SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नगर अगर यह निश्चय किया कि यह मगुई प्रार्चिपलेगोदी में उत्पन्न होने वाले एक वृक्ष की लकड़ी है। गैम्बल (Gamble) के कथनानुसार इसका बी नाम "क्यायु"है और यह टेनासरम तथा मई ग्राचिपलेगो में उत्पन्न होता है। मार मुहम्मद हुसेन-[ १७७० ] लिखते हैं- "ऊद जिमे हिन्दी में अगर कहते हैं,यह एक लकड़ी। है जो कि सिलहट के निकट अन्तिया की पहाड़ियों में उत्पन्न होती है। ये वृह बंगाल से दक्षिणस्थ टापुओं में भी जो कि विषुवत रेखा के उत्तर में स्थित हैं, पाए जाते हैं । इसके वृक्ष बहुत अचे होते हैं। और प्रकाएइएवं शाखार वक्र होती है और काम होता है। इसकी लकड़ी से घड़ी, । प्याले तथा अन्य वर्तन बनाने थे । यह सड़ता ग. लता भी है और इस दशामें विकृत भाग सुगंधयुक्त द्रव्य से च्यात है। जाना है। अतः उक परिवर्तन लाने के लिए इसे नर पृथ्वी गर्न में गाद देने , हैं। अगर के जिस भाग में एक परिवर्तन श्रा जाता है वह नेलयुक भारी एवं काला हो जाता है। पुन: इसे काटकर पृथक कर जल में डाल देते हैं। इनमें जो जल में डूब जाता है उसे ग़की ( बने । वाला), जो अांशिक जल मग्न होता है उसे नीम । ग़ी (अाधा डूबने बाला) या समालहे पाला और जो तैरता रहता है उसे समालह कहते हैं। इनमें से अन्तिम सर्व सामान्य होता है। ग़की काला होता है तथा अन्य काले और हल्के घूमर वर्ण के होते हैं। अगर ( alon wool ) धूप देने के लिए अथवा सुगन्ध हेतु समस्त पूर्वीय देशों में व्यवहृत है और पूर्वकालमें यह युरूप में उन्हीं व्याधियों के लिए व्यवहार में श्राता था जिनके लिए श्राज भी यह भारतवर्ष में प्रयुक होता है । एक पेड़ जिसकी लकड़ी सुगन्धित होती है, इसकी ऊचाई ६० से १०० फुट और धेरा से - फुट तक होता है। जब यह बीस वर्ष का होता है तब इसकी लकड़ी अगर के लिए काटी जाती है। पर कोई कोई कहते हैं कि ५० या ६० वर्ष के पहिले इसकी लकड़ी नहीं पकती । पहिले तो इसकी लकड़ी बहुत साधारण पीले रंग की ओर गंध रहित होती है पर कुछ दिनों में धड और शाखाओं में जगह जगह एक प्रकार का रस या जाता है जिसके कारण उन स्थानों की लकड़ियों भारी हो जाती हैं। इन स्थानों से लक इयाँ काट ली जाती हैं और अगर के नाम से बिकती है। यह रस जितना अधिक होता है उतनी ही लकड़ी उत्तम और भारी होती है। पर ऊपर से देखने से यह नहीं जाना जा सकता कि किस पेड़ में अच्छी लकड़ी निकलेगी। बिना सारा पेड़ काटे इसका पता नहीं लग सकता । एक अच्छे पेड़ में ३००) तक का अगर निकल सकता है । पेड़ का हलका भाग, जिसमें यह रस वा गोंद कम होता है, 'धूप' कहलाता है और सस्ता अर्थात् १), २) रुपए सेर बिकता है। पर असली काली लकड़ी जो गेंद अधिक होने के कारण भारी होती है ग़रकी कहलाती है। और १६) या २०) सेर बिकती है | यह पानी में डूब जाती है। लकड़ी का बुरादा धूप, दशांग प्रादि में पढ़ता है। बम्बई में जलाने के लिए श्रौषध कार्य के लिए ऊदे ग़ौ, जो सिल हट से प्राप्त होता है, सर्वोत्तम होता है । इसे तिक सुगंध मय तैलीय तथा किञ्चित् कला होना चाहिए, इससे भिन्न निम्न कोटि के ख्याल किए जाते हैं।। चूकि ऊद की लकड़ी को कुचल कर जल में भिगोकर अथवा इसे बादाम के साथ मिलाकर पुनः कुचल दबाकर इसका तेल निकाल लेते हैं. इसलिए योगों में प्रायः ऊ दे खाम (कच्चा ऊद) ही लिखा जाता है । और क्योंकि "चूरा अगर" नाम पे अगर के टुकड़े भारतीय व्यापारिक द्रव्य है, अस्तु इसमें चन्दन, तगर अथवा एक सुग- ' धित कापड के टुकड़े मिला दिए जाने हैं। . रोगज़वर्ग तथा अन्य वनस्पति शास्त्रियों ने सिलहट में अक्विलेरिया (aquilaria) .. अर्थान् श्रगर को परीक्षा की और हाल ही में : For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy