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________________ कबाबचीनी "कबाबचीनी निरंतर इसी प्रकार सेवन करने से सूज़ाक में बहुत हैं। इससे भी अधिक परिमाण में देने से पह उपकार होता है। इसकी पिचकारी सूज़ाक के आमाशय तथा अंत्र में दोभ उत्पन्न करती है और लिये अनुपम गुणकारी है। कबाबचीनी दो ड्राम, इससे उक्लेश, वमन, उदरशूल और अतिसारादि शोरा १० ग्रेन ऐसी एक मात्रा दिन में तीन बार उपसर्ग पीछे लग जाते हैं । यह हृदय को शक्ति पूयमेही को देने से उपकार होता है । कबाबचीनो, देती और इसकी गति को तीव्र करती है। . बच और कुलंजन सम भाग-इनके चूर्ण को पान श्वासोच्छ वास और जननेन्द्रिय एवं मत्रेन्द्रियके रस में पीसकर वटिका निर्मितकर मुख में रखने बहुशः अन्य स्नेहमय रालों की भाँति कबाबसे स्वर शुद्ध होता है। मुखपाक वा मुख के भीतर चीनी भी रक्त में प्रविष्ट होती है और शरीरगत सूजन मिटानेके लिये इसको चूसते रहना चाहिये । विविध अंगों एवं धातुओं में पहुँचकर यह न्यूनाइसके चूसते रहने से गले का भारीपन मिटता है। धिक कोपाइबावत् प्रभाव करती है अर्थात् यह अफीम के साथ इसकी वटिका बनाकर देने से श्वासमार्गीय एवं जननेन्द्रिय और मूत्रेन्द्रिय आँव के दस्त बन्द होते हैं । उक्त अवस्था में पथ्य संबंधिनी श्लैष्मिक कलाओं को उत्तेजन प्रदान रूपेण मूंग चावल और कच्चे केले की खिचड़ी करती है जिससे तजन्य स्रावोद्रेक वर्द्धित देना चाहिये । दूध के साथ इसे फँकाने से प्रचुर होजाता है तथा उनकी दुर्गन्धि आदि का निवारण मात्रा में मूत्र प्रस्रावित होने लगता है। इसे सोंठ (Aseptic) होता है । यह वृक्क की क्रिया को के साथ फाँकने से शारीर शैथिल्य निवृत्त होता भी तीव्रतर करती है और किसी सीमा तक है। इसका प्रलेप करने से सूजन और ग्रन्थि विलीन त्वचा की क्रिया को भी उत्तेजन देती है। अतएव होती है।-ख०० यह मूत्रल एवं जनन-मूत्रेन्द्रिय विशोधक पचन___ मकालात इहसानी में यह अधिक लिखा है कि निवारक (Antiseptic) है। इसके उपमुख में रखने से यह प्यास बुझाती है औरचिरकारी योग से कभी-कभी त्वचा रोगयुक्त होजाती है। कफज ज्वरों को लाभकारी है। अर्थात् उसपर लाल-लाल ददोड़े वा धब्बे पड़ __ मखजनुल अद्विया, मुहीत आजम, महज़न जाते हैं । अत्यधिक मात्रा में खाने से वृक्क अत्यंत मुफ़रिदात और बुस्तानुल मुफरिदात आदि में भी क्षुभित होता है, जिससे मूत्र में अण्डलाल इसके उपयुक गुणधर्म ही उल्लिखित पाये (Albumen) वा रक्त वा उक्त दोनों ही जाते हैं। पाए जाते हैं । कभी २ उसमें अत्यन्त छोटे-छोटे एलोपैथी के मतानुसार दाने प्रगट होने लगते हैं जो औषध छोड़ देने के क्युबेबस की फार्माकालाजी अर्थात् कबाबचीनीके प्रभाव कुछ ही दिन बाद मिट जाते हैं। .. वहिः प्रभाव उत्सर्ग-शरीर से इसका उत्सर्ग वायु प्रणालि कबाबचीनी का प्रभाव तजात राल एवं स्नेह | जन्य स्रावों (कफादि) एवं मूत्र द्वारा होता है । पर निर्भर होता है। त्वचा पर अभ्यंग करने से पेशाब में सम्भवतः यह कबाबाम्ल (Cubeइसका प्रारुण्यजनक (Rubifacient) प्रभाव bic acid ) के एक लवण के रूप में पाई होता है। जाती है, जो (H NO 3. ) द्वारा अधःक्षेपित आभ्यंतरिक प्रभाव होजाता है। शरीर से उक्त स्नेह घटित द्रव्यों के श्रामाशय तथा अन्त्र पथ-प्रामाशय तथा उत्सर्ग काल में कई बिशेष जाति के काटाणु नष्ट अन्त्र पर कबाबचीनी का प्रभाव कालीमिर्चवत् प्राय होजाते हैं। होता है । अल्प मात्रा में देने से यह उत्तेजक जठ- | क्युबेबस के थेराप्युटिक्स अर्थात् कबाबचीनी के राग्नि वर्द्धक (Stomachic) और वातानुलो रोगानुसार प्रयोग मन प्रभाव करती है । अधिक परिमाण में देने से आंतरिक प्रयोगयह पाचनदोष उत्पन्न करती है अर्थात इससे कोपाडबा के विरुद्ध कास (Bronchitis) अजीर्ण वा वदहजमी के लक्षण लक्षित होने लगते । और कण्ठक्षत (Sore-throat) में कबाब
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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