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औपसर्गिक लिंग नाशक
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औरसावर्तीय लक्षक
वि० [सं० वि०] (१) उपसर्ग संबन्धी। (२) स्त्री । (३) पत्नी । जोरू। (२) साथ लगा हुआ।
औरभ्र-संज्ञा पुं॰ [सं० पु. ] सुभत के प्रथम औपसगिक-लिंग-नाशक-संज्ञा पुं० [सं०] एक । के एक प्राचार्य का नाम । सुपुत और चक्रदत्त .. प्रकार का नेत्र सम्बन्धी रोग ।
ने अपने निर्मित संहिता में इनके वचन उद्धृत - लक्षण-जब अल्प सत्ववाला रोगी सहसा किये हैं । औरभ्रतन्त्र इन्हीं का लिखा है। किसी अद्भत रूप को देखता है, सूर्यादि देदीप्य- | औरभ्र(क)-संज्ञा पुं० [सं० पु.](१) भेड़ा। व मान पदार्था को देखता है, तब चकाचौंधी के
पो०-ऊर्णायु । श्राविक । रल्लक । हे। कारण उस मनुष्य के नेत्रों में वातादि दोष श्राश्रय
मेष । हे. च। लेकर तेज . को संशोषित करके दृष्टि को
संज्ञा पुं० [स० की०] (१) मेष-मांस । मुषित दर्शनबालो, वैदूर्यक रंग के समान,
भेड़ का गोश्त । म्याडार मांस-(बं.)। मेड़ी कर स्तिमित और प्रकृतिस्थ की तरह वेदना रहित कर
मांस-मरा० गुण-मीठा, शीतल, भारी,काबिज देते हैं । इसोको “ोपसकिलिंगनाराक" कहते
और वृंहण । (२) मेष समूह । भेड़ों का मुरड । हैं। वा. उ. १३ अ० ।
(३)कम्बल । ऊर्णवस्त्र । ऊनी कपड़ा । ( ४ ) मेषी औपस्थ-सक्षक-संज्ञा पु० [सं० को० ] नाड़ी-जाल हीर । भेड़ का दूध । रा०नि०व० १७ ।
अर्थात् प्रज्ञक विशेष । एक नाड़ी चक्र । ( Pud. वि० [सं० त्रि.] मेष सम्बन्धी । ___endal Plexus.) अ. शा।
औरभ्र-दधि-सज्ञा पु० [सं०] भेड़ी का दही । दे. औपस्थी-वि० [सं० त्रि० ] उपस्थ-सम्बन्धी नाड़ी।
__ "भेड़"। उपस्थ को नाड़ी । Pudendal N.
औरभ्रपय-संज्ञा पु० [सं. पु.] भेड़ो का दूध । औपस्थ्य-संज्ञा पु० [सं० क्ली० ] उपस्येन्द्रिय मुख ।।
- मेषी क्षीर । दे० “भेड़"। औपोन-संज्ञा पु० [सं० ली० ] बोने योग्य खेत ।
औरसठिया-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] औरः काक__ उप्यक्षेत्र । रा०नि० व०२।
लकी । अ० शा० . औफ-[अ०] पुरुष जननेन्द्रिय । शिश्न । लिंग ।
औग्सतिरश्चीना- संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] पेशी . ज़कर । पेनिस-अं०।
औरसत्रियोणाऔका-[देश॰ सिनेगल] गोरख इमली । गोरख चिञ्च । | विशेष। ट्रांसवर्सस थोरे कस (Transversus. औबाऽ-[अ० ] वबाऽ का बहुः ।
Thoracid) अ० शा० । औमीन-संज्ञा पु० [सं० क्री० ] (१) तीसो का | औरस-पार्श क-संज्ञा पु० [सं० पु.] बंधनी विशेष । खेत । अतसोक्षेत्र । (२) अतसो पूर्ण गृह । ।
(StarnocostalL.)। अ० शा० । औरंग-वि० [सं० वि० ] स सम्बन्धी । साँपका ।।.
औरस-पृष्ठि-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] औरत-संज्ञा स्त्री० [अ० औरत ] (१) पुरुष वा |
(Dorsa! or Thoracic Vertebra )! स्त्री को गुह्य इन्द्रिय । वह अवयव जिसके देखनेदिखाने में स्वाभाविक लज्जा प्रतीत हो । स्त्री-पुरुषों
अ० शा०।
| औरसप्रणाली-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] प्रणाली में शरीर का वह भाग जो लज्जा के कारण धर्म
विशेष । ( Thoracic-Duct ) अ० शा० । विधानानुसार गुप्त रखा जाता है। पुरुषों में यह | स्थान नाभि से जाँघ तक है । पर त्रियों में मुख- औरसावर्ता-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री०] महा धमनी का मण्डल और दोनों हाथों के सिवा संपूर्ण शरीर वक्षस्थित भाग। ( Thoracic portion गोपनीय है।
____of aorta) अ० शा। नोट-स्त्री को औरत इसलिये कहते हैं, कि | औरसावर्तीयसक्षक-संज्ञा पुं० [सं० की. ] नाड़ी चेहरे और हाथों को छोड़कर उसका समग्र शरीर __जाल वा पक्षक विशेष । ( Plexus Aortगोप्य है।
icus thoracic ) ० शा० ।