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________________ कह २०४३ फूलों (तुम्वी पुष्प) का रस नाक में टपकाने वा | .. Rhinitis) इसके रस की कुछ बूदें नाक में सुड़कने से कामला एवं मस्तिष्क की तर व्याधियाँ टपकावें। -डं० मे० मे . ४६०-७ दर होती हैं। सूखी हुई तुबी को चीरकर उसके डॉक्टर वर्टन ब्राउन ( Dr. Burton सिरे के गढ़ का पर्दा निकालकर उसे महीन पीस Brown) =एतजन्य विषाक्रता के लक्षण लेवें, उस कामला रोगी को जिसकी आँख और प्रायः बंदाल वा इन्द्रायन जनित विषाक्रता के मुखमंडल तक पीला पड़ गया हो एवं प्रायः तर सरा लक्षण होते हैं । फा००२ भ०। मस्तिष्क व्याधियों में इसका नस्य देने से पीले | कदाना-संज्ञा पुं फा०] एक प्रकार का उदर रंग का द्रव और कफ नाक से निकल कर उक्त कृमि जो कह के वीज की तरह होता है। स्फीत रोग आराम होते हैं। यह लगभग विष है। कृमि । बध्नाकार कृमि । ( Fap worm) दे० "कृमि"। नब्यमत कद्रु-वि• [सं० त्रि.] पीला | पिंगल वर्ण विशिष्ट । आर० एन० खोरी-तिन अलाबू का गूदा गंदुमो का भूरा । वामक और रेचक है । तिक्कालाबू बीजजात तैल ___संज्ञा पुं० [सं० पु० ], (१) पीला रंग। शीतल एवं शिरः स्निग्धकर है। (मेटीरिया पिंगल वर्ण। भूरा वा गेहुवाँ रंग । (२) चिरौंजी मेडिका श्राफ इण्डिया -खं० २, पृ. ३१२) का पेड़ । पियार । प्रियाल वृक्ष । ०टी० भ०। डीमक-इसका सफेद गूदा बहुत कड़वा कद्रुज-संज्ञा पुं॰ [सं०] कद्र से उत्पन्न । नाग। और प्रबल वामक और बिरेचक होता है । भारत सर्प । सांप। बर्ष में इसका गूदा बिरेचनार्थ अन्य औषधियों के कद्रुण-वि० [सं० त्रि०] पिंगल वर्ण युक्र । गंदुमी । साथ देशी चिकित्सा में व्यवहृत होता है । पुल्टस | भूरा। रूप में इसका बहिर प्रयोग भी होता है। इसका दुपुत्र-संज्ञा पु० [सं० पु.] नाग । सर्प। बीज प्रथमतः प्राचीनों के शीतल चातुर्बीज का | साँप । एक उपादान था, परन्तु अधुना कदू ( Pump ___ संस्कृतपर्याय-कावेय, कच कालु और kin) के बीज प्रायः उसकी जगह काम में कनुसुत । पाते हैं । कामला में हिन्दू लोग इसकी पत्ती का | का कद्वर-संज्ञा पु॰ [सं. क्री० ] (१) वधि स्नेह युक्त काढ़ा व्यवहार करते हैं । यह बिरेचक होता है।। तक । पानी मिला मट्ठा । (२) दुग्ध का पानी । फा० इं० २ भ०। श्राब-शीरा । तोड़। डुरी-कामला में इसकी पत्तियों का काढ़ा | कद्ह-अ.] [ बहु० कुदूह] जख्म का निशान । शर्का मिलाकर दिया जाता है । प्रण चिह्न । क्षत चिह्न । (Sear) नादकर्णी-इसका गूदा कड़वा, वामक और नोट-कद्ह स्वादश से बढ़ी हुई अवस्था के इन्द्रायन की भाँति तीव्र विरेचक ( Drastic. | लिये प्रयुक्त होता है। purgative )है । बीज पोषक एवं मूत्रल है। कद्ह-[१०] (1) दे० "कतह"। वीजजाततैल शीतल है । इसके फल को जलाकर | कधि-संज्ञा स्त्री० [सं० पु.] जल, पानी । राख करें। इसे शहद में मिलाकर प्रांख में लगाने क़नः-[अ] नारफील । (Common Galbसे रतौंधी दूर होती है। इसके फल का रस और ____anum) मीठा तेल (Sweet oil) दोनों सम भाग कनः क्रन:-[फा०] कुनैन । लेकर तैलाबशेष रहने तक पकायें । इस तैल के | कन-संज्ञा पुं॰ [सं० कण] () चावलों की धुन । लगाने से गंडमाला आराम होता है। इलाजुल ___ कना । (२) बालू वा रेत के कण । (३) कनसे गुर्वा में प्रलापावस्था में इसका शिरोऽभ्यंग करने वा कली का महीन अंकुर जो पहले रवे के ऐसा को लिखा है। नासारोग में (Atrophic | दिखाई पड़ता है। (४) कान का संक्षि रूप
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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