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ककड़ी
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पक्क ककड़ी और फूट पित्तनाशक और ठंढे होते हैं और पकने पर वे पित्तबद्ध के और गरम हो जाते हैं ।
तिक्त कर्कटी
तिक्तकर्कटिकाप्रोक्ता र पाके कटुः स्मृता । तिक्ता मूत्रकरी वान्तिकारिका मूत्रकृच्छहा । मानवातं चाष्ठीलां नाशयेदिति कीर्तिता ॥ कड़वी ककड़ी — रस और पाक में चरपरी, कढई, मूत्रकारक, वमनकारक, मूत्रकृच्छ को दूर करनेवाली, तथा आध्मान और अष्ठीला को दूर करनेवाली है ।
चीना कर्कटी
चीना कर्कटिका शीता मधुरा रुचिदा गुरुः । कफवात तृप्तकरी हृद्या पित्तरुजापहा ॥ दाहशोषहरा प्रोक्ता मुनिभिश्चर कादिभिः ।
चीनाककड़ी - शीतल, मधुर, रुचिदायक, भारी, कफकारक, वातकारक, तृप्तिजनक, हृदय को हितकारी, पित्तरोगनाशक तथा दाह और शोथ को हरनेवाली है ।
सर्वा कर्कटी सर्वाकर्कटिका गुर्वी दुर्जरा वातरक्तदा । अग्निमान्द्यकरीप्रोक्ता ऋषिभिः शास्त्रकोविदैः ॥ बर्षाशरदि चोत्पन्ना नो हिता न च भक्षयेत् । हेमन्ता रुचिकरा पित्तहा भक्षिताहिता ! | सैवार्द्धपका संप्रोक्ता पीनसोत्पादनी मता । सम्यकूपक्का च मधुरा कफनाशकरीमता ॥ (नि० र० ) सर्वाः कर्कटिका वर्षा शरदि जाता न हिताः । परंतु हेमन्तजा रुचिकरी पित्तघ्नी चभोज्या || सा चार्द्धपका न भच्या तेन पीनसं जनयति । सम्यक् पक्का मथुरा कफघ्नी च ॥
( भा० म० भ० श्रश्म० चि०) सर्व प्रकार की ककड़ी भारी और दुर्जर (कुठि - नता से पचनेवाली ) है एवं वातरक्त और मन्दाग्नि उत्पन्न करती है । वर्षा और शरद् ऋतु में उत्पन्न होनेवाली ककड़ी हितकारक नहीं है और न भक्षण करनी चाहिये | हेमन्त ऋतु में होनेवाली ककड़ी रुचिकारक, पित्तनाशक, भक्षणीय और
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ककड़
हितकारी है । अधपकी ककड़ी पीनस उत्पन्न . करनेवाली है । सम्यक् परिपक्क ककड़ी मधुर और कफनाशक है ।
उर्वारु, एर्वारु ( फूट ककड़ी)
उर्वारुकं पित्तहरं सुशीतलं मूत्रामयनं मधुरं रुचिप्रदम् । संतापमूर्च्छापहरं सुतृप्तिदं वात प्रकोपाय घनन्तु सेवितम् ॥
( ध० नि० १ व ० रा० नि० ७ ० ) ककड़ी - पित्तनाशक, सुशीतल, मधुर, ति तृप्तिदायक एवं रुचिकारी तथा संताप, मूत्रके रोग और मूर्च्छा का नाश करती और श्रत्यन्त सेवन करने से वायु को कुपित करती है । कर्कटी शीतला रूक्षा ग्राहिणी मधुरा गुरुः । रुच्या पित्तहरा सामापक्वा तृष्णाग्नि पित्तकृत् ॥
( भा० पू० १ भ० शां० व० ) ककड़ी - ठंडी, रूखी, ग्राही, मीठी, भारी, रुचि उत्पन्न करनेवाली, पित्त को शांत करनेवाली और श्रमकारक होती है । पकी ककड़ी प्यास, न और पित्त को करनेवाली है । कोमलैर्व्वारुकं तिक्कं लघुः स्वाद्वतिमूत्रलम् । शीतं रूक्षं रक्तपित्तं मूत्रकृच्छ स्र दोषजित् ॥ तत्पक्वं पित्तलं चाग्निदीपन तृषापहं । उष्णं त्रिदोषशमनं क्लमदाहहरं मतम् ॥ गृहे जीर्णन्तु तज्ज्ञेयमुष्णं पित्तकर मतम् । कफ वायोर्नाशकरं प्रोक्तमायुव्विदैर्जनैः ॥ क्षुद्रमैर्वारुकं शीतं मधुरं रुचिकारकम् । कासपीनसकारि स्यात् पाचकं श्रमपित्तहम् ॥ आध्मान वायोः शमनं । (वै० निघ० )
कोमल ककड़ी - हलकी, कबुई, स्वादु, अत्यन्त मूत्रकारक शीतल एवं रूखी है तथा रक्तपित्त मूत्रकृच्छ और रुधिर के विकारों को दूर करती है।
पकी ककड़ी - पित्तकारक, अग्निप्रदीपक, प्यास को दूर करनेवाली, गरम, त्रिदोषनाशक,
महारक तथा दाहनिवारक है । घरमें रखने से पकी हुई ककड़ी - गरम, पित्तकारक तथा कफ और वात को नष्ट करती है ।