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कचूर
(Cosmetic) में व्यवहार होता है। राक्सबर्ग के कथनानुसार बंगाल में यह चिटागाँग से पाता है।
प्रभाव-उत्तेजक, प्राध्मानकारक, श्लेष्मानिस्सारक, स्निग्धतासंपादक, मूत्रल और प्रारुण्यकारक ( Rubifacient)।
गुणधर्म तथा प्रयोग आयुर्वेदीय मतानुसारकर्च रः कटुतितोष्णो रुच्यो वातबलासजित् । दीपन: मीहगुल्मार्शः शमन: कुष्ठकासहा ।।
(ध०नि०) कचूर-चरपरा, का श्रा, उष्ण, रुचिकारी, दीपन तथा वात एवं करुना शक है और यह प्लीहा गुल्म एवं अर्श रोग को शमन करनेवाला और कोढ़ तथा खाँसो को दूर करनेवाला है ( पाठांतर से यह केशघ्न केशहा है) कचूर: कतिक्तोष्ण: कफकासविनाशनः । मुखवैशद्यजननो गलगण्डादि दोषनुत् ॥
(रा०नि०) कचूर-चरपरा, कड़वा, उष्ण वीर्य, मुख को स्वच्छ करनेवाला तथा कफ, खसी और गलगण्डादि रोगों को नाश करता है। कर्च रो दीपनो रुच्य: कटु कस्तित एव च। सुगंधिः कटुपाक: स्यात्कुष्ठाशों व्रणकासनुत् ॥ उष्णो लघुईच्छ्वासं गुल्मवात कफ कृमीन् । गलगंडं गंडमालामपची मुखजाड्यहत् ॥
(भा, पू०१ भ०) कचूर-अग्निदीपक, रुचिकारी, चरपरा, कडुश्रा सुगधित, लवु, कटुयाको और गरम है तथा यह कोढ़, बवासोर, व्रण, खसो, श्वास, गुल्म, वात, कफ, कृमि, गलगंड, गंडमाला, अपची और मुख को जड़ता इन रोगों को नष्ट करता है। शठी तिक्ता च कटुका चोष्ण तीक्ष्णाग्नि दीपनी । सुगन्धि रुचिरा लध्वी मुखस्वच्छफरी मता ॥ कोपनी रक्तपित्तस्य गलगण्डादि रोगहा। कुष्ठाझेब्रकासनी श्वासगुल्म कफापहा ॥ त्रिदोष कृिमिवातानां ज्वर मोहादि नाशकृत्।
(नि० र०)
कचूर-कड़वा, चरपरा, गरम, तीरण, अग्नि. प्रदीपक, सुगधि. रुचिकारक, हलका, मुख को स्वच्छ करनेवाला, रतरित्त को कुपित करनेवाला तथा गलगंड,मंडलादि कोढ़,बवासीर व्रण,कास श्वास, गोला, कफ, त्रिदोष, कृमि, वातज्वर और प्लीहा इत्यादि रोगों का नाश करनेवाला है। कचूरो भरुदामना दीपना रक्तपित्त कृत् । अजीर्ण जरण श्वा सेष्वपस्मारोप पूजितः ॥
कचूर-वात तथा प्रामनाशक,दीपन, रक्तपित्तकारक और अजीर्ण रोग को दूर करनेवाला है। मृगी रोग में और श्वास रोग में भी इसका प्रयोग करते हैं। ___ इनके अतिरिक द्रव्यनिघण्टु में इसे त्रिदोष नाशक, मुखरोगनाशक और ज्वरनाशक लिखा है। मदनपालनिघंटु में इसे कुठरोगान, व्रण. नाशक, वात एवं गुल्मनाराक और गणनिघण्टु में कफनाशक और कृमिनाशक लिखा है। यूनानी मतानुसार
प्रकृति-द्वितीय कक्षा (वा कज्ञांत) में उष्ण तथा रूज। हानिकर्ता-मस्तिष्क, हृदय और फुफ्फुस को तथा शिरःशूल उत्पन्न करता है। दपध्न-धनियां । मतांतर से बननसा, सफेद. चंदन और जटामांसी। प्रतिनिधि-अंजीर और आदी । मतांतर से शतावर, दरूनज अकरबी और तुरंज के बीज । मात्रा-३-३॥ मा० से ४॥ मा० तक । मतांतर से ७ माशा (मु० ना०)। इसमें शक्ति तीन बर्ष तक स्थिर रहती है। प्रधानधर्म-वाजीकरण, शोथ-बिलीनकर्ता, उल्लासजनक, हृद्य और मेध्य (मुनो दिमारा ) है ।
गुण, कर्म, प्रयोग-यह उल्लासप्रद (मुकरिह), हृद्य, मस्तिष्क एवं श्रामा राय को बलवानकर्ता, अवरोधोद्घाटक, बाजाकारक, स्थौल्य. जनक वा वृहण, छर्दिन, अतिसारनाशक, मूत्रल, श्रात्तं वप्रवत्तंक, सौदा का रेचक, शिशु जात प्रवाहिका को लाभप्रद तथा खकान (हृत्स्फुरण) जरायुगत वायु एवं दंतशूल, को लाभकारी और शिश्नोत्थापनकर्ता (मुनइज) है। मु. ना । ___ वैद्य कहते हैं कि यह हलका है और मूत्रविकार को दूर करता है तथा हाथ को हथेली