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कदली
२००८
कदली
की एक जाति के केले में वीज होता है । इसी वीज sapientum, Linn.ले०। प्लाण्टेन ट्री The से वृक्ष उपजता है। किसी-किसी अन्य जातीय Plantain tree, बनाना टी Banana केलेमें वोज होते हुयेभी उससे कोपल नहींफूटती । tree -अं० । बनानीर Bananier, Plaपहाड़ी प्रदेशों में केलेका वृक्ष बहुत कम होता है । tanier -फ्रां० । जेमीनर पिसंग Gemeiवहाँ यह बढ़ नहीं सकती क्योंकि श्रन्यान्य बृक्षोंकी ner Pisang-जर । Fico d Ada. प्रतियोगिता में केले के पेड़ को पहाड़ी प्रदेश की
mo -इट० । मौज़ का झाड़ -दः । वाज़च्चेडि, कठिन मृत्तिकासे रस खींचकर अपना पोषण करना
कदलि, वा8, बलई, बल, बेला, -ता. । अरटिअसम्भव देख पड़ता है। इसी से इसमें कल्ले
चेट्ट, अनटि-चेछु, अण्टि-चे, कदलि, बुरुगचे, नहीं फूटते । कल्ले न फूटने से ही पहाड़ी केले में
दोंडतोगे,चक्राकेली,ते । पिस्याँ,वाश, वाज़मरम्, वीज रहता है । फिर भी वीज इतना आता है कि
वल, वेल्लकाय, पिज़ौंग-मल० । बाले गिड, कालपर शस्य वा गूदा बिलकुल नहीं दिखाई बाले, बाले नडु, -कना० । केलझाड़, केली-चदेता । वीजों पर पतली मलाई की भाँति कुछ
___ झाड़, केलि-मरा० । केलु-नु-झाड़ केल्य-गु० । कोमल, चिपचिपा शस्य रहता है। पक्षीगण उक्त
केहल-गहा, कहिकाङ्ग, केहेल-सिंह० । नपियाशस्य खाने के लिए ही बड़ी दूर से श्राकर पक्क
बिङ, नेपियान, अंगहेट, याथिलन् ,हगायी-बर। फल ले जाते हैं। इसी प्रकार सब जगहों में इसी
केविरो-सिं० । केठठ-मद० । कदली, -कना० । उपाय द्वारा वीज लाये जाने पर केले का वृक्ष
कावालेतव-का० । तल, तत्पमपज-(पाह्रवी) उत्पन्न होता है।
वाला -लु. (छुसाई) गोदङ्ग -(आवा)। केले की कोई एक फ़सल निश्चित नहीं है।
केला । -हिं०, बम्ब० गु०, पं० । बिषु (बालि
द्वीप) गड़ङ्ग-(जापान)। प्रत्युत यह बर्ष भर-साल के बारहों महीने सदा
कले के फल-कदली फलम् -सं०। फलता रहता है। परन्तु बर्षाऋतु में अधिक
केरा, केला-हिं० । कला-बं० । मौज़-द० । मौज़ फलता है।
तलह- श्र०, फ्रा० । मुसा सापीण्टम् Musa केले के पर्याय
Sa pientum, Linn. (Fruit ofकेले का पेड़-कदलो, सुकुमारा, रम्भा, Plantain or Banana)ले० । प्लाण्टेन स्वादुफला दीर्घपत्रा, निः सारा, मोचा, हस्ति- Plantain | बनाना Banana-अं० । विषाणिका ( ध० निः) कदली, सुफला. कदली-ता० । अरटि-मंडु, अनटि-पंडु, अग्टि-पंडु रम्भा, सुकुमारा, सकृत्फला, मोचा, गुच्छफला कदलो, चक्रा केली ते.। वाजप-पज़म्, पेसंगहस्तिविषाणी, गुच्छदन्तिका, काष्ठीरसा, निःसारा मल। वाले हएणु-कना० । केल, पिक्लि राजेष्ठा, बालकप्रिया, उरुस्तम्भा, भानुफला, वन- केल, मठेली-मरा० । केल, केलिया गु० । केहल, लक्ष्मी, (रा०नि०) कदली, वारणा, मोचा, केस्सेल-सिंह०, सिंगाली । उपियासी,हगापी-बर। अम्बुसारा, अंशुमतीफला, ( भा०) वारणबुषा, गोदंग-(जावा)। कदली, काखाली,तब-करना० । रम्भा, मोचा, अंशुमत्फला, काष्ठीला (अ० ), परिचयज्ञापिका संज्ञा-अम्बुसारा, निःसारा, कदलः, वारखुषा, वारणवृषा, (अ. टी.), दीर्घपत्रा, स्वादुफला, सकृत्फला, गुच्छफला। तत्पत्री, नगरौषधिः, (श०), कदलकः, मोचकः, कदली भेदरोचकः, लोचकः, वारवृषा (शब्द र०), वारण- (१) काष्ठकदली श्वेता, राज कदलो, वल्लभा, चर्मण्वती, प्रायतच्छदा, तन्तुविग्रहा, विषघ्नी, कदली, पाषाण कदली–पाठांतरे वन कदलिका, कदेला, सुफलं. -सं० । केला वृक्ष कदली, स्वादुकदली-(ध० नि०) काष्ठकदली, केरा का पेड़, सवेज, केले का पेड़, -हिं० । कला कुकाष्ठा, वन कदली, काष्ठिका, शिलारम्भा, दारु माछ-(बं०) शजूतुल्तलह, शजूतुल्मौज़-अ. कदली, फलाढया, वनमोचा, अश्म कदली (रा० दरख्ते मौज़-फा० । मुसा सापोण्टम् । Musa | नि०)-सं० । कठकेला, जंगली केला-हिं० ।