________________
कबाबचीनी
२१४२
कबाबचीनी
.
है। उन दोनों के अभाव में हिंदी (कबाबचीनी) काम में लावें । इसका दाना गोल होता है और यह चीनी से वृहत्तर, गुरुतर और तोड़ने पर सुगंध देता है । यह भीतर से पीतान, श्वेत निकलता है । इसमें डंटी नहीं होती। भारतीय बाज़ारों के लिये बंबई में सिंगापुर से कबाबचोनी | श्राती है।
पा.-कबाबचोनी, शीतलचोनो-हिं० । कबाबचिनि-बं० । दुमकी मिर्ची-द। कबाबचीनी-उ० कबाबः, कबाबहे सीनी, हज्बुल उरूस -अ । कबाबः, किबाब:-फा० । कबाबचीनी-फ्रा. दि०, द०, बम्ब० । क्युबेबो फ्रक्टस Cubebee fructus-ले०। टेल्ड पेपर Tailedpepp9, क्युबेब्स Cubebs-अं| Cub besफ्रां० । वालनिलकु, वलमलकु-ता०; मल० । तोक-मिरियालु, सलव-मिरियालु-ते। वालमुलक-मल। बालमेणसु, गंधमेणसु-कना० । कबाबचिनी. हिमसी-मीरे, कंकोल-मरा०, मार० । कबाब-चिनि, तड-मिरी, चणकवाव-गु०। वालमोलग, बाल-मोलबू-सिं०। सिम-वन-करवाबर। सुगन्ध मरिच-सं०। कुमुकुस, कुमक(जावा )। तिम्मुर्ह-नेपा० । लुरतमर्ज़-कास । बलगुमदरिस-सिंह।
टिप्पणी-दक्षिण भारत एवं भारतवर्ष के अन्य स्थानों में कबाबचोनी (Cube bs ) के लिये शीतलचीनी संज्ञा का व्यवहार होता है और farei fasta ar EÄ (Eugenia l'imenta, Allspice' ) के लिये कबाबचीनी संज्ञा का | परन्तु कलकत्ता तथा बहुत से अन्य स्थानों में इसके विपरीत है, जहाँ शीतलचीनी संज्ञा का व्यवहार पाइमेंटो ( Allspice ) के लिये और कबाबचोनी का कबाबा (Cubebs) के लिये होता है। क्योंकि भारतवर्ष के लगभग सभी राजकीय पातुरालयों एवं श्रोषध वितरणालयों में इसी संज्ञा ( कबाबचीनी) द्वारा क्युबेव (Cubeb) ख्याति है । अस्तु, हमने भी ऐसा ही मानना उचित समझा । इसके अतिरिक्र कतिपय बाजारों विशेषतः मदरास स्थित बाजारों में कबाबचोनो के सम्बन्ध में एक ओर यह भ्रम है।
कि वहाँ उक संज्ञा का व्यवहार प्रायः नागकेसर, (Budr of Mesua feerea ) के लिये होता है जो ठीक नहीं। वस्तुस्थिति यह है कि उसको ( Mesua ferrea) हिंदी संज्ञा नागेसर वा नागकेसर है।
हब्बुल् अरूस भी जिसका अर्थ वस्त्रधू फल है, इसकी अन्वर्थक भारव्य सज्ञा है। जैसा ग्रन्थ विशेष (जामा) के संकलयिता के वचन से ज्ञात होता है । वात यह है कि इंद्री पर इसका प्रलेप कर रति करने से स्त्री को इतना अानन्द प्राप्त होता है कि वह उस पुरुष पर श्रासक हो जाती है। अस्तु, इपकी उक्त संज्ञा अन्वर्थ ही है। इसकी अँगरेजी संज्ञा (cubeb) संभवतः पारव्य कबाबः से व्युत्पन्न है । ऐन्सली स्वरचित मेटीरिया इंडिका में लिखते हैं कि यह नेपाल में भी उत्पन्न होता है और वहाँ इसे तिम्मुई (तुम्बुरु) वा तेज बल कहते हैं। पर यह स्मरण रखना चाहिये कि तुम्बुरु कबाबचोनी नहीं, परन्तु उससे सर्वथा एक भिन्न पोधा है। तुम्बुरु को जिसे नैपाली धनियाँ भी कहते हैं, फारसो में कबाबः खंदाँ वा कबाबः दहन कुराादः संज्ञा द्वारा पुकारते हैं और कबाबचीनी को कबाबः संज्ञा. द्वारा। कदाचित् इसी सामंजस्य के कारण ही उन्हें ऐसा भ्रम हुआ है।
पिप्पली वर्ग (N. O. Piperacere.) इतिहास-मध्यकालीन भारव्य चिकित्सकों ने कबाबचीनी का औषध रूपेण व्यवहार किया। अस्त. हकीम मसऊदी ने जो ईसवी सन की दसवी शताब्दी में हुआ, कबाबचीनी को जावा की उपज होने का उल्लेख किया है । सिहाह के रचयिता ने जिनका स्वर्गवास सन् २००६ ई० में हुआ, इसे चीन की एक प्रमुख औषध लिखी है। इब्नसीना ने भी प्रायः उसी समय में इसका उल्लेख किया है। वे लिखते हैं कि इसमें मञ्जिष्ठाके समान गुणधर्म पाये जाते हैं। कतिपय तिब्बी ग्रन्थों में जो इसकी यूनानी संज्ञा माहीलियून वा करफियून लिखी है, वह भ्रमपूर्ण है। आयुर्वेद विषयक सस्कृत, हिंदी और मराठी भाषा के निघंटु ग्रन्थों में 'कंकोल' नाम से जिस ओषधि का उल्लेख