________________
कपूर
२१०८
कपूर
श्वेत, स्वच्छ उज्वल और परतदार होता है ।। वृक्ष के भीतर से निकलता है । यह भी श्रेष्ठतम, शुद्ध और अल्प प्राप्य है। जिस बर्ष अधिक वज्रपात होता है और भूकम्प होता है, उस बर्ष वह अधिक निकलता है । (३) क़ाफ़र मोतीइस प्रकार का कपूर वृक्ष की डाल, पत्ते और लकड़ी प्रभृति टुकड़े-टुकड़े करके कथित करने से प्राप्त होता है। यह अस्वच्छ धूमिल रंग का होता है। ___ फारमूसा या फारमूसा द्वीप का कपूर अधिक प्रसिद्ध है। इसी को काफूर कैसूरी कहते हैं। यह फारमूसा से कैसूर होकर पाता होगा, जो सरान द्वीपस्थ एक स्थान है श्रथवा यह .फारमूसा के सन्निकट कोई स्थान होगा, रियाही काफूर के वृक्ष सुमात्रा और बोर्नियो में उत्पन्न होते हैं।
नोट-कातर कैसूरी, कातर रियाही और काफूरमोती को, आंग्ल भाषामें क्रमशः इन संज्ञाओं द्वारा पुकारते हैं-(१) Farmosa Cam phor फारमूसा कैम्फर, लारेल कैम्फर Laurel Camphor. (२) बोर्नियो कैम्फर
Borneo Camphor. ar airfatar - Borneol. और (३) ब्लूमिया कैम्फर, : Blamea Camphor या निगाई कैम्फर Nagai Camphor.
तालीफ़ शरीफ़ी में, जो आयर्वेदीय द्रव्य-गण | बिषयक फ़ारसी भाषा का निघण्ट है यह लिखा है कि कपूर चार प्रकार का होता है। बुतासर (पोतास), भीनसेनी, भीम सुबास (?) और उदय भास्कर । गुणधर्म में ये सब समान होते हैं मादनुश्श्निा में वैद्यों के कथनानुकूल केवल इसके ये तीन भेद लिखे हैं, यथा-(१) सफेद, (२) पीताभ श्वेत और (३) थोड़ा सफ़ेद ।
नव्यमतअर्वाचीन अन्वेषकों ने कपूर के प्रधानतः ये दो भेद स्वीकार किए हैं, यथा--(१) चीन और जापान कपूर और (२) बोर्नियो और सुमात्रा कपूर । डिमक के अनुसार 'सिन्नेमोमम् कैम्फोरा'
अर्थात् दारचोनी कपूरी के वृक्ष से चीन और - जापान कपूर तथा 'डाइयोबेलानप्स ऐरोमेटिका' |
के पेड़ से बोर्नियो भोर सुमात्रा नाम कपूर प्राप्त होता है । इनमें से प्रथम प्राचीनोक्न पक्क एवं द्वितीय अपक्क कपूर है। इस देश में विशुद्ध चीन
और जापान कपूर अत्यल्प मात्रा में और अधिकतया अविशुद्ध रूप में ही आता है । इस अविशुद्धकपूर को भारी करने के हेतु बम्बईमें इसे प्रणाली विशेष द्वारा पुनः ऊद्धर्वपातित करते हैं, जिससे १४ भाग कपूर में २॥ भाग जल (इस अनुपात से उसमें जल) अभिशोषित हो जाता है। अबिशुद्ध चीन और जापान कपूर में से जापान कपूर अपेक्षा कृत अधिक परिष्कृत होता है। साधारणत: यह दो प्रकार के कपूर ही बाजार में विक्रीत होते हैं । जापान से जो विशुद्ध कपूर भारतवर्ष में आता है वह बृहत् चतुष्कोण; पिष्टाकृति स्थाली के श्राकार का डेढ़ इञ्च मोटा होता है और उसके केन्द्र भाग में छिद्र होता है । विशुद्धता में यह प्रायः यूरोप से आये हुये कपूर के तुल्य होता है। विशुद्ध जापान कपूर टिन मढ़े हुए पेटियों में रहता है। प्रत्येक पेटी में दो सेर तेरह टांक कपूर होता है ।
अविशुद्ध जापान-कपूर दानेदार होता है और एक में लिपटकर प्रायः पिण्डाकृति ग्रहण कर लेता है। यह अविशुद्ध चीनियाँ कपूर के समान भाई नहीं, अपितु शुष्क होता है और वर्णान्तरित नहीं होता। कभी-कभी यह कुछ गुलाबी रंग का होता है। अविशुद्ध चीनियाकपूर के ईषद् शुभ्र वा धूसरवर्ण के छोटे २ दाने होते हैं । और जल की विद्यमानता के कारण न्यूनाधिक पार्द्र होते हैं । यह टिन मढ़ी हुई पेटियों में आता है। इनमें से प्रत्येक पेटी में एक मन सोलह सेर कपूर होता है। बोर्नियो और सुमात्रा कर्पूर-बोर्नियो कपूर अर्थात् बरास साधारण कपूर की अपेक्षा किंचित् कठिन एवं भारी होता है अतएव यह जल में डूब जाता है ।
डिमक के मत से बोर्नियो कपूर ही भीमसेनी कपूर है । आजकल प्राधसेर उत्तम बोर्नियो कपूर का मूल्य १००) और अपेक्षाकृत हीन गुणान्वित का मूल्य ७०)-८०) है।
ईसवी सन् १७६३ में मि० जान मेकडोनल्ड ने सुमात्रा-कपूर के संग्रह को प्रणाली इस प्रकार