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अरण्यकासनी
अरण्यकासनी
वर्षीय ) ६ से १२ या १६ इंच लम्बी, करीब करीब बेलनाकार, 1 से 1 इंच चौड़ी (न्यास), उर्ध्व भाग अनेक सूक्ष्म कुछ कुछ धने शिरको से पाच्छादित रहता है तथा निम्न भाग में कम शाखाएँ होती हैं। ताजी दशा में यह हलके पीतधूसर वर्णकी एवं गूदादार और शुष्क दशामें गंभीर धूसर या श्याम धूमर वर्ण की, जिन पर लम्बाई की रुत अधिक झुर्रियाँ पड़ी रहती हैं। भीतरसे यह श्वेत बर्ष की जिसका मध्य माग ज़रदीमायल (पीताभ) होता है। यह गंधरहित एवं कटु स्वादयुक्र होती है। यह स्रोतपूर्ण तथा प्राई ऋतु में अधिक लचीली होती है। परन्तु शुष्क होने पर सूक्ष्म चइचड़ाहट के साथ टट जाती है। टूटने पर बीच की लकड़ी पीतत्रण की, स्रोतपूर्ण जिसके चारों ओर गंभीरश्याम वर्ण की कैम्बियम रेखा तथा घनी श्वेत त्वचा होती है, जिसके मध्य धूसरित वण' की दुग्ध को नालियों के वृत्त होते हैं। ये पतली दीवाल की ( Parenchyma.) से भिन्न किए गए होते हैं।
शीत काल से पश्चात् एवं बसन्त ऋतु के . प्रारम्भ में इसकी जड़ मधुर स्वादयुक्त रहती है। बसन्त और ग्रीष्म के वीच दुग्ध-रस गादा हो जाता है तथा कटु रस बढ़ जाता है। इस कारण इसकी जड़ को पतमद (Autumn) के समय में एकत्रित करना चाहिए । बसन्त ऋतुकी • जड़ में तिक मधुरसरव निकलता है।
समानता-अकरकरा की जद ( Pelli-! tory root) इसके समान होती है। किन्तु | समाने पर उसका स्वाद चरपरा होता है।
रासायनिक संगठन-दुग्ध रस में एक कटु । विकृताकार (अस्फटिकीय ) सत्व-(१) टेरेक्सेसीन ( Taraxacin) अर्थात् अरण्यकासनीन वा तंत्रश्नीन, (२) एक स्फटिकवत् (कटु) सत्र टैरेक्सेसीरीन, ( Taraxacerin) और (३) ऐस्पैरंगीन (खिरमी सत्य, अस्फ्रागीन), पोटाशियम् | कैल्शियम के लवण, रालदार और सरेशदार पदार्थ होते हैं। इसकी जड़ में माइन्युलीन | २५ प्रतिशत, पेक्टीन, शर्करा, लीन्युलीन, भस्म ५
से० प्रतिशत पाए जाते हैं । प्रभाव-मूत्रल, वल्य, निर्बल रित्तनिस्सारक, और कोष्ठ मृदुकारी। औषध-
निर्माण--प्रॉफिशल योग (Offivial preparations :
(७) अरण्य कासनी सस्व - एक्सट्रक्टम टैरेक्सेसाई ( Extractum Tara xaci ) -ले० । एक्सट्रैक्ट ऑफ टैरेक्जे कम ( Extract of Tara xacum )-इं. खुलासहे कासनी बरीं, उसारहे तर्खरन न ।
निर्माण-क्रम-टैरेक्कम की ताजा जड़ को कुचलकर दबाने से जो रस प्राप्त हो, उसे स्थूल भाग के अन्तः क्षेपित हो जाने पर निथार ले। तदनन्तर १० मिनट तक १ से २१२० फारम. हाइट के उसाप पर रख कर छान कर द्रव को इतने ताप पर उड़ाएँ जिसमें वह गाढ़ा होजाए।
मात्रा-५ से १५ प्रेन (३ से १० डेकिग्राम)।
(२) अरण्यकासनी तरल-रुत्वएक्सट्रैक्टम् टैरेक्सेसाई लिक्विडम ( Extrac. tum Taraxaci Liquidum)-ले०। लिक्विड एक्सट्रैक्ट ऑफ़ टैरेको कम (Liquid
Extract of Taraxacum)-ई। ख लासहे कासनी बरी सय्याल, उसारहे तनश्कून सस्याल-०, फा०।
निर्माण-क्रम-टैरेक्जेकम् की शुष्क जड़ का २० नं. का चूर्ण २० ग्राउंस मयसार (६०%/0) २ पाइंट, परिचुत वारि आवश्यकतानुसार । टैरेक्ोकम् को ४८ घंटा पर्यन्त मचसार में भिगोएँ। पुनः इसमें से १० र घाउंस द्रव निचोड़ कर पृथक् करले । अवशिष्ट स्यूस भाग को २ पाइंट परित जल में ४८ घंटा तक भिगोएँ और दबाने से जो तरल प्राप्त हो उसे छान कर अग्नि पर यहाँ तक रखें, कि उसका द्रव्यमान १० लाड माउंस बच रहें। पुनः प्रति तरल द्वय को परस्पर मिला लें और भावश्यकसानुसार इसना परिसुत जल और योजित करें कि तरल सस्व का द्रव्यमान पूर्व २० लहर माउंस होजाए।
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