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औष्णीक १८६७
औसी औष्णीक-वि० [सं० त्रि०] उष्णीवधारी । पगड़ी होता है कि औसज और उल्लैक प्रायः सजातीय बाँधनेवाला।
पौधे हैं। दोनों के गुणधर्म में भी समानता है, औष्ण्य -संज्ञा पु० [सं० वी० ] उष्ण ता। गरमी । जैसा गाज़रूनी के मुफरिदात कानून की व्याख्या धूप । संताप ।
से प्रतीत होता है । कन्जललुगात तुर्की में इसको औष्म्य-संज्ञा पुं० [सं० जी० ] उष्णता । ऊष्मा ।
अम्बरबारीस समझना भूल है।
प्रकृति-प्रथम कक्षा में शीतल और द्वितीय गरमी। औसक्कामुस-[ यू० ] दे० "श्रोसक्वामुस” ।
कता के अन्त में रून; कोई-कोई कहते हैं कि यह
तृतीय कता में रूत है। पर यथार्थ यह है कि औसज-[अ० ] ऊसज।
जंगली तृतीय कक्षा में रूक्ष होगा। गीलानी के औसज-[अ० श्रीसज ] एक काँटेदार वृक्ष जो ऊँचाई
कथन से भी यही प्रतिपन्न होता है। जहाँ पर एवं प्राकार-प्रकार में अनार के पेड़ से मिलता
उन्होंने इसके जङ्गली और बागी भेदों का निरूपण जुलता होता है । इसको शाखाएँ खड़ी होती हैं।
किया है, वहाँ जंगली को अत्यन्त शोषणकर्ता और वे काँटों से व्याप्त होती हैं। काँटे तीक्ष्णाग्र
लिखा है । हानिकर्ता-पीहा को । अधिक भक्षण होते हैं । तना पतला होता है। पत्ती हरे रंगकी
करने से कुलञ्ज पैदा करता है । दर्पघ्न कतीरा । बादाम की पत्ती की तरह होती है; किंतु बादाम
प्रतिनिधि-सुपारी, छड़ीला और अक़ाकिया। की पत्तियों से बहुत छोटी होती है और उनमें |
मात्रा-४॥ माशे। चिपकती हुई रतूबत होती है। फल चने के
गुण-कर्म-प्रयोग-इसकी पत्तियों का रस बराबर और दीर्घाकार लाल रंग का होता है और
निचोड़कर ७-८ दिन आँख में डालने से जाला वृक्ष पर बहुत दिनों तक लगा रहता है, गिरता
कट जाता है । यही नहीं, इसका सर्वाङ्ग नेत्ररोग नहीं। इसके वृक्ष क्षारीय एवं ऊषर भूमि में
में लाभकारी है ।मुखपाक में भी यह उपयोगी है। उत्पन्न होते हैं। इसकी एक जाति के पत्ते ललाई
पित्तजनित कण्डू और दद्, प्रभृति सौदावी रोगों लिये काले रङ्ग के होते हैं और प्रथम प्रकार के में चोबचीनी की अपेक्षा यह अधिक उपयोगी पत्तों से चौड़े होते हैं। इन काले पत्तोंवाले पेड़ ख्याल किया गया है। में काँटे बहुत होते हैं और शाखाएँ भी इसकी शरीफ़ और गीलानी के अनुसार यह कुष्ठ में बड़ी-बडी-चार-चार गज लम्बी होती है। भी उपयोगी है। अंताकी ने इसके काढ़े को तर इसका फल चौड़ा और बारीक होता है। ऐसा
एवं रुक्ष तथा खुजली और फोड़े फुन्सियों के लिए प्रतीत होता है, मानो कोषावृत्त है। इसकी एक गुणकारी लिखा है और इसे चोबचीनी से जाति और है जिसके पत्ते सफ़ेदी लिये होते हैं। उत्तम माना है। इसकी जड़ को श्रास के पत्तों के शेखा के अनुसार इसके फल तूत की तरह होते हैं, साथ पीस कर फोड़ों और दुष्ट क्षतों पर लगाने से जिसे लोग खाते हैं। शीत-प्रधान देशों में इसके
बद-गोश्त उड़ जाता है। क्षत पूरण होता है। वृक्ष बहुतायत से उत्पन्न होते हैं। श्रीसल जंगली इसकी पत्तियाँ रक तरण में लाभकारी हैं। ये केश
और बाग़ी दोनों प्रकार का होता है। जंगली उगाती हैं । इसका फल स्तंभक है और दस्त का पेड़ बहुत बड़ा होता है। इनमें हरे पत्तोंवाला
बन्द करता है, इसके सभी गुण-प्रयोग पत्तों के सर्वोत्कृष्ट है। इसकी हरी और कोमल पत्तियाँ सदृश ही हैं । इनको धूनी से कीड़े मकोड़े भाग
औषधार्थ व्यवहार में आती हैं। सफेद खार जाते हैं। इसकी टहनी गृह की छत वा द्वार पर वाशक बर्जी (फा०)
लटकाने से जादू का प्रभाव नष्ट होता है टिप्पणी-बुर्हान के अनुसार यह उल्लैक की समीप रखने से उसकी प्रतिष्ठा होती है, यह भाँति एक वृक्ष है, जिसके पत्ते पकाते और ख़िज़ाब !
इसको विशेषता है। के काम में लाते हैं। किसी-किसी के मत से उल्लैक औसल-[१०] औसज । इसका एक भेद है । इन कथनों से यह प्रतिपन्न औसी-संज्ञा स्त्री० दे० "ौली"।