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कपूर
iac ) है । परन्तु बड़ी मात्रा में देने से यह कामा वसाय ( Ana prosiac ) उत्पन्न करता है । नोट- भारतीय चिकित्सक भी सेनी कपूरate ( Borneo Camphor ) को वृष्य मानते हैं, परन्तु इसके विपरीत इसलामी इतिब्बा इसे और काफ़ूर कैसूरी दोनोंको वृष्य-कामावसाय जनक बतलाते हैं।
उत्सर्ग - शारीर धातुओं में कपूर श्रंशतः ऊष्पीकृत ( Oxidise ) होता है और कैम्फोरोल नामक द्रव्य का निर्माण करता है। उक्त द्रव्य ग्लाइक्युरोनिकाम्ल ( Glycuronic acid ) के साथ संयुक्र होकर वृक्कों के द्वारा उत्सर्गित होता है । शरीर से लगभग अपरिवर्तित दशा में वृक्क, स्वचा और वायु प्रणालियों की श्लैष्तिक कलाओं के रास्ते कपूर का उत्सर्ग होता है।
कपूर के विषाक्त प्रभाव
उग्र विषाक्त प्रभाव - यद्यपि कपूर द्वारा विषाक्रता कचित् ही होती है, तथापि इसे अधिक परिमाण में खा लेने से, पाकस्थली की जगह वेदना ( Epigastric pain) होती है, जी मिलाता और कभी-कभी के श्राती है। इसके सिवाय शिरोघूर्णन, दृष्टिमांद्य, प्रलाप, मृगी चत्
क्षेप, शरीर की नीलवर्णता, पक्षाघात इत्यादि लक्षण होते हैं। शीतल, चिपचिपा, स्वेद श्राता और पेशाब का थाना वा उसकी उत्पत्ति रुक जाती है । ततः संमोह वा अचेतावस्था में मृत्यु उपस्थित होती है।
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उपचार - वामक श्रौषधि देकर वमन करायें वाष्टक - पंप से श्रामाशय को प्रक्षालित करें । शीघ्र प्रभावोत्पादक सेलाइन अर्थात् क्षारीय रेचन दें | शीतल एवं उष्ण डूश का प्रयोग करें । काउंटर इरिटेंट्स काम में लावें । निर्बलावस्था में उत्तेजक वस्तुनों का व्यवहार करायें और यदि श्रावश्यकता हो, तो कुचलीन ष्ट्रिकनीन का त्वगीय अन्तःक्षेप करें।
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चिरकालानुबन्धी विषाक्त प्रभाव - नवयुवती रमणीगण अपने सौंदर्य वर्द्धनार्थ वा श्रपना वर्ण कर्पूरवत् सफेद बनाने के लिए कभी २ कपूर खाने
कपूर
का अभ्यास करती हैं । परन्तु एक बार इसकी श्रादत पड़जाने पर पुनः इसका परित्याग कर देना श्रतीव कठिन होजाता है। इस प्रकार श्रादती तौर पर थोड़ा सा कपूर खाने से मनोल्लास एवं श्रात्मानंद का अनुभव होता है । अत्यन्त निर्बलता.. एवं शरीर को पांडु-वर्णता इसके प्रधान लक्षण हैं ।
कपूर के प्रयोग वहिः प्रयोग
कपूर एक सुलभ द्रव्य । अस्तु, कटिशूल, मांसपेशीत वेदना; चिरकालानुबंधी ग्रामवात प्रभृति कतिपय रोगों में शूल निवृत्यर्थ गृह श्रभ्यषों में प्रायः इसका उपयोग करते हैं ।
उत्तेजक प्रभाव के लिए मोच खाये हुये स्थान ( Sprains) पर तथा प्रदाहजन्यं संधिशोथ पर ( चाहे वह संधिवात के कारण हो अथवा किसी अन्य कारण से ) लिनिमेंट आफ कैम्फर का अभ्यंग किया करते हैं। कास (Bronchitis) पार्श्वशूल ( Pleuritis ) एवं फुफ्फुसोष (Broncho-Pneumonia) रोग में लिनिमेंटम् कैम्फोरी एमोनिएटेड, टर्पेनटाइन - तारपीन तेल तथा एसीटिक एसिड लिनिमेंट का काउंटर
रिट रूप से उरोभ्यंग श्रतीव उपयोगी सिद्ध होता है । उद्दूलन की श्रौषधियों में कंपूर का महीन चूर्ण मिलाकर कतिपय स्वग्ररोगों, जैसेपामा ( Eczema ) एवं इंटर ट्राइगो प्रभृति पर अवचूर्णन करते हैं। एक श्राउंस जिंक श्राइंटमेंट में श्राधा ड्राम कपूर मिलाकर उत्पादकांगजात पांमा पर लगाने से खाज कम होजाती है। कपूर को सुरसार में घटितकर फिर उसे सादे मलहम में मिलायें । इसे अर्श (Piles) पर लगाने से ख़राश एवं वेदना कम होजाती है ।
फोड़ा फुन्सी (Boils ) तथा शय्या -क्षत पर यदि रोग प्रारम्भ होते ही स्पिरिट श्राफ कैम्फर लगाया जाय, तो रोग बढ़ने नहीं पाता, उपरितन वातशूल (Superficial neuralgia ) के निवारणार्थ स्थानीय वेदना स्थापक रूप से, कोरोल कैम्फर शोर मेंथोल कैम्फर अत्यन्त उपाद्वेय होते हैं ।