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कपित्थ-da
२०६६
कपित्थ-तैल-संज्ञा पुं० [ स०ली० ] कैथ के बीज से निकाला हुआ तैल ।
की ० ] ( १ ) । ( २ ) कैथ
गुण-- यह कसेला. स्वादु और चूहे के विष को दूर करता है । वै० निघ० । कपित्थ त्वक्-संज्ञा स्त्री० [सं० एलवालुक । रा० नि० व० ४ की छाल । कपित्थ-निर्यास-संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] कैथकागोंद । कपित्थ-पत्र - संज्ञा पु ं० [सं० नी० ] एलवालुक | एलाफल । नि० शि० ।
संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] एक प्रकार का वृत्त, जिसकी पत्तो कैथ की तरह होती है ।
प० - कपित्थानी । कपित्थाली । कवटपन्नी । ( मरा० ) कैतपत्री - ता० श० | गंधबिरजार गाछ–बं० । रत्ना० ।
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कपित्थ-पत्र - कपित्थ-पत्रीकपित्थ-पर्णी
गुण - यह तीच्ण, गरम, पाक में कटु और कसेलो तथा तिक रस युक्र है । यह कृमि, कफ, मेद, प्रमेह, विष एवं स्नायु रोग नाशक है। वै निघ० । संस्कृत पर्य्या० – विराजा, सुरसा और चित्र
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पत्रिका |
गुण-यह स्वाद में तीच्ण है ।
प्रकृति - प्रथम कक्षा में उष्ण और रूक्ष है । कफोल्वणता और शुक्र स्त्रव को उपकारी है। ख० अ० । यह गरम तर है, एवं बिष के प्रभाव तथा कफ प्रकोप और शुक्र क्षय को दूर करती है ।
ता० श० ।
कपित्थ-फल-संज्ञा पुं० [सं० नी० ] कैथ। कठबेल । कपित्थानक- संज्ञा पुं० [सं० कपित्थार्जक ] सुरंजान बिशेष |
कपित्थादिकल्क - संज्ञा पुं० [सं० क्री० ] एक प्रकार का योग जो स्त्री रोग में प्रयुक्त 1 योग — कैथ और बाँस के पत्त े एक साथ समान भाग पीसकर, एक तोला के मात्रा में शहद के साथ पीने से दुःसाध्य प्रदर को दूर करता है । वृ० नि० २० स्त्री रोग चि० । कपित्थादि चूर्ण-संज्ञा पुं० [सं० क्ली० ] उक्त नाम का एक योग ।
विधि - कैथकी शुष्क गिरी, सोंठ, मिर्च पीपल इन्हें समान भाग लेकर चूर्ण करे ।
कपित्थाष्टक
मात्रा -१ से ४ मा० ।
गुण- इसे शहद और मिश्री के साथ सेवन करने से उदर रोग शांत होता है । च० चि० १० श्र० ।
कपित्थादि पेया - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] उक्त नाम का एक योग ।
निर्माण - बिधि – कैथ की गूदी, बेल की गूदी चाँगेरी, अनार दाना और तक्र से प्रस्तुत की हुई पेया ग्राहिणी और पाचन होती है। यदि वात
की प्रबलता हो, तो इसे पंचमूल के काथ सिद्ध करके पीना चाहिये । च० सू० श्र० ३ । कपित्थादि योग-संज्ञा पु ं० [सं० पु ं० ] उक्त नात
का एक योग, जो ग्रहणी और अर्श में दिया जाता I
विधि - कैथ और बेल की गूदी, सोंठ और सेंधानमक इन्हें समान भाग लेकर चूर्ण करें । और इसमें से उचित मात्रा लेकर सेवन करने से उक्त लाभ होता है। वसवरा०: १४ प्र० पृ० २३० : कपित्थानी -संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री०] कपिस्थानी | गंधा
बिरोजे का पेड़ ।
कपित्थान -संज्ञा पुं० [सं० पु० ] श्राम्र भेद । एक प्रकार का श्राम । वै० निघ० । कपित्थाज्जक-संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] एक प्रकार की तुलसी । सफेद तुलसी । श्वेतार्जक ( मद० व० ३) बबुई तुलसी । खजाइनुल् श्रद्विया के रचयिता के अनुसार यह एक प्रकार का सुरंजान है । वे लिखते हैं- वैद्य कहते हैं कि यह तीच्या, शीतल और रुक्ष है तथा अवयवों में सूजन एवं पित्त उत्पन्न करती है। रक्त विकार तथा कफ का नाश करती है, और दाद, उदरस्थ कृमि तथा विष विकार में लाभ पहुँचाती है । न० छ० ।
कपित्थाष्टक चूर्ण - संज्ञा पु ं० [सं० नी० ] ग्रहणी रोग नाशक एक प्रकार का योग |
विधि - कैथ की गूदी ८ भाग, मिश्री ६ भा०, अनारदाना ३ भा०, अग्ली का गूदा ३ भाग, बेल गिरी ३ भा०, धाय के फूल ३ भा०, अजमोद १ भाग, पीपल ३ भा०, काली मिर्च १ भाग, जीरा १ भा०, धनियाँ १ भाग, पीपलामूल १ भाग, नेत्रवाला १ भा०, साँभरनोन १ भाग, अजवायन