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अगर
अगर-अगर
कारण मस्तिष्क के लिए अत्यन्त लाभदायक है, (२) अपनी सूदनः एवम् ऊम्मा से रोधे।. दवाटक है, (३) इसका च पाना मुख के सुगंधि प्रदान करता है। और वायु लयकारक है । त० नो० (५) हृदय को प्रसन्न करता है । (६) वात तन्तुनी बलप्रद (७) पक्वाशय और प्रांत्र को बलाद, (5) गर्भाशय की शीतना, के लाभ कर्ता, (६) श्रोजप्रद और हृदय की व्याकुलता का नाशक है। अगर के सम्बन्ध में नभ्यमत-सुगंध हेतु चूर्ण रूप में तथा उत्तेजक पित्त निम्मारक एवम् रोधादघाटक प्रभाव के लिए इसका ग्राभ्यमरिक उपयोग होता है। अनेक नाड़ी बलदायक वायुनिःसारक तथा उत्तेतक ग्रोवधियों का यह एक अवयव है। निकरस (Gout) नया संधिवात में एवं वमन निग्रह हेतु भी इसका उपयोग होता है। अस्त्र चिकित्सा सम्बन्धी प्रण एवं क्षतों की वेदना शमनार्थ इसको अंगम प्रशमन धूनी रूप से उपयोग में लाते हैं। बालकों की बांसी में अगर तथा ईश्वरी ( Indian birth wort) के कल्क को बागडी के साथ वनस्थल पर लगाते हैं। शिरःशूल में इसे शिर में लगाते हैं। धूप अनियों के बनाने में भी यह प्रयुक्त होता है। इमे अगर की बत्ती कहते है। ___ जवारश ऊद में भी यह पड़ता है (अस्तु, देखो-जवारस ) इसकी मात्रा १० से ३. रत्ती तक है । गुण-शुक्र सम्बन्धी निर्बलना, शिर में ' चक्कर आना नया श्वेतप्रदर में यह नाड़ी को अल
दायक औषध है । ई० मे० मे०। अगर agar-फा० सुरीन, चूत ई-30 नितम्ब हि । ( Hip) अगर-अगर ugar-agar-लका (१) चीनी
वास-भा० बा०, बम्ब० । दरिया की घास, पाची-मोस-द० । समुहुपु-गाची, समुद्रपु-पाचि -०। अगर-अगर-सिं० । सीलोन मास (C.ylon moss ), एडिब्ल मॉस : (Edible moss ), सी वीडम (Son-
weads)-10। ग्रेसिलेरिया लाडकेनॉइडीज (Gracilaria lichenoiles, Grer.) कडल पाश्चि-ता०1कियाव वाषङ्-थर ! ग्रेसिलेरिस कॉनफर्बाइडीज़ ( (incila.jiss confervoides, Gren.)-ले० ।
शैवाल जाति. (Algin or seit weed.) उत्पत्ति स्थान-लंका का स्थिर समुदी भाग तथा हिंद महासागर । वानस्पनिक वर्णन---अगर-अगर श्वेताभायुक्र या पीतामायुक श्वेत शास्त्री तन्तुमय जलीय पौधा है जो कई इञ्च लम्बा (अश्वेतकृत बैंगनी )होता है। आधार पर बृहत्तन्तु कुक्कुट पक्ष से अधिक मोटे नहीं होते; लखु नन्तु सीने के सूत्र के लग भग मोटे होने है।गी अम्खों से वे तन्तु करीब करीब बेलनाकार प्रतीत होते हैं। परन्तु सूक्ष्म दर्शकयंत्र से देखने पर वे लहरदार या झरी युक दीख पड़ते हैं। शाखाक्रम कभी कभी यम्म | Dichotoimous. ) होता है । और कभी अयुग्म । शुष्कावस्था में सूक्ष्म वृत्ताकार कोष ( Coccidia) अप्रत्यक्ष रहते हैं किन्तु श्रार्द्र होने पर स्पष्ट रूप से तत्क्षण श्रीख पड़ते हैं। वे करीव २ वाखस बीजाकार या प्रवृत्ताकार होते हैं और उनमें सूक्ष्म अायताकार (स्तम्भाकार ) गंभीर रनवीय दानों (Spore) का एक समूह होता है। अगर-ग्रगर (Caylon ymoss) कार्टिलेजीय पदार्थ है। स्वाद-निर्मल लवणयुक शैवालीय होता है। रसायनिक संगठन-वेजिटेबल जेली(वानस्पतीय सरेश)४० से ८० प्रतिशत, अरुन्युमेन नैलिन ( [odine), farfar (True starch), fafiga qaraf (Ligneous matter), लुभाव, लवण यथा सैंधगन्धेत् (Sodium Sulphate) सथा सैंध हरिद (Sodium chloride ), regia ( Calcium phosphate), चूनगन्धेन (Calcium sulphate ), मोम, लौह तथा शैलिका । इतिहास तथा उपयोग-अगर-अगर
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