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कबरक
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कबाबचीनी
कबरक-[फा०] गोखरू का नाम । कबर गाज़रूनी-संज्ञा पु० [शीराज़ी ] शामी खनूब कबरा-संज्ञा पुं० [हिं० कौर ] करील की जाति की
एक प्रकार की फलनेवाली झाड़ी जो उत्तरी भारत में अधिकता से पाई जाती है । इसके फल खाये जाते हैं । कौर ।
नोट-संभवतः यह यूनानी ग्रंथोत्र 'कबर' है। वि० दे० 'कबर"। कबरी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] हिंगुपत्री । बाफली ।
रा०नि० । नि० शि० । (२) केशबन्ध । कबरीश-[तु.] कबरा । कबरा । कबरेहिंदी-[फा०] कँदूरी । कुदरू । बिंबा । कबल-[ सिंगा] सिख । कवलावगुण्ठिका-संज्ञा स्त्री० . कबली-[संज्ञा स्त्री.]काकोली का फल । कबला-[ते. ] रक सर्षप । कबलूल अकया-[ ] बेद सादा के पत्ते । . कबशा वरा-[सिरि०] जंगली कबर । कबसा अक्रमता- सिरि, अ.] फ़ाशिरस्तीन । कबसा. जोरिया-[सिरि] बाग़ी अंगूर जि.ससे मदिरा - बनती है। क़बस-[अ० ] स्फुलिंग। चिनगारी । लौ । श्राग। कबसून-दे० "कबनूस" . कबा-[पं०] कबरा । कब्राबेर । क़बाइलुरोस-[१०] सिर की हड्डी । खोपड़ी ।
शिरोऽस्थि । कपालास्थि । Skull, क़ (कि) बाब-[अ०] एक प्रकार की मछली । कबाब-[अ० ] सोखों पर भुना हुआ माँस । कबाबचीनी-संज्ञा स्त्री० [अ० कबाबः+हिं० चीनो]
(१) मिचे, पीपल तथा पान आदि की जाति की एक लिपटनेवाली पराश्रयी झाड़ी जो सुमात्रा जावा, मलाया श्रादि टापुत्रों में जो इसके प्रादि उत्पत्ति स्थान हैं, होती है और अब वहाँ इसकी काश्त भी होती है । भारतवर्ष में भी कहीं २ थोड़ी बहुत इसकी काश्त की जाती है। इसकी | पत्तियाँ कुछ-कुछ बेर को सी पर अधिक नुकीली होती हैं और उनकी खड़ी नसें उभड़ी हुई | मालूम होती हैं। इसमें फूल गुच्छों में आते हैं।। प्रत्येक गुच्छे में घृतशून्य छोटे-छोटे स्त्री-पुष्प लगे
होते हैं । पुपुष्पस्तवक इससे पृथक् होता है जब इसमें फल लगते हैं, तो प्रारम्भ में वे भी वृंतशून्य होते हैं ।परन्तु ज्यों ज्यों वे परिपकावस्था को पहुँचते जाते हैं, त्यों त्यों प्रत्येक फल की डंडी भी दीर्घ होती जाती है । अंततः वे गुच्छे से पृथक् । दृग्गोचर होने लगते हैं। जब फल पूर्णतया वृद्धि को प्राप्त होजाते हैं, पर अभी वे हरे तथा कच्चे ही। होते हैं । तो उन्हें गुच्छे से तोड़ लेते हैं। उनमें से कतिपय फलों की डंडियाँ भी उनमें ही लगी रहती हैं । जिससे उन्हें कभी-कभी दुमदार मिर्च' वा 'दुमकी मिर्ची' कहते हैं । इन फलों को धूप में शुष्कीभूत कर रख लेते हैं, जिससे हरा रंग कृष्णाभ धूसर वर्ण में परिणत होजाता है। प्रागुक द्वीपों से चीनी व्यापारी उन्हें देशावर भेज देते हैं। वे अधिकतया वटाविया से ऐस्टडम और सिंगापूर से लंडन भेज दिये जाते हैं। कदाचित् इसी कारण कवाबा को कबाबचीनी कहते हैं ।
पर्या–पाइपर क्युबेबा Piper Cubeba, Linn. क्युबेबा आफिसिनेलिस Cubeba officinalis, Miquel. -ले० । शेष पर्याय के लिए दे० 'कबाबचीनी का फल' ।
नोट-बाज़ारू कबाबचीनी (Cubella) उक्न झाड़ी का फल है । परन्तु डाक्टर ब्ल्यूम के विचारानुसार इस जाति को कबाबचीनी का फल यूरोप नहीं भेजा जाता। उनके मत से व्यापारिक कबाबचीनी मुख्यतः कबाबचीनी भेद ( P. Caninum, Rumph: or P. Cubeba, Rorb.) से प्राप्त होताहै । जिसका फल अपेक्षा कृत लघुतर एवं अल्प चरपरा होता है। यूनानी हकीम अबू हनीफा ने अपने उद्भिद शास्त्र विषयक ग्रन्थ में लिखा है कि कबाबचीनी का पेड़ जंगली श्रास के पेड़ की तरह होता है। पत्ते रेहाँ के पत्ते से पतले होते हैं । फूल पीताभ श्वेत होता है। यह कठोर भूमि में उत्पन्न होता है।
(२) कबाबचीनी का फल-इसके फल में प्रायः एक पतली सी गोल या किंचित् चिपटी डंडी लगी रहती है । जो स्वयं फलाधार के सिकुड़ने के कारण बन जाती है । इसलिए यद्यपि वह वास्तविक नहीं, पर देखने में वैसा प्रतीत होती है। फल शीर्षपर फूल कुछ दनदानेदार अवशिष्टांरा