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कदम २००२
कदम कदम्बो मधुरः शीतः कषायो लवणो गुरुः । वातला मुनिभिःप्रोक्ता फलं त्वस्यास्तु शीतलं। * सरो विष्टम्भ कद्रूक्षः कफ स्तन्यानिलप्रदः ।। तुवरं मधुरं पित्तरक्त दोषहरं मतम् ।। (भा. पू. ३०६)
वै० निघ० कदम-मधुर, शीतल, कषैला, नमकीन, कदम्बिका ( कदम्बी)-मधुर, शीतल,कषेली, भारी, दस्तावर, विष्टंभ कारक, स्तनों में दुग्ध भारी, मलस्तम्भकारी, खारी, रूखी, स्तनों में दूध उत्पन्न करने वाला और वातकारक है।
उत्पन्न करनेवाली, कफकारक और वातवर्द्धक है। - कदम्बः कटुकस्तिक्तो मधुर स्तुवरः पटुः । इसका फल-शीतल, कसेला, मधुर तथा पित्त शुक्रवृद्धिकरः शीतः गुरुविष्टम्भ कारकः ॥ और रक्तविकार नाशक है। रूक्ष: स्तन्यप्रदो ग्राही वर्णकृद्योनि दोषहा।
कदम्ब द्वय
कदम्ब युगलं वयं विषशोथहरं हिमम् । रक्त रुङ् मूत्रकृच्छ्च वातपित्तं कर्फ व्रणम् ।।
दोनों प्रकार के कदम (धूलि और धारा वा दाहं विषं नाशयति ाकुराश्चास्य तूवराः ।
महाकदंब)-वर्ण को सुंदर करनेवाले, शीतल शीतवीर्य्या दीपकाश्च लघवोऽरोचकापहाः ॥ तथा विष और सूजन को उतारनेदाला है। रक्तपित्तातिसारघ्नाः फलं रुच्यं गुरु स्मृतम् ।
कदम्ब त्रय के गुणउष्णा वीर्य कफकरं तत्पक्कं कफपित्त जित् ॥ त्रिकदम्वाः कटुवा विषशोफहरा हिमाः । वातनाशकरं प्रोक्त मृषिभिस्तत्वदर्शिभिः । कषायस्तिक्त पित्तघ्ना वोर्यवृद्धिकराः पराः ।। शा० नि० भू०
__ (रा० नि०) कदम-चरपरा, कड़वा, मधुर, कषेला, खारा, |
तीनों प्रकार के कदम कढ़ ये, चरपरे, कसैले, शुक्रवर्द्धक, शीतल, भारी, विष्टंभकारक, रूखा, शीतल, वर्ण्य, विषनाशक, पित्तनाशक, परम स्तनों में दूध बढ़ानेबाला, ग्राही, वर्णकारक तथा वीर्यवर्द्धक और सूजन उतारनेवाले हैं। योनिरोग, मूत्रकृच्छ्, वात, पित्त, कफ, व्रण, दाह, ___ कदम के वैद्यकीय व्यवहार
और विष इनका दूर करने वाला है । इसके अंकुर चरक-(१) व्रणाच्छादनार्थ कदम्ब पत्रकषेले, शीतवीर्य, अग्निदीपक और हलके हैं तथा कदम की पत्ती से क्षत को आच्छादित करना अरुचि, रत्तपित्त और अतिसार को दूर करते हैं। चाहिये । यथाइसके फल-रुचिकारक, भारी, उष्ण वीर्य "कदम्वाज्जुन निम्वाना..................।
और कफ कारक हैं। इसके पके फल-कफ, व्रणप्रच्छादने विद्वान् पत्राण्यर्कस्य चाऽऽदिशेत्"। पित्त और वातनाशक हैं।
(चि० १३ अ०) धारा कदम्ब
(२) मूत्र की विवर्णता एवं कृच्छ्ता में धारा कदम्बक स्तिक्तो वर्ण्य: शीतः कषायकः । कदम-कदम के काढ़े और गोदुग्ध के साथ यथा कटुको वीर्य कृच्छोथ विष पित्त कफ व्रणान् । विधि पक्क घृत पान करने से मूत्र की विवर्णता वातं नाशयतीत्येवमुक्तश्च ऋषिभिः किल । और उसका कष्ट से आना दूर होता है । यथा
(शा०नि० भू०) "विदारीभिः कदम्वैवा"शृतम् । घृतं पयश्च धाराकदम-कड़वा, कषेला, चरपरा, शीतल, मूत्रस्य वैवण्ये कृच्छ निर्गमे" वर्ण को उज्ज्वल करने वाला, और वीर्यकारक है।
(चि० २२ अ०) तथा सजन, विष, पित्त, कफ और वात का विनाश
वक्तव्य करने वाला है।
चरक के वमनोपवर्ग में नीप एवं वेदना स्थापन कदम्बिका
वर्ग में कदम्ब तथा शुक्रशोधन वर्ग में कदम्ब कदम्बिका तु मधुरा शीतला तुवरा गुरुः । निर्यास का पाठ आया है । सुश्रुत ने रोधादि एवं मलस्तम्भ करौ क्षारा रूक्षा स्तन्यकफप्रदा ॥ | न्यग्रोधादि गण में कदंब का उल्लेख किया है।