्तरीय तथा राजनिघंटु में क्षुद्र उत्पल नाम से एक प्रकार के कमल का उल्लेख मिलता है। रंग के विचार से यह तीन प्रकार का कहा गया है-सफेद, नीला, और लाल । इनमें से लाल रंग वाले को रकशालूक कहते हैं। दल संख्या में शालूकापेक्षा अधिकतर एवं प्राकार दीर्घतर होता है। एतद्भिन सर्वाश में यह शालूकवत् होता है। __ कमल को ही किस्म का एक और जलीय पौधा है, जिसे संस्कृत में कुमुद, कैरव, कुवलय आदि संज्ञाओं से अभिहित करते हैं। यह पंक बहुल पल्वलादि में उत्पन्न होता है और वर्षांत-शरद में फूलता है । इसमें कमल से एक और विशिष्ट भेद होता है कि कमल के फूल सूर्योदय के समय खिलते हैं और सूर्यास्त होते ही बंद होने लगते हैं, परन्तु कुमुदिनो वा कूई रात में खिलती है । इसकी पंखड़ी श्वेत कमल को पंखड़ी की तरह शुभ्र होती है । श्वेत पद्म की अपेक्षा इसकी पंखड़ियाँ संख्या में अल्पतर एवं प्राकृति में क्षुद्रतर होती हैं। इसकी नाल और कमलकी नालमें इतना भेद होता है, कि कमल की नाल के ऊपर गड़ने वाली रोई होती है, पर इसको नाल चिकनी होती है। रंग ओर आकृति के भेद से यह भी कई | प्रकार की होती है। हकीम लोग इसे नीलोफर | ११ फा० कहते हैं । विस्तृत विवरण के लिये 'कूई' देखो। Harat ar hala ( Euryale Fcrox, Salisle) भी कमलकी ही जाति का, पर उससे सर्वथा एक भिन्न जलीय पौधा है। मखाने का लावा इसो का बीज भूनने से तैयार होता है। विस्तृत विवरण के लिये देखो "मखाना"। पद्म भेद विषयक प्राचीन मत धन्वन्तरीय निघंटु के मतसे पुण्डरीक, सौगंधिक, रक पद्म, कुमुद एवं क्षुद्र उत्पलत्रय ये सात प्रकार के कमल होते हैं। अत्यंत सफेद कमल को पुण्डरीक कहते हैं । जहाँ तक देखने में आया है उससे यह ज्ञात होता है कि सफेद कमल गरमी में फूलता है, परंतु धन्वन्तरीय निघंटु में इसे "शरत् पद्म' लिखा है। हाँ ? कुमुद वा कूई शरत् वा जाड़े में फूलती हुई देखी गई है। धन्वन्तरीय निघंटु के मतसे सौगन्धिक नीलपद्म है, यथा"सौगन्धिकं नीलपद्मम्"। पद्मोत्पल नलिन कुमुद सौगन्धिक कुवलय पुण्डरीक शैवल कोथजाताः"। (सु० सू०१३ अ०) । इस सौश्रुतीय पाठ की व्याख्या में डल्वण लिखते हैं, "सौगन्धिकं गईभ पुष्पाभिधानमत्यन्तसुरभि चन्द्रोदय विकाशि"। भारतवर्ष में अधुना नीलपद्म के दुर्लभ होने के कारण, यह निश्चित रूपसे नहीं कहा जा सकता कि यह अत्यंत सुरभि एवं चन्द्रोदय विकाशी है वा नहीं। भाषा में जिसे कूई वा सुदि कहते हैं, यदि वही "सौगन्धिक" है, तो उसके लिये "अत्यन्त सुरभि" विशेषण असंगत पड़ता है। गद्धभपुष्प किस देश का भाषा नाम है, इसका निर्णय सहज नहीं। भावप्रकाशकार ने कहार के पायों में सौगन्धिक पाठ दिया है एवं "नीलमिन्दीवरं स्मृतं" वाक्य में नीलपद्म का नाम इन्दीवर निर्देश किया है। भावप्रकाशकार ने सौगन्धिक का नीलपद्म होना स्वीकार कर लेने पर, ऐसा क्यों लिखा ? कह्नार क्या है ? धन्वन्तरीय निघण्टु में कुमुद के पर्य्यायों में कहार का पाठोल्लेख हुआ है। इनके मत से कहार शालूक फूल वा कूई के फूल को कहते हैं । भावप्रकाशकार ने कहार और कुमुद को पृथक्-पृथक् निर्देश किया है। सौगन्धिक को
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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