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ओषधि गर्म १८४५
ओष्ट प्रकोप अजगरी नित्य दिखाई देती है । गोनसो वर्षाऋतु कणराक के मेल से बना हुश्रा एक पदार्थ, जो में उत्पन्न होती है। काश्मीर देशीय क्षुद्रकमानस रन में रहता है । (oxybaemoglobin) नामक दिव्य सरोवर में करेणु, कन्या, छत्रा अोषिष्ट-वि० [सं० वि०] अतिशय दाहकारक । अतिच्छत्रा, गोलोमी, अजलोमी, महती और अतिप्रदाहक । वहुत जलन पैदा करनेवाला । श्रावणो होती हैं। वसंत में कृष्णसर्पाख्या और प्रोष्ट-संज्ञा पु. [ देश०] भव्य । । गोनसो दिखलाई देती हैं । कौशिकी नदी के पूर्वतः | ओष्टश्वित्रनाशनलेप-संज्ञा पु. [ सं० पु. ] बल्मीक व्याप्त योजनत्रय भूमि में श्वेत कापोती उन नाम का एक योग। और वस्मोक के शिखरदेश, मलयपर्वत तथा नल निर्माण क्रम-गंधक, चित्रक,कसोस, हरताल, सेतु में वेगवतो मिलती है। सु० चि० ३० अः। त्रिफला-इन्हें समान भाग लेकर जल में पीसकर ओषधि गर्भ-संज्ञा पुं० [सं० पु.] (१) चंद्रमा। लेप करने से मुख का श्वेत कुष्ट एक ही दिन में (२) सूर्य ।
नष्ट होता है। रसेचि म० अ० । ओषविज-वि० [सं. वि.] (१) ओषधिगण के श्रोष्ट्राविन-वि - [सं० त्रि० ] दाहकारी । जलन पैदा मध्य निवास करनेवाला । जो जड़ो बूटियों में | करनेवाला । प्रदाहक । रहता हो । (२) अोषधि से उत्पन्न । जो जड़ी ओष्ठ-संज्ञा पु [सं० पु.] [वि० प्रोड्य ] मुंह बूटियों से निकला हो।
__ के बाहरी उभड़े हुये छोर जिनसे दाँत ढके रहते संज्ञा पु० [सं० पु.] ओषधि से उत्पन्न हैं। ओंठ । ओठ । होंठ । रा० नि० व० १८ । अग्नि ।
संस्कृत पर्याय-दन्तच्छ । रदपट ।रदनच्छद । ओषधिपति-संज्ञा पु• [सं० पुं०] दे॰ “श्रोषधीपति"।
दरानवास (अ.), दन्तवास। दन्तवस्त्र । ओषधि-प्रस्थ-संज्ञा पु. [सं. पु.] हिमालय । रदच्छद (रा०नि०)। शात (बहु शिनात, द्वि० अधिकांश पोषधियों के उत्पन्न होने से ही इसका
शक्तैन ) अ.) लब-का• । लिप Lip-अं० । उक्त माम पड़ा है।
लेबियम् Labium-ले। ओषधी-संज्ञा स्त्री [सं० स्त्री०] (१) ओषधि ।
नोट-यद्यपि अोठ शब्द से दोनों होठों का अर्थ जड़ी-बूटी | भरतः । (२) छोटा पेड़ ।लवु वृक्ष ।
लिया जाता है, तथापि यह शब्द विशेषतया ऊपर वै० निघः । दे. "श्रोषधि" ।
के होंठ के लिये प्रयोग में आता है। ओषधी-पति-संज्ञा पु० [सं० पु.] (१) कपूर। ओष्ठक-वि० [सं० त्रि० ] पोष्ठ में व्याप्त । हे. च।। (२) चंद्रमा ।
अष्ठ-कोप-संज्ञा पु. [संपु.] दे॰ “श्रोष्ठरोग"। नोट-पोषधि वाचक शब्दों में "स्वामी"
ओष्ठज-वि [सं० वि०] ओष्ठ से उत्पन्न । होंठ से
निकलनेवाला । वाची शब्द लगाने से चंद्रमा वा कपूर वाची शब्द बनते हैं।
ओष्ठजाह-संज्ञा पु० [सं० की ] पोष्ठमूल | होंठ ओषधीमान्-वि० [सं० त्रि] पोषधि संबन्धी।।
की जड़। ओषधीश-संज्ञा पु । सं० पु.] (१) कर ।
| ओष्ठधर-संज्ञा पु० [सं० पु.] श्रोष्ठ । होंठ । लिप श्रम । (२) चंद्रमा।
(Lip) ओषधीसूक-संज्ञा पु. [सं० की ] सूक्रविशेष । वेद ओष्ठ-पल्लव-संज्ञा पु. [सं० की.] श्रोष्ठ । होठ । का एक मन्त्र।
ओष्ठ-पुट-संज्ञा पुं॰ [सं० की ] श्रोष्ठोद्घाटन जात ओषधीसंशित-वि० [सं० वि.] श्रोषधी द्वारा विवर । वह गड्डा जो होंठ खोलने से पड़ा हो ।
प्रायत्त । जड़ी-बूटियों से तहरीक किया हुआ। ओष्ठपुष्प-संज्ञा पुं॰ [सं० पु०, क्ली० ] वन्धुजीव । ओषम् [सं० अब्य० ] शीघ्र-शीघ्र । जल्द-जल्द । गुलदुपहरिया। बारम्बार ।
| ओष्ठ-प्रकोप-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] दे० "श्रोष्ठ अोषित-कणरञ्जक संज्ञा पुं॰ [सं०] प्रोषजन और कोप" या "अोठ रोग"। .