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६०. ५६४
राजाना
धाविहीन मांसतन्तु । ( Unstriped ma scle fibre. )
अड़ जाना arara jana fro क्रि० श्र० (१) गर्भपात हो जाना, बच्चा फेंक देना । गर्भ का गिर जाना | लड़ाना |
नोट - इस शब्द का व्यवहार प्रायः पशुओं ही के लिए होता है, जैसे- गाय अड़गई । राति arati- सं० .० शत्रु, दुश्मन । अरातिम् arátim--सं० क्लो० जीवन को नाश करने वाले रोग । श्रथर्व० ।
अरादीस ãaradisa - ० अस्थि-संधि, हड्डियों के जोड़ | मुफ़ासिल उस्तख़ाँ अ० । बोन जॉइस्ट ( Bone joint ) - इं० 1
अराव āaraba-० सन, शण (Crotalaria : juncea.)
श्रराय सुनील aaráyasammila श्र० बिश्नीन, नीलोफर के समान एक बूटी है।
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अरार āarára--अ ( १ ) उकहु वान, बाबूनह गाव ( Parthenium ) | ( २ ) जरूर See-zaarúra.
अरारह, āaráraho वह स्त्री जो केवल लड़के प्रसव करे श्रर्थात् वह जिसके केवल लड़के उत्पन्न हो ।
श्ररारा arára-हिं० पु० ददोड़ा, दरदरा | अरारि, -
arari, -1i - हिं० स्त्री० करंजिया । ! संस्कृत पर्याय - उदकीर्यः, षड्ग्रंथा, हस्तिवारुणी, मर्कटी, वायसी, करंजी और करभंजिका । थोर करंज- मह० ।
विवरण - यह उदकीर्य नामक करंज का ही एक भेद है। इसके बड़े बड़े वृक्ष वन में होते हैं । पत्ते पाकर पत्र के समान गोल होते और ऊपर का भाग चमकदार होता है। फल भी नीले नीले झुमकदार लगते हैं; पत्तों में दुर्गन्ध आती है ।
गुणधर्म -- यह करंज वीर्यस्तम्भक, कड़वा, कसैला, पाक में चरपरा, उष्ण वीर्य और वमन, पित्त, बवासीर, कृमि, कोढ़ तथा प्रमेह को नष्ट करता है । भा० प्र० खं० ॥
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मेरा
अरारी arari - हिं०स्त्री० करज | (Pongamia glabra)
अरारुट arárúta-हिं० संज्ञा पुं०, बं०, बम्ब० [ श्रं० ऐरीरूट ] ( 1 ) आरारोट । मेरण्टा ( Maranta ) - ले० 1 मेरो रूट ( Arrow root), वेस्ट इण्डियन ऐरारूट ( West Indian arrowroot ) - इं० 1 विलायती तीखुर - हिं० । कुश्रमउ-ता०। कुवे हित्तं - कना० । कुवा- मल० ! पेन बवा बर० श्रारारूट-को० । श्रवा हरिद्रा वर्ग
(N. O. Scitaminew) नॉट ऑफिशल ( Not official.) उत्पत्ति-स्थान- यह एक भाँति का श्वेतसार जो मेter श्ररुण्डीनेसिया ( Maranta Arundinacia ) नामक वनस्पति की जड़ से प्राप्त होता है | यह वनस्पति पूर्वी भारतीय द्वीप, बर्मियोडा और बाज़ी में उत्पन्न होती है । अब पूर्वी बंगाल, संयुक्रप्रांत और मदरास में इसकी कृषि होती है।
वानस्पतिक वर्णन व इतिहास
एक पौधा जो अमेरिका से हिंदुस्तान में श्राया है। गरमी के दिनों में दो दो फुट की दूरी पर इसके कंद गाड़े जाते हैं । इसके लिए अच्छी दोमट और बलुई जमीन चाहिए । यह अगस्त से फूलने लगता है और जनवरी फरवरी में तैयार हो जाता है। जब इसके पचे मड़ने लगते हैं, तब यह पक्का समझा जाता है और इसकी जड़ खोदली जाती है । खोदने पर भी इसकी जड़ रह जाती हैं इससे जहाँ यह एक बार लगाया गया, वहाँ से इसका उच्छिन्न करना कठिन होजाता है ।
निर्माण क्रम --- इस वनस्पति की जड़को पानी में खूब धोकर और स्वच्छ करके जल में पीसते पुनः उसे मलकर छानते और एक ओर रख छोड़ते हैं । इस प्रकार अरारूट अर्ध तेषित हो जाता है।
लक्षण -- यह एक हलका श्वेत वर्ण का चूर्ण हैं। जिसमें किसी प्रकार की श्रमह्यं गंध वा स्वाद
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