________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
:
www.kobatirth.org
प्रति
६७२
किसी मास्तिष्कीय व्याधि के कारण हो तो कठिनतापूर्वक अच्छा हुआ करता है। यूनानां वैद्यकीय अर्थात् तिब्बी चिकित्सा रोगारम्भ में पक्षाघात के अन्तर्गत वर्णित तिमी चिकित्सा से काम ले अर्थात् जब तक चौथा या सातवाँ दिन न व्यतीत हो जाए तब तक माउल उसूल और माउल्स्ल ( मधुबारि ) के सिवा और कोई वस्तु खाने पीने को न दे और न उक्क काल में वाह्य वा श्रान्तर स बच उष्माजनक एवं दोषप्रकोपक उपाय का श्रव स्वस्वन करें। तदनन्तर पांचवें या आठवें दिन पक्षाघात मुजि कराके विश्वन | श्राहार मैं कपोत, तीतर, बटेर प्रभृति जीवों का शोरवा दे या चने का पानी पिलाएँ । मास्तिष्कीय श्राद्ध ताके रेचन हेतु कबाबचीनी अकरकरा, लवङ्ग जायफल और दालचीनी प्रभृति चबाएँ । कलौंजी पीसकर सिरका में मिलाकर नाक में टपकाएँ और राई को जैतून तेल वा तिल तैज में पोस कर मुखमण्डल के विकृत एवं रोगाक्रांत पापर प्रलेप करें। यदि आवश्यकता हो तो चन्द्र जीके कान के पीछे लगवाएँ और सेंक करें तथा कुष्ट तैल, रोमन सुख वा रोशन शांनीज का विकृत पार्श्व पर अभ्यंग करें अथवा हिंगु २ तो० पीसकर और रोगन पान में मिलाकर उक्र स्थल पर प्रलेप करें या निम्न तैल प्रस्तुत कर प्रयोग करें ।
रोगन लकवा - मोम १ तो० को एरण्डतैल ३. तो० में मिलाकर फक्र्यून, जुन्दये दस्तर, महतगी, सूरिभान तख प्रत्येक ३ मा० को बारीक पीसकर मिलादे और श्रावश्यकता होने पर इसका अभ्यंग ! करें | यदि ज़रूरत हो तो मर्ज़ओश, सातर फ़ारसी, अकरकरा, राई, करवीर मूत त्वक्, अनार दाना तुर्श और सोंठ इन सबको समभाग ले कूट कर जल में क्वाथ करें और सिकञ्जबीन
सूली ४ तो० मिलाकर गण्डूप कराएँ । छिका को बारीक पीस कर नस्य दें जिसमें दो चार छींके आजाएँ और ( १ ) जायफल २ मा० केशर १ मा० को बारीक पीसकर माजून योग
राज गूगल ५ मा० सम्मिलित कर झगाव
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अर्दित
ज़बान के साथ दें या ( २ ) खमीरह गावजुबान अम्बरी उसलीब वाला ५ मा० की मात्रा में क्र गाव जुबान के साथ हैं या ( ३ ) दवाउल्मिश्क हार जवाहरवाला १ मा० अ गावञ्जुबान अम्बर के साथ देना हितकर है। कलौंजी २ मा० पीस कर मधुमें मिलाकर खिलाएँ या वीरबहूटी एक-दो पाँव पृथक कर पान के बीड़े में रख्न थोड़े दिन खिलाएँ । पूर्ण शुद्धि के पश्चात् पक्षाघात योगों का सेवन कराएँ और पचाघात के समान शुद्धि के पश्चात् माजून फिलासफ्रा, माजून कुचला, माजून जोगराज गूगल या दवाउलू मिश्क हार प्रभृति यहाँ भी लाभदायक हैं ।
अति में प्रयुक्त होनेवाली श्रमिश्रित श्रौषधे
श्रायुर्वेदीय तथा युनानी- --वन पलाएड एवं सभी वातहर औषध एवं उपचार यथा तिल कल्क युक्त रसोन कल्क तथा स्नेह पान, नस्य, स्निग्ध पदार्थोंका भोजन लेपन और स्वेदन आदि इस रोग में हितकर हैं। देखा-पक्षाघात । डॉक्टरी - अर्जेण्टाई नाइट्रास, अर्निका, बेलाडोना, प्रॉलियम कंजेपुटी, के लेबान, फेरिपर ऑक्साइड, प्रॉलियम माइरिष्टिस ऑलियम पाइनाइ सिलेवेस्ट्रिस, फॉस्फोरस
( स्फुर ), नक्स वोमिका ( कुचिला), पोटाशियम् आयोडाइडम्, पोटाशियाई ब्रोमाइडम्, सिकेली कान्युटम्, सल्फर, सल्फ्युरिक एसिड, इलेक्ट्रि सिटि ( विद्युत ), स्ट्रिक्निया ( कुचिला का सव ) और उत्ताप इत्यादि । मिश्रित श्रौषध
आयुर्वेदीय -- वातव्याधि में प्रयुक्त औषध । यूनानी - हुब्ब फालिज व लक्चा, दवाए इजाराकी, रोगन लकवा व फ्रालिज, रोग़न हफ्त वर्ग, मन, जुनइजाराक्री, मश्रू जून इजाराक्री ( जदीद) माजून जोगराज गूगल, मश्चजून बना, इतुरी. फल जमानी, हुब्बलनवा, दवाएग़रह, दवाउस किप्रीत, रोग़न सुर्ख, लहसन पाक, हब्ब राहत, और हव्य स्वाह कसी रुल प्रवायव
For Private and Personal Use Only