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एमाइल नाइट्रिस
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शारीर-ताप - एमाइल नाइट्र ेट के प्रभाव से शारीरिक ऊष्मा स्वास्थ्य और ज्वर दोनों दशाओं में कम हो जाती है। शारीरिक ताप के कम होने का उक्क कार्य प्रान्तस्थ प्रणालियों ( Periphe ral vessels ) के_विस्तारित हो जाने और शारीरिक संवर्तन क्रिया ( Metabolism ) के विकृत हो जाने के कारण हुआ करता है ।
प्रस्राव – एमाइल नाइट्र ेट का नाइट्राइट्स और नाइट्र ेट्स के रूप में मूत्र द्वारा उत्सर्ग होता है । यह किंचिद् मूत्रल भी है ।
टिप्पणी- कभी - कभी इसके उपयोग से पेशाब में शर्करा श्राने लगती है अर्थात् मधुमेह (Giycosurea ) नामक व्याधि हो जाती है, जिसका कारण संभवतः यकृत की रंगों का प्रसारित हो जाना होता है ।
एमाइल नाइट्र ेट के चिकित्सोपयोगी प्रयोगइन्हलेशन ( सुँघाना ) - डाक्टर ब्रण्टन ( Brunton ) महाशय ने सन् १८६७ ई० में इस बात का पता लगाया, कि हृच्छूल नामक व्याधि में रोगाक्रमण के समय प्रान्तस्थ प्रणालियाँ श्रतीव संकुचित हो जाती हैं। उसने यह भी अवलोकन किया कि एमाइल नाइट्र ेट के उपयोग से वे रंगें विस्तारित हो जाती हैं। इस लये उन्होंने उक्त व्याधि में इस औषधि को सुधाया । फल यह हुआ कि प्रान्तःस्थ रंगें फैल गई ' और हृच्छूल विलुप्त हो गया । पर कभी ऐसा भी होता है कि हृच्छूल में शरीरगत प्रान्तस्थ प्रणालियाँ नहीं फैलतीं । किंतु एमाइल नाइट्र ेट के श्रघाण कराने से उक्त श्रवस्था में भी कल्याण हो जाता है । श्रतः श्रब हर प्रकार के हृच्छूल में उक्त भेषज को सुघाते हैं प्रधानतः उस समय जब वेदना वेग क्रमानुसार होती । इसके सुँघने प्रायः दो-तीन मिनट के उपरांत ही रोगी लाभ अनुभव करता है ।
वक्ष के धमन्यर्बुद-जनित पीड़ा में भी इस औषध के उपयोग से लाभ होता है। रजोनिवृत्ति (Menopause ) काल में कतिपय स्त्रियों के जो मुखमंडल वा शरीर के अन्य भाग गरम और रागयुक हो जाते हैं, उनको भी इस औषधि के
एमाइले नाइट्रिस
सूँघने से बहुत उपकार हुआ करता है । मृगी में रोग का वेग प्रारम्भ होने के समय ही यदि यह औषध श्राघ्राण कराई जाय, तो प्रायः वेग रुक जाया करता है । शीतज्वर ( Ague) में कंप प्रारम्भ होते ही, यदि उक्त भेषज श्राघ्राण करा दिया जाय, तो ज्वरवेग संक्षेप हो सकता है। अर्द्धावभेदक ( Migraine) में, जो चेहरे के एक ओर की रंग के आक्षेपग्रस्त हो जाने के कारण
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करता है और जो अपनी पांडु - पीतवर्णता द्वारा पहचाना जा सकता है, एमाइल नाइट्रेट के सुँघाने से कभी-कभी कल्याण होता है ।
सन्यास ( Syncope), मूर्च्छा, ( Fainting ) और श्वासावरोध वा श्वासकृच्छ्रता में भी जैसा कि डूबने वा फाँसी लगने में हुआ करता है, उक्त भेषज कल्याणप्रद प्रमाणित हुआ है ।
क्लोरोफार्म सुघाते समय यदि हृदयावसाद के कारण चेहरे का रंग फीका पड़ जाय, तो उस दशा में भी इस औषधि के सुँघाने से उपकार होता है । श्रहिफेन जनित विषाक्रता में भी इसका हितावह प्रमाणित हुआ है ।
चूँकि इससे रक्तचाप घट जाता है; अस्तु, रक्तनिष्ठीवन ( Haemoptysis ) और रक्तवमन ( Haematemesis ) नामक रोगों में इसका उपयोग हितकर अनुमान किया गया है । किन्तु उक्त व्याधियों में इसकी उपयोगिता भी संदेह रहित नहीं कही जा सकती ।
दमा वा श्वास रोग ( Asthma ) में जब इसके साथ अन्य उपसर्ग वर्तमान न हों, तब
माइल नाइटेट के सुघाने से क्षणमात्र में हो श्वास कृच्छ्रता निवृत हो जाती है । हार्दीय श्वास कृच्छता । हृदय के विस्तारित और स्थूल हो जाने से साँस के कष्ट से श्राने ( Cardiac dispnoea. ) में, जब कि उसके साथ जलंधर - रोग भी विद्यमान हो, उक्त औषधि के सुंघाने से ऊपर से देखने में लाभ हो जाया करता है ।
सामुद्र-रोग ( Sea sickness ) में भी