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________________ कपास २०८६ हकीम आबिद सरे - हिंदी ने शरह असबाब के हाशिये पर जियाबेतुस ( बहुमूत्र ) के प्रकरण में लिखा है कि बिनौले को पानी में भिगोकर मलें और उस पानी में मिश्री या खाँड़ मिलाकर श्रग्नि पर यहांतक पकायें कि श्रवलेह सा होजाय, इसमें से प्रतिदिन प्रातःकाल निहार मुँह चाटा करें और इसके तीन घण्टा उपरांत भोजन किया करें, इससे बहुमूत्र (ज़ियाबेतुस ) रोग बिलकुल जाता रहेगा । इसकी अनेक बार परीक्षा की, कभी विफल मनोरथ नहीं होना पड़ा । बिनौले की गिरी और गंधा- बिरोजा इन दोनों को मिलाकर जननेन्द्रिय के छिद्र में धारण करने सेलिंगोत्थान होता है । श्राकारकरभ के साथ भी उक्त लाभ होता है। बिनौला - दूध और घी उत्पन्न करता और श्वास रोग को श्राराम पहुँचाता है । जाड़ों में इसका हरीरा सीने के रोगों को लाभ पहुँचाता है। बारह रत्ती समुद्रफेन को कूट छानकर पौने दो तोला बिनौले की गिरी के तेल में मिलाकर रखें, और आँख में लगाया करें। इसके चिरकाल सेवन से मोटे से मोटा श्राँख का जाला कट जाता है । परीक्षित प्रयोग है । इसका तेल काँई, काले दाग़, चुनचुनों और क्षतों का निवारण करता है । वैद्यों के मत से बिनौला तर और भारी है । यह कफ की वृद्धि करता, वीर्य उत्पन्न करता एवं कफ और पित्त को लाभकारी है, यह शारीरिक ताप, पिपासा, क्रान्ति और मृगी को निवारण करता और स्तन्यबर्द्धक है, इसकी गिरी पुट्ठों को शक्तिप्रदान करती है। इसकी मींगी की खीर पकाकर खाने से कामावसाय दूर होता है, चेहरा दीप्ति होता और उसका रंग निखर श्राता है । शिरःशूल निवारणार्थं बिनौलों की गिरी और पोस्ते के दाने इनकी हरीरा पकाकर खिलाना चाहिये। इससे उपकार होता है । यदि श्रागसे जल जाय वा छाला पड़ जाय, तो बिनौले की मींगी को पीसकर लेप करें। इससे तज्जन्य प्रदाह की शांति होती है । ४२ फाο कपास इसके तैल मर्दन से गठिया-जनित वेदना निवृत्त होती है। बिनौले की गिरी पानी में पीस छानकर चावलों के साथ खीर पकाकर खिलाने से नारी स्तन्य की वृद्धि होती है । २॥ पाव बिनौलों को सवासेर पानी में पकायें जब पाव भर पानी शेष रहे तब उतारकर छानलें । १२ ॥ तोले की मात्रा में, यह काढ़ा शीतका वेग होने से एक या दो घण्टा पूर्व पिलाने से श्रानेवाला ज्वर रुक जाता है। इसकी मींगी का दुधिया पानी प्रस्तुत कर श्रामातिसारी को पिलाते हैं । दबाकर निकाला हुआ बिनौले का तेल लगाने से शरीर त्वग्गत नीले चट्ट े मिटते हैं । बिनौले की गिरी और सोंठ इनको पानी में पीसकर प्रलेप करने से फ्रोतों की सूजन मिटती है। इनको वध में मिलाकर पिलाने से शुष्क का आराम होता है । इनकी मीगों का हरीरा बनाकर पिलाने से पाखाना मुलायम होजाता है । इसका हा प्रस्तुत कर खाने से कामोद्दीपन होता है। उव्याधि निवृत्यर्थ मीगों का दुधिया रस पिलाना चाहिये | मीगों को पीसकर कनपुटियों पर लेप करने से शिरःशूल निवृत्त होता है । बिनौलों को कथित कर गण्डूष करने से दंत शूल मिटता है । तीन तोला विनौलों की गिरियों को पानी में पीसकर पिलाने से धतूरे का ज़हर उतर जाता है। 1 बिनौले की मीगियों को दूध में श्रौटाकर पिलाने से सभी भाँति के जहर उतर जाते हैं । बिनौला ७ माशा रात को पानी में भिगो दें। प्रातःकाल उन्हें पीस छानकर थोड़ा सेंधा नमक मिला पियें। इससे कामला (यर्कान) नष्ट होता है । मींगों को पीसकर रोटी बना बाँधने से बादीका दर्द आराम होता है।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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