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एक्सरे
हैं । यद्यपि इन किरणों को हम अपनी आँखों से नहीं देख सकते, तथापि इनके गुणधर्म जाने जा सकते हैं। एक्स - रश्मियों का एक विशेष धर्म यह है, कि जब यह रश्मियाँ कुछ विशिष्ट पदार्थों पर पड़ती हैं, तब वे प्रकाशमान् होने लगते हैं। उन पदार्थों में से एक सोडियम् का काँच ( ऐसा काँच जिसके संघटन में सोडियम् का समावेश किया गया हो ) है । इस काँच से प्रायः एक्स-रश्मियों को लकियाँ प्रस्तुत की जाती हैं। जब इन नलकियों के भीतर किरण का श्राविर्भाव होता है, तब वे उक्त लकी के पार्श्व पर भीतर की ओर पड़ती हैं । इस तरह काँच प्रकाशमान हो जाता है और ऐसा ज्ञात होता है, कि एक्स - रश्मियाँ नलकी से निकल रही हैं।
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इन रश्मियों का ज्ञान प्राप्त किये अभी कुछ अधिक काल तो नहीं हुआ । कहा जाता है कि सन् १८६५ ई० में जर्मनी के एक प्रमुख वैज्ञानिक रांटजन ( Rontgen ) को अकस्मात् इसका ज्ञान हुआ । वे एक दिन अंधेरे कमरे में कतिपय ऐसी नलकियों से परीक्षण कर रहे थे, जिनमें वायु चाप कम होता है । उन्होंने देखा कि प्रयोग- काल में कतिपय प्लेटें प्रगट ( Expose ) हो गई हैं। चूँकि कमरा तमसाच्छन्न था । अस्तु, वह आश्चर्यचकित थे कि उन प्लेटों पर प्रकाश कहाँ से पड़ा, जिससे वे प्रकाशित हो गई हैं। अंततः अन्वेषण करने के उपरांत उन्हें इस बात का पता लगा कि बे किरणें नलकियों से निकल रही हैं । चूंकि ये रश्मियाँ पहले अज्ञात थीं । अस्तु, उन्होंने इनको एक्स-रेज़-एक्स- रश्मि वा ( लाशुअ) नाम से अभिहित किया । कभी-कभी इन्हें इनके अनुसंधानकर्ता के नाम पर रांटजनीय किरण भी कहते हैं ।
किसी द्रव्य में एक्स - रश्मियों के व्याप्त होने की क्षमता उसके विशिष्ट गुरुत्व के अनुकूल होती है । जितना कोई द्रव्य अधिक घन होता है, उतनी ही एक्स - रश्मियाँ उसमें न्यून प्रवेश कर सकती हैं । अस्तु, ये काष्ठ में ६ इञ्च तक प्रवेश कर जाती हैं । किंतु लौह में 11⁄2 इंच की मोटाई मात्र में से ही गुज़र सकती हैं।
एक्सरे
एक्स-रेज़ के इस विशेष गुण के कारण हम मानव शरीर की आभ्यंतरिक स्थिति का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं । अस्थि का विशिष्ट गुरुत्व मांस htra धक है । इसलिये एक्स - रश्मियाँ मांसादि में से भेदन कर जाती हैं और शरीर के भीतर की अस्थियाँ स्पष्टतया नज़र आने लगती हैं।
वर्तमान युग में चिकित्सा एवं शस्त्रकर्म में इन एक्स-रश्मियों से बहुत सहायता ली जाती है । इनसे यह निःसंदेह ज्ञात हो जाता है कि शरीर के तर अस्थि भंग हुई है वा नहीं और यदि भंग हुई है, तो किस जगह । इस प्रकार यदि किसी व्यक्ति को गोली लगी हो, तो एक्स-रश्मियों से यह जाना जा सकता है कि गोली किस स्थान में स्थित है | यदि कोई शिशु सिक्का, सूई वा पिन प्रभृति निगल गया हो, तो उनको देखा जा सकता है । श्रान्त्रिक शोथ और श्रामाशयगत नासूर को भी मालूम किया जा सकता है । इनसे यह भी देखा जा सकता है कि फुप्फुस रोगाक्रान्त हैं वा नोरोग | इसके सिवा वृक्क, गवीनोद्वय, वस्ति
पित्ताशय इनको पथरियों एवं महाधमन्यबुद और श्रामाशय - श्रान्त्रावरोध के निदान में एक्सकिरणों से सहायता ली जाती | वर्तमान समय में कतिपय डाक्टरों ने एक्स- रश्मियों के साहाय्य से गर्भगत शिशु को विभिन्न अवस्थाओं का भी निरीक्षण किया है।
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कि चिकित्सक
यह भी स्मरण रखना चाहिये वा शस्त्रकर्म करनेवाला वैद्य प्रायः एक्स-रश्मियों की सहायता से शरीर के भीतर का परीक्षण नहीं करता; वरन् उनके द्वारा फोटो के चित्र ले लेता है । इसका एक कारण तो यह है कि प्रकाश-पट के द्वारा देर तक परीक्षण करना रोगी के लिये भयावह हो सकता है । दूसरे परीक्षण की दशा में मापविषयक कल्पना ठीक नहीं उतर सकतो ।
जर्राह वा शस्त्र-चिकित्सक मानवी देह के जिस भाग का चित्र लेना चाहता उसको वह सेंसिटिव प्लेट पर स्थापित कर देता है । उसके ऊपर फुट की दूरी पर एक्स - रश्मियों की नलकी होती है जिसको तुब्ध करके प्लेट को एक्सपोज़ किया जाता है, जिससे अस्थियों की बनावट और स्थानानुकूल