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कटनूस पाउडर
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..: कटभी
कटनूस पाउडर-संज्ञा पुं० [अं• Kutnow,s पत्ते कुछ गोलाई लिए लम्बे होते हैं और ___powder ] एक चूर्णौषध विशेष ।
फल अंडखरबूजे के समान छोटे होते हैं । कटपञ्चक-संज्ञा पु० [सं० की ] घुड़दौड़ फूल सफेद किंचित् दुर्गन्ध युक्त होता है। इसमें
के लिये इन पाँच प्रकार को भूमियों का समाहार । चार पंखड़ियाँ होती हैं। इसकी छाल हलके भूरे मरडलाकार, चतुरस्र, गोमूत्राकार, अर्द्धचन्द्राकार रंग की होती है। यह भारतवर्ष, लका, मलाया और नागपाशाकार | नकुल ने लिखा है
प्रायद्वीप और श्याम में उत्पन्न होती है। "धनुरष्टादशे योज्यं वाजिनां मण्डलं क्रमात् । पर्याय-कटभी, नाभिका, शौण्डी, पाटली, संकोचयेज्जवं यावद्यावत्कटपञ्चकम् । तदूर्द्ध किणिही, मधुरेणुः, क्षुद्रशामा, कैडर्यः, श्यामला मण्डली याज्या गोमूत्रा तदनन्तरम् । ऋजु- (स्वादुपुष्प, कटम्भर, किणिही, भद्रेन्द्राणी) रा० घमसु वर्ती च गोमूत्रा सव्वे कम्मसु । युज्य- नि० व० ।-सं० । हरिमल, करभी, कटभी माना न दृश्यन्ते प्रायशो हि विचक्षण । -हि ।
ज.द. ७ अ०। श्वेत कटभी-सितकटभी, श्वेत किणिही, कटपाडरी-संज्ञा स्त्री० [ सं० काष्ठपाटला] एक गिरिकर्णिका, शिरीषपत्रा, कालिन्दी, शतपादी,
प्रकार का पाटला । पाढर । पाढल । अधकपारी । विषनिका, महाश्वेता, महाशौण्डी, महाकटभी कटपून-[ कना० ] केल पूने ।
-सं० । रा०नि०व०६। कटपोरा-संज्ञा पुं० [१] एक प्रकार की पूरी।
नोट-कृष्ण और श्वेत भेद से कटभी दो कटप्पा-[ मल.] जगली बादाम ।
| प्रकार की होती है। इनमें से श्वेत के महा और ह्रस्व कटप्रोथ-संज्ञा पु० [सं० पु.] चूतड़ । नितम्ब । ___ ये दो उपभेद और होते हैं। स्फिच । (२) कटि । कमर । श०. चिः ।
गुणधर्म कटफल-संज्ञा पु० दे० "कट फल"।
कटभी भवेत्कटूष्णा गुल्मविषाध्मानशूलदोषघ्नी। कटफिट-सिरि० ] पारसीक यमानी। अजवायन | वातकफाजीर्णरुजाशमनी श्वेताच तत्रगुणयुक्ता ॥ खुरासानी।
(रा०नि० व०६). कटबेर-संज्ञा पु. [हिं० काठ+बेर ] (१) सीता
कटभी (कृष्ण)-चरपरी, गरम तथा गुल्म, बेर । (ककोर ) दे० ककोर ।
विष, प्राध्मान, शूल, वात, कफ और अजीर्णरोग. कटबेल-संज्ञा पु० [हिं० कठबेल ] कैथ । कपित्थ।
को दूर करती है । श्वेत कटभी भी इसी के समान कटबेल की गोंद-संज्ञा स्त्री० [हिं०] कैथ की गोंद। गुणवालो है। कपित्थ निर्यास ।
कटभी तु प्रमेहार्थो नाडीव्रण विषकृमीन् । कटभङ्ग-संज्ञा पु० [सं० पु.] (१) हाथ से हन्त्युष्णा कफकुष्ठघ्नी कटूरूक्षा च कीर्तिता।।
अनाज के काटने की क्रिया या भाव । लुनना । तत्फलं तुवरं ज्ञेयं विशेषात्कफशुक्रजित् । भा० हारा० । (२) सोंठ । शुटी । त्रिका।
___ कटभी–प्रमेह, बवासीर, नाडीव्रण ( नासूर), कटभि, कटमी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] (१) विष, कृमि, कफ और कोढ़ को नष्ट करती है।
कण्टक शिरीष । काँटा सिरस । रत्ना । (२) यह गरम, चरपरी और रूखी है। इसका फललता सिरस । लता शिरीष । वल्लीशिरीष । कसेला है और विशेषतः कफ तथा शुक्रनाशक है। ५० मु०। (३) लघु ज्योतिष्मती लता । छोटी कटभी कटुका चोष्णा तुवरातिक्तकामता। मालकँगनी । रा०नि० व० ३, २३ । वै० निघ० नाडीव्रणं रक्तरुज प्रमेहश्च विषंकृमीन।।। २ भ० उन्मा० चि० निशादिघृत । (४) मुसली । श्वेतकुष्ठं कफञ्चैव त्रिदोषञ्च ब्रणन्तथा। मुघली । रा०नि० व० २३ । (५)अपराजिता । शिरोरोगमजीर्णश्च नाशयेदिति कीर्तिता ॥ कोयल । अप० चि० स्मृति सागर रस । (६) फलश्चास्या धातुवृद्धिकरं कफवर्द्धकञ्च । अश्व क्षुरक । (.) गर्दभी। (८) एक प्रकार निर्यासोऽस्या गुरुवृष्यो वल्योवाविनाशनः ॥ का वृक्ष जो मझोले आकार का होता है । इसके कटभी ( महाश्वेत)-चरपरी, कसेली, कड़वी