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कटरी
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फटसरैया । कटरी-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] धान की फसल का एक | लता । नाटा (बं०)। हारा० । (२) औषधि रोग।
बिशेष । संज्ञा स्त्री० [ बम्ब०] निर्गुण्डी। सम्हालू । कटसरैया-संज्ञा स्त्री० [सं० कटसारिका ] अडूसे म्योड़ी।
की तरह का एक काँटेदार पौधा जि.समें पीले, संज्ञा स्त्री० [सं० कट-नरकट ] किसी नदी के लाल, नीले और सफ़ेद कई रंग के फूल लगते किनारे की नीची और दलदल भूमि ।
हैं। कटसरैया कातिक में फूलती है। कटरे-इरिकि-[सिंगा०] तालमखाना । कोकिलाक्ष । ___ कटसरैया के सामान्य पर्या-कटसारिका, कटरैन-[पं०] गिदड़ द्राक । द्राङ्गी ।
झिण्टी, झिण्टिका, झिण्टिरीटिका, अल्मानः,कण्ट कटल-[अासाम ] शरीफा । सोताफल ।
कुरुण्टः कण्टकुरण्टः,सहचरः, सहाचरः, सौरीयकः, कटल टैङ्गा-[ मल० ] दरियाई नारियल ।
सैरेयकः, सैरेयः, कुरुण्टिका, कुरुण्टी, महासहाकटलता-बं०] दुपहरिया । बंधूक पुष्प ।
सं० । कटसरैया, कटसरैया, पियावासा, पियाकटलतीगे-[ते. ] पाताल गरुड़ी। छिरेटा । जल बाँसा, झिण्टी-हिं०। झांटी गाछ, कुलझांटी, जमनी
झिटि-बं० । करोण्ट, कोरण्ट, श्राबोलि-मरा० । कटलाकटु तोगरी-[का०] अरहर ।
काँटा असेलीयो-J० । गोटे-कना० । पैटी कटलाटी (ती)-[ मल.] अपामार्ग । चिर्चिटा।
( पीत तुष्पीय)-कों। गोरेण्डु-तै० । गिरिलटजीरा । चिचिढ़ी।
तिल्द-सिं०। Barleria कटला वणक्कु-[ मल०] जङ्गली जमालगोटा ।। नोट-उपयुक्त संज्ञाओं में फूल के वर्णका कटलेती-[ ते० ] जमती । छिरहटा । पाताल गरुड़। वाचक शब्द जोड़ देने से तत् तत्पुष्पीय झिण्टी . फरीद बूटी। .
वा कटसरैये का बोध होता है। अलग अलग रंग कटले तीगे-[ते.] जमती । छिरहटा । फरीद बूटी। के फूलों के भेद से कटसरैया विविध प्रकार की कटल्ली-कल्ली-कई-[ता०] अज्ञात ।
होती है। कटव जाटे-[ ता. ] लक्ष्मणा ।
धन्वन्तरीय निघण्टु में लिखा है, "सैरेयकः कटवा-संज्ञा पुं० [हिं० कांटा ] एक प्रकार की छोटी सहचरः सैरेयश्च सहाचरः । पोतो रक्कोऽथ नीलश्च मछली जिसके गलफड़ों के पास कांटे होते हैं। कुसुमैस्तं विभावयेत् । पोतः कुररटको शेयो रक्तः
[अफगा०] काकादनी । कबर (१०)। कुरबकः स्मृतः।" उक्त वर्णन से यह ज्ञात नहीं (Gapparis Spinosa, Linn.) होता कि 'सैरेयक' शब्द से किस रंग की फूल कटविश-[बं०] बच्छनाग । वत्सनाभ ।
वाली कटसरैया अभिप्रेत है और नीले रंग की कटवेल-म० ] विशाला । विषलम्भी। महा इन्द्रा- फूल वाली कटसरये की विशेष संज्ञा क्या है। यण । बड़ा इनारून ।
__ भावमिश्र कहते हैं, "सैरेयकः श्वेतपुष्पः', (Cucumis Trigonus, Roxb.) नरहरि लिखते हैं-"नीलपुष्पा तु सा दासी", कटव्यञ्जनी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० 1 कुटकी । सुतरां धन्वन्तरि के मतसे झिएटिका (कटसरैया) नि० शि०।
चार प्रकार की हुई, श्वेतपुष्प,पीतपुष्प, रक्तपुष्प, कटवॉसी-संज्ञा पु० [हिं० काठ + वाँस, वा कोट +
नीलपुष्प । इनका नाम यथाक्रम सैरेयक, कुरण्टक, बाँस] एक प्रकार का बाँस जो प्रायः ठोस और
कुरबक एवं दासी । नरहरि के मत से पुष्पवर्ण कँटीला होता है । और जिसकी गाँठे बहुत समीप
भेद से झिण्टिका छः प्रकार की होती है । यथासमीप होती हैं, यह सीधा नहीं बढ़ता और घना
रकपुष्प, रक्ताल्मानपुष्प, पीतपुष्प, पीताल्मानपुष्प, जमता है । इसे ग्राम के चारों तरफ लगा देते हैं ।
नीलपुष्प, नीलाल्मानपुष्प, इनका नाम क्रमशः यहपीला नहीं होता।
रक्तसहाख्य, कुरबक, किङ्किरात,कुरण्टक,दासी और कट शर्करा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] (1) गाङ्गेष्ठी | छादन है। नरहरि ने श्वेतपुप्पीय झिण्टिका का
२५ फा.