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________________ कटेरी कटेरी अभिहित किया है। सुतरां यह वन्ध्यत्व दोष निवारणार्थ सेवन की जाती है। यूनानी मतानुसार गुण दोष--- - प्रकृति-द्वितीय कक्षामें उष्ण और रूक्ष(मतांतर से तृतीय कक्षा में गरम और खुश्क)। स्वादफ्रीका, किंचित्कटु और कुस्वाद । हानिकत्तोश्राकुलताजनक । यह कर्ब--बेचैनी पैदा करती है। इसका सदा खाना मष्तिष्क को हानिप्रद है। दर्पघ्न-व्याकुलता के लिये सिकंजबीन । काली मिर्च एवं शुद्ध मधु । प्रतिनिधि-ऊँटकटारा । प्रधान कर्म-खाँसी के लिये अतिशय गुणकारी है। मात्रा-२ माशा ( ४-५ फूल और फल श्राधा)। गुणा, कर्म, प्रयोग-यूनानी हकीमोंके कथनानुसार इसके रस का नस्य, योषापस्मार-इख्तिनाकुहिम एवं मृगी जात मूर्छा के लिये परमोपयोगी है। इससे तुरत होश आ जाता है । लटके वा ढीले पड़े हुये स्तनों पर इसकी जड़ और अनार के पेड़ की छाल एवं कंदरी के पौधे की छाल--इनको पीस कर लेप करने से, वे दृढ़ एवं कठोर हो जाते हैं । इसके फल का लेप वायु एवं कफज शोयों को सम्यक विलीन करता है और वात एवं कफ जनित शूल को शांत करता है। इसके भक्षण से कास और श्वासरोग पाराम होते हैं। इससे उदरज क्रमि भी नष्ट प्राय होते हैं। • परन्तु इससे मूर्छा उत्पन्न होती है। यह पाचक भी है और भूख लगाती है। केवल फल अथवा इसके सींग को जलाकर मधु के साथ एक रत्ती वा चार रत्तो वा एक माशा खाने से खाँसी और दमा जाते रहते हैं । इसकी पत्तियाँ अर्श को गुण कारी है। इसकी जड़ के चूर्ण का खांड़ और गो दुग्ध के साथ सेवन प्रवल स्तंभन कर्ता है। इसके फलों के लेप से बाल काले होते हैं। इसके खाने से कफ एवं पित्त दोष मिटते हैं। यह कफ ज्वर और पार्श्वशूल में लाभकारी है । सूधने की शक्ति का हास हो जाने पर, यह ओषधि अतीव गुणकारी है । भटकटैया साबुन की भांति मलिनता को दूर करती है और इस हेतु यह उसकी प्रतिनिधि है । वृश्चिक आदि जीवों के काटने पर इसका लेप गुणकारी है। यह क्रान्ति एवं श्रम को निवारण करती है। इसके फूल का जीरा मलावरोध को दूर करता और वस्तिगत अश्मरी को निकालता है। कटाई के रस की विधि प्रथम जमीन में एक बड़ा गड्ढा खोदें और उस गड्ढे की तह में एक और छोटा गड्ढा खोदें . छोटे गड्ढे में चीनी का प्याला या और कोई पान रख देखें और उसके ऊपर एक बड़ी हाँड़ी जिसके पेंदे में कतिपय छिद्र हो, रखें । हाँड़ी को कटाई के पौधों से भर देखें और ऊपर से ढक्कन रखकर कपड़ मिट्टी कर देखें | फिर हाँड़ी के चतुर्दिक और उसके ऊपर उपले चुनकर भाग लगा देवें । कोई-कोई हाँड़ी न रखकर बड़े गड्ढे में ही कटाई के पौधों को रख कर ऊपर घास फूस फैलाकर आग लगा देते हैं। इससे कटाई का रस टपक टपक कर प्याले में एकत्रित हो जाता है । इसे बोतल में भरकर रखें। गुण, उपयोगादि-इसके पीने से सर्द एवं तर खाँसी और दमा में परम उपकार होता है। (नेत्राभिष्यंद रोग में इसे आंखों में लगाने से उपकार होता है। इसे शहद में मिलाकर चटाने से सूजाक श्राराम होता है । तर कास, कृच्छ श्वास, क्षतज क्षय, वातज एवं कफज कास, सीने का दर्द, शीतवर, कंप-इन रोगो में कुछ बूद यह रस पान के साथ खाने से उपकार होता है। )-ख. अ.। सफ़ेद फूल की कटाई कटाई खुर्द अर्थात् लघु कटाई की ही एक किस्म है। दोनों कटाई अर्थात् लची और वृहती जिसके फूल लाल रंगके होते हैं, कटु, तीक्ष्ण एवं कृमिघ्न होती है तथा वायु, ज्वर पार्श्वशूल, मूत्रकृच्छ्र का मूत्राघात, घ्राणशनि का हास-इन्हें दूर करती और उदरज कृमि एवं गर्भस्थ स्त्री तथा हृदय के रोगों को नष्ट करती हैं । प्रकृति-उष्ण और रूक्ष है । यह लघु गुण विशिष्ट है और अपने प्रभाव से कोष्ठ मृदुकरमुलरियन, तुधाजनक, आहार पाचक एवं कास तथा श्वास कृच्छता को लाभ पहुंचाता है।ता० शा०।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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