________________
कपूर
२११३ के उपरांत होने वाला स्थानीय प्रदाह है। प्रयोग-प्रामवात (Rheumatism) इसे वटी वा कैप्सूल रूप में देना उत्तम है। में इस तेल का अभ्यङ्ग हितकर होता है।
मात्रा-२ से ८ ग्रेन=( ०.१२ से ०.५ नोट-जापानी कपूर तैल दो प्रकार का होता ग्राम)। परन्तु मद्योन्माद में इसे द्विगुण मात्रा में है। (1) जापानी (२) चीनी । भी देते हैं।
जापानी कपूर तेल-यह पीला वा पीताभ पत्री लेखन विषयक संकेत-डायल्युटेड |
धूसर वर्ण का द्रव होता है । जिसमें से सेफरोल ग्लूकोज के साथ इसकी वटिकाएँ प्रस्तुत कर व्यव
(रोगन सासारास) की तीव्र गंध पाती है। हार करें या इसको वादाम तेल वा जैतून तेल में
इसका आपेक्षिक गुरुत्व ०१० से ०२० तक होता विलीन कर, पुनः लुआब (म्युसिलेज) और जल
है। यदि उक्त तैलमें से सेलरोल पृथक् कर दिया के साथ इसका दुधिया घोल-इमलशन प्रस्तुत
जाय, तो फिर उसका रंग सफेद हो जाता है। कर बर्ते । एक्सट्रेक्ट आफ बेलाडोना के साथ
चीनी कपूर-यह किंचित् पीला या पीताभ सम्मिलित कर भी इसका उपयोग करते हैं।
धूसरवर्ण का द्रव होता है, जिसमें से कपूर की
तीव्र गंध आती है। इसका आपेक्षिक गुरुत्व नोट-कहते हैं कि यह कुचलीन (ष्ट्रिकलीन)
१५० से १६६० होता है। के विष का अगद है।
(२) कैम्फाइड Camphoid-यह (१०)-(क) क्लोरोल कैम्फर Chlo
सम भाग कपूर और जलशून्य सुरासार (Absral Camphor. (ख) मेन्थोल कैम्फर
olute Alcohol ) में पैराक्सेलीन का ४० Menthol Camphor (ग) फेनोल
में १ भाग की शक्ति का विलयन है । यह पायकैम्फर Phenol Camphor (घ) थाइ- डोफार्म, रिसासन, क्राइसारोबीन और इक्थियाल मोल कैम्फर Thymol Camphor (ङ)
प्रभृति के वाह्य उपयोग का अर्थात् उनके लगाने रिसासन कैम्फर Resorcin Camphor
का एक उत्कृष्ट माध्यम है । अस्तु, इनमें से किसी इनमें से प्रत्येक औषध समभाग कपूर के साथ एक ओषध को उक्त विलयन में मिलाकर इसे मिलाकर रगड़ने और गरम करने से तैयार की श्रालिप्त करने से त्वचा पर एक झिल्ली सी जम जाती है। ये समग्रयोग अर्थात् इनमें से प्रत्येक जाती है, जो पानी आदि से धुल नहीं जाती। यह योग अत्यन्त प्रभावकारी स्थानीय वेदना स्थापक
कलोडियन की प्रतिनिधि है। या दर्द दूर करनेवाला है।
(१३) कैम्फर नैफ्थोल Camphor (११) एसेंशल आइल आफ कैम्फर- Naphtho), नैफ्थोल कम कैम्फोरा NaphEssential oil of Camphor अर्थात् thol cum Camphora-ले । उड़नशील कपूर तैल । सीमाब तबा रोगन निर्माण विधि तथा उपयोग-वीटा-नैफ्थोल काफूर।
१ भाग, कपूर २ भाग इन दोनों को गरम करलें। कपूर वृक्ष के सभी अङ्ग-प्रत्यङ्गों का अर्क परि- यह एक पिच्छल-चिपचिपा द्रव होता है जो नु त करने पर एक प्रकार का कुछ गाढ़ा तैल प्राप्त तेल में मिल जाता है। इंद्रलुप्त ( Tinea) होता है, जिससे यांत्रिक उपकरणों द्वारा कपूर तथा अन्य कृमि जात त्वग् रोगों में इसका उपयोग पृथक् किया जासकता है । उक्र तैल को छानकर होता है ।यह क्षत और डिफ्थेरिक मेम्ब्रेन (खुनाक साफ कर लेते हैं । यह तैल वृक्ष में छेवा देने से वबाई की झिल्ली जो गले में पैदा हो जाती है) भी प्रायः प्राप्त होता है। जिसका उल्लेख प्रथम पर लगाने की एक बलशाली निर्विषैल एवं पचनकिया गया है । कदाचित् यही राजनिघण्टूक कपूर | निबारक वस्तु है। तैल है। या सम्भवतः किसी अन्य तैल में कपूर (१४) कैम्फर सैलोल Camphor Sa को द्रवीभूत कर तयार करते रहें।
lol-सैलोल ३ भाग, कैम्फर कपूर भाग ४५ फा०